New

होम -> सोशल मीडिया

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 07 जुलाई, 2018 01:24 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
  • Total Shares

सोशल मीडिया पर 465 चीजें शेयर हो रही हैं. क्या चुस्त शर्ट, कसी हुई पैंट पहनकर पुश-अप लगाते और फिटनेस चैलेन्ज देते केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर. क्या हाथ में तख्ती पकड़े पेड़ बचाने की अपील करते बड़े बड़े बंगलों में रहने वाले दिल्ली के हाई प्रोफाइल लोग. उद्देश्य सबका एक है अटेंशन लेना और लोकप्रिय हो जाना. एक ऐसे वक़्त में जब उद्देश्य केवल वायरल होना हो, दुनिया में ऐसे लोग भी है जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल सार्थक चीजों के लिए कर रहे हैं.

यदि इस बात को समझना हो तो हमें सिद्धेश भगत से मिलना चाहिए. 25 साल के सिद्धेश गोवा स्थित एक्वेम बैक्सो के सरपंच हैं. 25 साल की उम्र में जहां हमारे देश के आम लड़के व्हाट्सऐप पर क्रांति कर रहे हैं, टिंडर पर फ़्लर्ट के लिए परफेक्ट मैच ढूंढ रहे हैं, ट्विटर पर सलेब्स को ट्रोल कर रहे हैं, सिद्धेश ने वो कर दिखाया जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो.

किसान, खेती, वायरल वीडियो, सोशल मीडिया, गोवा      गोवा के सरपंच सिद्धेश ने जो किया वो सोशल मीडिया का सार्थक रूप है

युवा सरपंच ने खेती को बढ़ावा देने और किसानों की समस्या समझने के लिए एक काबिल ए तारीफ पहल की है. भगत ने गोवा के विधायकों को फार्मिंग चैलेंज दिया है. सिद्धेश ने विधायकों से किसानों की समस्या समझने के लिए खेतों में उतरकर उनके साथ काम करने का चैलेंज दिया है. सिद्धेश के इस चैलेन्ज से इंस्पायर होकर गोवा के कई विधायक ऐसे हैं भी, जिन्होंने ये चैलेंज स्वीकार किया है.

बात आगे बढ़ाने से पहले आपको बताते चलें कि जब गोवा के कृषि मंत्री से राज्य में कृषि को लेकर बात की गई तो उन्होंने ये कहकर अपना पल्ला झाड़ दिया कि राज्य में कृषि की स्थिति इसलिए अच्छी नहीं है क्योंकि लोग धर्म से दूर हैं. गोवा के कृषि मंत्री ने राज्य के किसानों को बेहतर खेती के लिए मंत्रों का उच्चारण करने की सलाह दी थी. मंत्री के इस बयान के बाद उनकी मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक जमकर आलोचना भी हुई थी.

ध्यान रहे कि सिद्धेश सरपंच चुने जाने से पहले एक एक्टिविस्ट थे. सिद्धेश का मत है कि 'दूसरे राज्यों में किसान संसद और विधानसभाओं की और मार्च करते हैं. अब वक्त आ गया है जब गोवा विधानसभा को खेतों में मार्च कराया जाए.'

अपनी इस पहल को अमली जामा पहनाने के लिए बीते दिनों भगत ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का सहारा लिया. फेसबुक पर एक्वेम बैक्सो के युवा सरपंच सिद्धेश ने पोस्ट किया था कि 'किसानी एसी कमरों में बैठकर नहीं खेतों में जाकर ही समझ आ सकती है. मैंने किसानों से मिलकर उनकी कुछ समस्याओं पर बात की है और मैं ये समस्या कृषि मंत्री के टेबल तक ले जाऊंगा. मुझे उम्मीद है कि वो इस पर जरूर काम करेंगे.'

farming-650_070718011918.jpgबच्चे भी इस पहल में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं

सिद्धेश का मानना है कि अगर हम साथ आए और हमने एक होकर काम किया तो हम मिलकर हरित क्रांति ला सकते हैं. सिद्धेश ने गोवा के विधायकों, मंत्रियों और अधिकारियों से अनुरोध किया है कि वो अपने विधानसभा क्षेत्रों में मौजूद खेतों में जाएं. भगत का ये भी मानना है कि सरकार को किसी भी सूरत में खेती को बढ़ावा देना चाहिए. खुद खेतों में काम करने के बाद सिद्धेश ने राज्य के कांग्रेसी विधायक एलेक्सो रेजिनाल्डो लॉरेन्को को चैलेन्ज दिया है कि वो इस चैलेंज को एक्सेप्ट करें और अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर कर और लोगों को चैलेन्ज करें.

गौरतलब है कि सिद्धेश के खेत में जाने और वीडियो बनाकर चैलेन्ज देने के बाद उनके इस चैलेंज को सबसे पहले राजस्व मंत्री रोहन खौंते और करतोरिम से कांग्रेस विधायक एलेक्सो रेजिनाल्डो लॉरेन्को ने स्वीकार किया था. लॉरेन्को धान के खेतों में ट्रैक्टर चला रहे हैं और उनकी इस फोटो को सोशल मीडिया पर लोगों द्वारा हाथों हाथ लिया जा रहा है.

अपनी इस पहल पर फक्र करते हुए लॉरेन्को का तर्क है ने कहा कि इतने वर्षों के बाद खेतों में उतरकर उन्हें बहुत अच्छा लगा. इसके बाद विधायक लॉरेन्को ने राजस्व मंत्री रोहन खौंते को चैलेंज किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. उन्होंने भी पोरवोरिम में किसानों की खेत जोतने में मदद की. बताया जा रहा है कि खुद चैलेंज लेने के बाद खौंते ने ये चैलेंज नवेलिम के विधायक लुईजिन्हो फलेरो को दिया है.

बहरहाल जिस तरह गोवा में खेतों में अपना योगदान देकर नेताओं द्वारा वीडियो बनाए जा रहे हैं और इसके जरिये एक दूसरे को चैलेन्ज किया जा रहा है. वो दिन दूर नहीं जब ये चैलेन्ज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास आए और कृषि को बढ़ावा देने के लिए वो भी धान रोपते हुए या गेंहूं काटते हुए वीडियो बनाएं और लोगों को चैलेन्ज करें.

इस वीडियो वॉर में जो एक बात अच्छी है वो ये कि, यदि नेता जमीन पर आते हैं और खेती में अपना योगदान देते हैं तो कम से कम उन्हें वास्तविक परेशानियों का अंदाजा हो जाएगा. फिर हम शायद ही ऐसे बयान सुनें जब नेता ये कहें कि किसानों की फसल इसलिए अच्छी नहीं हो रही क्योंकि वो खेतों में मंत्रों का जाप नहीं कर रहे हैं.

अंत में हम बस ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि ये एक स्वागत योग्य पहल है और एक ऐसे समय में जब वायरल करने के नाम पर एक से एक वाहियात चीजों का प्रचार प्रसार किया जा रहा हो ऐसी पहल को आत्मा को ठंडक देने वाली मुहीम माना जा सकता है.

ये भी पढ़ें -

गन्ने सा पिसता किसान

क्या ऐसे बयानों से किसानों की हालत सुधरेगी?

किसानों का दुख दर्द बांटने मंदसौर गये राहुल गांधी ने तो कांग्रेस का मैनिफेस्टो ही बता डाला

 

लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय