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Updated: 29 अप्रिल, 2022 04:01 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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एलन मस्क के ट्विटर खरीदने के बाद से ही माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर 'फ्री स्पीच' को लेकर 'उनका अगला कदम क्या होगा' की बहस ने जोर पकड़ लिया है. खुद को 'फ्री स्पीच एब्सोल्यूटिस्ट' कहने वाले एलन मस्क ने इसे आज के जमाने का यक्षप्रश्न बना दिया है. लेकिन, एलन मस्क के ट्विटर खरीदते ही दुनियाभर के वामपंथियों के पेट में ज्यादा दर्द हो रहा है. दरअसल, बीते दो दिनों में एलन मस्क की ओर से किए गए ट्वीट्स और रिप्लाई देखने के बाद वामपंथियों को अपने ऊपर खतरा मंडराता नजर आ रहा है. क्योंकि, ट्विटर का मालिकाना हक एलन मस्क के पास आ जाने के बाद वामपंथियों को कंपनी की ओर से चलाया जाने वाला वामपंथ समर्थित एजेंडा खत्म होता नजर आ रहा है. हाल ही में एलन मस्क ने एक ट्वीट कर लिखा कि लोगों का भरोसा जीतने के लिए ट्विटर को राजनीतिक रूप से तटस्थ रहना होगा. जिसका सीधा सा मतलब है कि धुर-दक्षिणपंथी और धुर-वामपंथी बराबरी से परेशान होंगे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो वामपंथियों का 'सेफ हैवेन' ट्विटर अब उन पर ही भरभरा कर गिरने की संभावना बन गई है.

Elon Musk Leftists Twitterएलन मस्क ने माना है कि वो वामपंथियों के निशाने पर हैं. लेकिन, उन्हें इस पर आश्चर्य नही है.

नई ट्विटर पॉलिसी में वामपंथी बन सकते हैं निशाना

एलन मस्क के ट्विटर खरीदने से वामपंथियों में किस कदर खलबली मची है. इसका अंदाजा मस्क के ट्वीट से लगाया जा सकता है. दरअसल, एक यूजर ने एलन मस्क से ट्विटर को राजनीतिक रूप से तटस्थ बनाए जाने की मांग की थी. यूजर ने लिखा कि 'वॉशिंगटन पोस्ट और हर लेफ्ट विंग के ब्लू टिक की फिर से जांच होनी चाहिए. आप लोग अपना खेल बिगाड़ रहे हैं.' जिस पर एलन मस्क ने साफ तौर पर लिखा है कि 'हमले बड़े और तेज हो रहे हैं. खासतौर से लेफ्ट (वामपंथी विचारधारा वाले) की ओर से, लेकिन ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है. हालांकि, मुझे साफ कहना होगा कि राइट (दक्षिणपंथी) भी शायद थोड़ा नाखुश होंगे. मेरा लक्ष्य सभी लोगों की खुशियों को देखते हुए इसके क्षेत्र को अधिकतम बढ़ाना है. जिसका मतलब है कि 80 फीसदी लोग बीच में हैं.' आसान शब्दों में कहा जाए, तो एलन मस्क ट्विटर को तटस्थ बनाए रखने पर जोर देने वाले हैं. जिससे साफ है कि माइक्रोब्लॉगिंग साइट से वामपंथियों का दबदबा खत्म हो जाएगा.

वहीं, एलन मस्क ने हाल ही में एक और ट्वीट के जरिये ट्विटर पर उनकी आलोचना करने वाले वामपंथियों पर निशाना साधा है. एलन मस्क ने एक कैरिकेचर फोटो शेयर की है, जिसमें मस्क ने 2008 में खुद को वामपंथी के खेमे या खांचे की ओर बढ़ता दिखाया है. इस कदम पर वामपंथी उनको अपना साथी लिबरल कह रहे हैं. हालांकि, इससे दक्षिणपंथियों को कोई परेशानी होती नहीं दिख रही है. वहीं, 2012 में जब मस्क का कैरिकेचर वामपंथ की ओर से दक्षिणपंथ की ओर बढ़ने लगता है. तो, वामपंथी उनसे भागते हुए नजर आते हैं. इस कैरिकेचर में 2022 की टाइमलाइन में एलन मस्क को दक्षिणपंथियों के खेमे में खड़ा दिखाया गया है. जिस पर दक्षिणपंथी हंस रहे हैं. और, वामपंथी खेमे के वोक और प्रोग्रेसिव लोग उन्हें कट्टर करार दे रहे हैं. 

इतना ही नहीं, एलन मस्क ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा बनाए गए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल (Truth Social) का उदाहरण देते हुए भी ट्विटर की पॉलिसी पर निशाना साधा. एलन मस्क ने लिखा कि ट्रुथ सोशल (एक खराब नाम) केवल इसी वजह से मौजूद है, क्योंकि ट्विटर ने फ्री स्पीच को सेंसर कर दिया. 

वैसे, अगर एलन मस्क फ्री स्पीच के अपने इसी फंडे पर चलते हैं, तो वामपंथियों के लिए मुश्किल खड़ी होना तय है. क्योंकि, वामपंथियों और दक्षिणपंथियों के जिन 10-10 फीसदी के परेशान होने की बात एलन मस्क ने कही है. उनमें से दक्षिणपंथियों के 10 फीसदी को खुद वामपंथी ही ट्रोलर्स कहते आए हैं. लेकिन, जिन 10 फीसदी वामपंथी विचारधारा के यूजर्स को एलन मस्क निशाने पर ले सकते हैं. उनमें से अधिकतर वो सोफिस्टिकेटेड यूजर्स हैं, जो फ्री स्पीच की आड़ में ट्विटर पर अब तक अपना एजेंडा चलाते रहे हैं. और, दक्षिणपंथी लोगों को निशाना बनाते हुए खुलकर अपनी बात रखते आए हैं. वहीं, करारा जवाब मिलने पर ट्विटर की पॉलिसी का इस्तेमाल अपने खिलाफ उठ रही आवाज को दबाने के लिए करते रहे हैं.

वामपंथियों के दर्द की वजह क्या है?

ट्विटर के पूर्व सीईओ जैक डॉर्सी घोषित तौर पर वामपंथी विचारधारा के समर्थक माने जाते हैं. लेकिन, ट्विटर की नीतियों को लेकर जैक डॉर्सी हमेशा दावा करते रहे कि उनकी वामपंथी विचारधारी का कंपनी और उसकी पॉलिसी पर कोई असर नहीं पड़ता है. लेकिन, पिछले कुछ सालों में ट्विटर अपनी नीतियों के चलते दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों को निशाना बनाते हुए की गई कार्रवाई को लेकर जमकर आलोचना का शिकार हुआ है. ट्विटर पर 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर वामपंथी विचारों को बढ़ावा देने के आरोप लगे. जो ट्विटर की कार्रवाईयों को देखते हुए निश्चित तौर से सही नजर आते हैं. खैर, वामपंथियों के पेट में दर्द की असली वजह ये है कि एलन मस्क प्रतिबंधों को घटाने की बात कर रहे हैं. और, मस्क का विश्वास ट्विटर अकाउंट्स को बैन करने में नहीं है.

वामपंथियों को लग रहा है कि अगर ऐसा होता है, तो ट्विटर पर उन्हें परेशान किया जा सकता है. जो माइक्रोब्लॉगिंग साइट अब तक उनके लिए एक 'सेफ हैवेन' बना हुआ था. वहीं, ट्विटर की ओर से खुद को राजनीतिक तौर से तटस्थ कहने की बात भी संशय में ही नजर आती है. क्योंकि, एलन मस्क के निशाने पर माइक्रोब्लॉगिंग साइट की लीगल, पॉलिसी और सेफ्टी इशूज की हेड विजया गाड्डे भी आ गई हैं. एलन मस्क ने बिना नाम लिए विजया गाड्डे को निशाने पर लेते हुए एक न्‍यूज ऑर्गनाइजेशन का अकाउंट सस्‍पेंड करने की आलोचना की. एलन मस्क ने इसे स्पष्ट रूप से पूरी तरह से गलत बताया. दरअसल, विजया गाड्डे पहले भी कई ट्विटर यूजर्स के अकाउंट बैन कर चुकी हैं, जिनमें अमेरिकी के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शामिल हैं. जबकि, जो बाइडेन के बेटे के खिलाफ खबर लिखने पर उन्होंने द न्यूयॉर्क टाइम्स का अकाउंट सस्पेंड कर दिया था.  

इतना ही नहीं, एलन मस्क ने ट्विटर की पॉलिसी को एक ही जगह गोल-गोल घुमाने वाला भी बता दिया. एलन मस्क ने बाकायदा एक मीम शेयर करते हुए ट्विटर की वामपंथी विचारधारा की ओर झुकाव रखने वाली पॉलिसी का मजाक उड़ाया. इस मीम में मशहूर यूट्यूबर टिम पूल विजया गाड्डे और जैक डॉर्सी के साथ  पॉडकॉस्ट में बातचीत करते नजर आते हैं. जिसमें वह ट्विटर की लेफ्ट विंग समर्थित पूर्वाग्रह से भरी पॉलिसी का पोस्टमॉर्टम करते हैं.

मानवाधिकार समूहों को भी लग रहा डर

दरअसल, एलन मस्क के ट्विटर को खरीदने से वामपंथियों का पूरा इकोसिस्टम हिल गया है. दुनियाभर के वामपंथी विचारधारा वाले मानवाधिकार संगठन भी मान रहे हैं कि एलन मस्क की ट्विटर कंटेंट को मॉडरेट करने पॉलिसी बदल जाएगी. दरअसल, विजया गाड्डे का नाम सामने आने के बाद संभव है कि एलन मस्क उनके पर कतर देंगे. अगर ऐसा होता है, तो मानवाधिकार संगठनों और एथिइस्ट समूहों जैसे तमाम यूजर अपने वामपंथी एजेंडे के खिलाफ अब खुला मैदान नहीं पा सकेंगे. क्योंकि, अब इनके खिलाफ लिखने वाले लोगों को ट्विटर की ओर से बैन नहीं किए जाने की संभावना बढ़ गई है. जो सीधे तौर पर इन समूहों की छवि को तोड़ने में अहम भूमिका निभाएगा. कहा जा सकता है कि यही कारण है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी लिखने वाले ये यूजर अब 'फ्री स्पीच' को एक पूर्ण अधिकार न मानने की दुहाई दे रहे हैं. जबकि, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ही इन वामपंथियों ने भारत में देवी-देवताओं की नग्न तस्वीरों से लेकर किसान आंदोलन के दौरान चरमपंथियों के एजेंडे को खुला समर्थन दिया था.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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