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Updated: 15 जून, 2022 12:38 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी मामले पर बीती 10 जून को रांची में भड़की हिंसा में मुदस्सिर नाम के एक 16 साल के लड़के की मौत हो गई थी. मुदस्सिर की मौत के कई वीडियो इस समय सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. कहा जा रहा है कि मुदस्सिर को बिना किसी कसूर के गोली मार दी गई. खैर, इस मामले में क्या सही है और गलत? इसका फैसला जांच के बाद हो जाएगा. लेकिन, इसी बीच सोशल मीडिया पर मुदस्सिर का मां का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है. जिसमें वह कहती नजर आ रही हैं कि 'वो क्या समझ रहा है, मुसलमान का बच्चा कमजोर है. शेर मां पैदा की है. शेर बच्चा पैदा की है. इस्लाम जिंदाबाद था. इस्लाम जिंदाबाद है. इस्लाम हमेशा जिंदाबाद रहेगा. उसको कोई नहीं रोक सकता. एक मुदस्सिर इस्लाम जिंदाबाद बोलते हुए गया. उसके पीछे देखो, सैकड़ों मुदस्सिर खड़ा हो गया.' 

वहीं, आजतक से बातचीत में मुदस्सिर की मां पूछती हैं कि 'मेरे बच्चे की गलती क्या थी? पुलिस को इजाजत है. अगर अपने हक के लिए आवाज उठाए तो गोली मार दो. इस्लाम जिंदाबाद. बोल देने पर पुलिस को हक है, गोली मार दे. किसने उसे हक दिया? सरकार कहां सोई है? सरकार क्यों आवाज नहीं उठा रही है? इस्लाम जिंदाबाद था. इस्लाम जिंदाबाद है. इस्लाम जिंदाबाद रहेगा. इसे सरकार या दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. मेरा 16 साल का बच्चा. अपने इस्लाम के लिए शहीद हुआ है. इस मां को फख्र है. पैगंबर मोहम्मद के लिए उसने अपनी जान दी है. उसने शहीदी देकर उस जगह को पाया है. मुझे कोई गम नहीं. उस काफिर जिसने मारा है, उसे सजा मिलनी चाहिए. सरकार को ये बात सुना दीजिए. इस मां का दिल बहुत जल रहा है. वहां भीड़ भी नहीं. केवल अकेला मेरा बच्चा दिख रहा है. इस्लाम जिंदाबाद बोल देने से मारा जाता है. ये सारी साजिश मोदी सरकार की है.' 

वैसे, मुदस्सिर की मां के इन दो अलग-अलग वीडियो को देखकर अंदाजा लगाया जाना मुश्किल नहीं है कि रांची हिंसा में जान गंवाने वाले मुदस्सिर का 'कसूर' क्या था? जिस मुदस्सिर की मां खुलेआम ये कह रही हों कि पत्थरबाजी कर रहे लोगों की भीड़ में शामिल उनका लड़का इस्लाम के लिए शहीद हो गया है. जिसकी मौत पर कई मुदस्सिर खड़े हो गए हैं. उसने पैगंबर मोहम्मद के लिए अपनी जान दी है. अपनी बातचीत में काफिर जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने वाली मुदस्सिर की मां को शायद उनके बच्चे का कसूर समझ नहीं आएगा. लेकिन, रांची हिंसा में जान गंवाने वाले मुदस्सिर का 'कसूर' उसकी मां ने कह सुनाया है.

मुदस्सिर वहां कर क्या रहा था?

मुदस्सिर की मां भले ही दावा कर रही हों कि उनका बेटा वहां अकेला था. लेकिन, जिस समय मुदस्सिर को गोली लगी. उस समय का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है. जिसमें मुदस्सिर इस्लाम जिंदाबाद के नारे लगाता हुआ सबसे आगे खड़ा नजर आ रहा है. और, उसके पीछे से पत्थरबाजी की जा रही है. अचानक गोली चलती है. और, मुदस्सिर गिर जाता है. भीड़ इकट्ठा होकर उसकी लाश के साथ नारा-ए-तकबीर के नारे लगाने लगती है. क्या मुदस्सिर की मां अब ये कह सकेंगी कि उनका बेटे वहां अकेला था? खैर, इस पूरे मामले में सबसे अहम सवाल यही है कि एक 16 साल का बच्चा पत्थरबाजों की उस भीड़ में क्यों खड़ा था? जब मुदस्सिर इतना ही शरीफ और नेक बच्चा था, तो उपद्रवियों के साथ पत्थरबाजी वाली जगह पर क्या करने गया था? इस सवाल का जवाब मुदस्सिर की मां को ही देना होगा.

Prophet remark row Ranchi Violence Mother of killed boy Mudassirएक मां का दर्द समझ में आता है. लेकिन, मुदस्सिर आखिर वहां गया क्यों था? ये सवाल भी खड़ा होगा.

पैगंबर के नाम शहीद हुआ, तो गम किस बात का?

आजतक के साथ बातचीत में मुदस्सिर की मां कहती हैं कि 'मेरा 16 साल का बच्चा. अपने इस्लाम के लिए शहीद हुआ है. इस मां को फख्र है. पैगंबर मोहम्मद के लिए उसने अपनी जान दी है. उसने शहीदी देकर उस जगह को पाया है. मुझे कोई गम नहीं.' जब मुदस्सिर की मां खुलेआम इस बात को कुबूल कर रही हैं कि उनके बच्चे को शहादत मिली है. तो, आखिर वह अपना गुस्सा किस पर निकाल रही हैं? उन्होंने कहा है कि 'इस साजिश के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार है.' लेकिन, क्या ये संभव है? जो मोदी सरकार नूपुर शर्मा के खिलाफ पार्टी के स्तर पर कार्रवाई कर चुकी हो. पुलिस में जिनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जा चुका हो. वो किसी पर गोली चलवाने की साजिश क्यों करेगी? खैर, इसका जवाब यही हो सकता है कि लखनऊ के कमलेश तिवारी की हत्या किस वजह से हुई, किसी से छिपा नहीं है. 'सिर तन से जुदा' करने वाली सोच की वजह से ही देश के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन किए गए हैं. क्या भारत के मुसलमानों को देश के संविधान और कानून पर भरोसा नहीं है?

काफिर कौन होता है?

गैर-मुस्लिम लोगों को इस्लाम में काफिर कहा जाता है. मुदस्सिर की मां ने बातचीत में काफिर शब्द का इस्तेमाल किया है. संभव है कि अपने इकलौते बेटे की मौत से गुस्से में भरी मां ने काफिर शब्द का इस्तेमाल कर दिया हो. लेकिन, ये कहा जा सकता है कि मुदस्सिर की मां काफिर शब्द से भली-भांति परिचित होंगी. और, उनका 16 साल का बच्चा भी इस शब्द को अच्छे से समझता होगा. पुलिस वालों को काफिर की संज्ञा देना उस जहालत का प्रदर्शन है, जो मुस्लिम समाज के एक वर्ग में अंदर तक घर चुकी है. और, इसका मुजाहिरा सीएए-एनआरसी से लेकर पैगंबर टिप्पणी विवाद के बाद हुए हिंसक प्रदर्शनों के रूप में सबके सामने है.

देश में पैदा होने भर से देश अपना नहीं होता

देश को यूं ही बस जुबानी तौर पर अपना कहने भर से वो अपना नहीं हो जाता है. इसके लिए देश के संविधान और कानून पर अपना भरोसा जताना पड़ता है. लेकिन, ऐसा लगता है कि मुस्लिम समाज के एक हिस्से को इस पर भरोसा ही नहीं है. तभी तो पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल इलाकों में प्रदर्शन अपने उग्रतम स्तर को छू जाता है. सड़कों पर जलती गाड़ियां और दुकानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया जाता है. बताना जरूरी है कि ऐसा नहीं है कि पहले पत्थरबाजी जैसी घटनाएं केवल कश्मीर में हुआ करती थीं. पहले भी मुस्लिम बहुल इलाकों में किसी सांप्रदायिक दंगे की स्थिति में ऐसे ही हालात बनते रहे हैं.

पुलिस की बात भी सुन लीजिए

रांची हिंसा के दौरान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था. जिसमें पत्थरबाजों के बीच फंसा पुलिस का एक जवान रोते हुए पत्थरबाजी की सूचना अपने अधिकारी को दे रहा है. और, कह रहा है कि 'बचा लीजिए सर. पत्थरबाजी हो रही है. जल्दी से फोर्स भेज दीजिए.' बताना जरूरी है कि मुस्लिम समुदाय की ओर से की गई पत्थरबाजी में पुलिस के 11 जवान समेत करीब दो दर्जन लोग घायल हो गए थे. हालात इतने बिगड़ गए थे कि भीड़ को नियंत्रित करने को पहुंचा पुलिस को भी भागना पड़ा था. रांची हिंसा मामले पर पुलिस की ओर से कहा गया है कि 'एक्शन को लेकर जांच की जा रही है. जो हालात वहां थे. उसका विश्लेषण यहां बैठकर नहीं किया जा सकता है.'

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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