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Updated: 11 अक्टूबर, 2022 01:43 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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किसी खिलाड़ी के लिए खेल से ज्यादा जरूरी शायद ही और कुछ हो सकता हो. लेकिन, पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के विकेटकीपर बल्लेबाज मोहम्मद रिजवान का मानना है कि 'क्रिकेट वगैरह सब दुनियावी मकसद हैं. और, इस कायनात में आने का असल मकसद अल्लाह को पहचानना है.' दरअसल, पाकिस्तान की क्रिकेट टीम इन दिनों न्यूजीलैंड में ट्राई सीरीज खेल रही है. और, इस ट्राई सीरीज के दौरान ही पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कुछ खिलाड़ी न्यूजीलैंड की एक मस्जिद में गए थे. इस मस्जिद में मोहम्मद रिजवान बाकायदा किसी मौलवी की तरह तकरीर करते नजर आए. 

अब मोहम्मद रिजवान का ये वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. रिजवान मौलवी के तकरीर करने वाली जगह पर बैठकर कहते नजर आ रहे हैं कि 'हमें इस कायनात में आने के अपने असली मकसद को पहचानना होगा. क्रिकेट तो केवल दुनियावी मकसद है. अभी न्यूजीलैंड में खेल रहे हैं. आगे ऑस्ट्रेलिया में जाकर खेलना है. लेकिन, इस कायनात में अल्लाह को पहचानना ही हमारा असली मकसद है. अल्लाह के सिवा कोई पालने वाला नहीं है.' वैसे, मोहम्मद रिजवान के इस बयान और उनकी भाव-भंगिमाओं को देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि मोहम्मद रिजवान क्रिकेटर बाद में, पहले मौलवी रिजवान हैं.

Mohammad Rizwan speech on Islam and Allah पाकिस्तान क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों को इस्लाम का प्रचारक कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा.

रिजवान को अपना 'मकसद' बहुत साफ है

मोहम्मद रिजवान के लिए क्रिकेट से ज्यादा जरूरी अल्लाह को पहचानना है. और, चूंकि इस्लाम इस पूरी कायनात के लिए उतारा गया है. तो, मोहम्मद रिजवान पाकिस्तान क्रिकेट टीम के दौरों पर धर्मांतरण की कोशिशें करते रहते हैं. संभव है कि ये बात आपको बचकाना लगे. लेकिन, न्यूजीलैंड की मस्जिद में पहुंचे मौलाना मोहम्मद रिजवान ने इसे साबित किया है. रिजवान ने न्यूजीलैंड के खिलाड़ी ब्लेयर टिकनर को 'दावत-ए-इस्लाम' के हवाले से ही कुरान तोहफे में दी होगी. क्योंकि, शायद ही और किसी टीम के खिलाड़ी अपने धर्म के हिसाब से साथ खेलने वाले खिलाड़ियों को गीता, बाइबिल या अन्य धार्मिक किताबें तोहफे में देते होंगे. दरअसल, मोहम्मद रिजवान अपने मकसद को लेकर बहुत साफ हैं. उन्हें पता है कि इस्लाम के हवाले से ये सबकुछ करना जायज है. क्योंकि, इस्लाम को बस फैलना है. फिर से इसके लिए तलवार का इस्तेमाल हो या प्यार का.

अगर आप क्रिकेट प्रशंसक होंगे, तो बीते साल टी20 वर्ल्ड कप के दौरान पाकिस्तान बनाम टीम इंडिया का मैच आप शायद ही भूले होंगे. उस टी20 मैच में टीम इंडिया पाकिस्तान से बुरी तरह हारी थी. टीम इंडिया को 10 विकेट से मात देने के बाद मोहम्मद रिजवान ने क्रिकेट मैदान पर ही अल्लाह का शुक्रिया अदा करने के लिए नमाज पढ़ी थी. और, रिजवान के मैदान में नमाज अदा करने को पाकिस्तान में खूब सेलिब्रेट किया गया था. पाकिस्तान के तत्कालीन गृह मंत्री शेख रशीद ने पाकिस्तान क्रिकेट टीम की इस जीत को इस्लाम की जीत करार दे दिया था. इतना ही नहीं, पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर वकार यूनुस ने कहा था कि 'हिंदुओं के बीच मैदान पर रिजवान का नमाज अदा करना बहुत खास था.' आसान शब्दों में कहा जाए, तो पाकिस्तान के हर खिलाड़ी का इस्लाम को लेकर एजेंडा शीशे की तरह साफ है.

पाकिस्तान के पूर्व विकेटकीपर सरफराज अहमद की ही बात कर ली जाए. तो, आपको स्थिति साफ हो जाएगी. सरफराज अहमद के ट्विटर बायो में पाकिस्तानी क्रिकेटर के तौर पर पहचान बताने से पहले लिखा हुआ है कि वो हाफिज-ए-कुरान हैं. कहना गलत नहीं होगा कि सरफराज अहमद की तरह ही मोहम्मद रिजवान से लेकर तमाम पाकिस्तानी खिलाड़ियों को उनका मकसद पता है. क्रिकेट में हार-जीत तो लगी ही रहती है. लेकिन, एक मुसलमान होने के नाते इस्लाम को ज्यादा से ज्यादा फैलाना ही उनका मकसद है. फिर इसके लिए हिंदुओं के बीच नमाज पढ़नी पढ़े या किसी गैर-मजहब के खिलाड़ी को 'दावत-ए-इस्लाम' के तहत कुरान तोहफे में दी जाए. ये तमाम चीजें इस्लाम में न केवल जायज हैं. बल्कि, ऐसा करना फर्ज है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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