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Updated: 17 जून, 2018 11:31 AM
बिजय कुमार
बिजय कुमार
  @bijaykumar80
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हाल ही में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने किसानों की आत्महत्या के सवाल पर एक विवादित दिया है. किसानों की आत्महत्या का ठीकरा मीडिया पर फोड़ते हुए उन्होंने कहा कि किसान पारिवारिक कलह या अन्य कारण से आत्महत्या करता है, लेकिन मीडिया उस खबर को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाती है, साथ ही इसे कर्ज के कारण की गई आत्महत्या भी बताती है. जौनपुर के किसान द्वारा आत्महत्या की एक घटना का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उस किसान ने पारिवारिक कलह के कारण आत्महत्या की, जबकि मीडिया ने उसे कर्ज के चलते आत्महत्या बताया. उन्होंने मीडिया से गुजारिश की कि किसानों की आत्महत्या से जुड़ी खबर प्रकाशित करने में गंभीरता बरतें.

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बता दें कि चित्रकूट दौरे के दौरान जब कृषि मंत्री से किसानों को लेकर सवाल पूछे गए तब उन्होंने इसके लिए ना सिर्फ मीडिया, बल्कि विपक्षी दलों को भी आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के शासन में किसानों कि हालत ठीक नहीं थी, लेकिन जब से केंद्र और प्रदेश में बीजेपी की सरकार आई है तब से किसानों की स्थिति में बहुत सुधार आया है और अब किसान आत्महत्या नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हमारी सरकार किसानों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही है. श्री शाही ने इस मौके पर सरकार की योजनाओं का जिक्र किया और कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में लगी हुई है.

अब बात करें किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों की तो वो ना सिर्फ हैरान करते हैं, बल्कि देश में अन्नदाताओं की बदहाल स्थिति भी बयान करते हैं. जिससे इतना तो साफ़ है कि इस दिशा में सरकार को अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है. किसानों की आत्महत्या से जुड़े आंकड़े प्रकाशित करने वाली एजेंसी एनसीआरबी के अनुसार, वर्ष 2014 में 12,360 किसानों और कृषि कार्य से जुड़े मजदूरों ने आत्महत्या की, तो वर्ष 2015 में यह बढ़कर 12,602 हो गया. राज्य सभा में किसानों की बदहाली और आत्महत्या के सवाल के जवाब में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने बताया कि वर्ष 2016 में 11,458 किसानों या फिर खेती से जुड़े मजदूरों ने आत्महत्या की थी. बता दें कि इन आत्महत्याओं में एक बड़ी वजह कर्ज ना चुका पाना था, जो किसानों कि बदहाली दर्शाता है. ऐसे में नेताओं का किसानों के सवाल पर उल्टे मीडिया पर ही प्रश्न चिन्ह लगाना या फिर ऐसी घटनाओं पर असंवेदनहीन बयान देना गलत है, खासकर सत्ता पक्ष द्वारा. ऐसा नहीं है कि ये पहला मौका था, जब किसी राज नेता ने इस तरह का बयान दिया हो, इससे पहले भी कई बार इस तरह के बयान सुनने को मिले हैं. आइए जानते हैं... जून 2, 2018: देशभर के किसान जब अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे तो पटना में एक कार्यक्रम में बोलते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने किसानों के आंदोलन को 'पब्लिसिटी स्टंट' करार दिया.

मार्च 12, 2018: मुंबई में किसान आन्दोलन पर BJP सांसद पूनम महाजन ने इसमें शामिल होने वाले किसानों को 'शहरी माओवादी' बताया था. पूनम महाजन ने पत्रकारों से कहा कि शहरी माओवाद किसानों को प्रभावित कर रहा है और किसानों पर माओवादियों का शिकंजा कसता जा रहा है. एक टीवी चैनल से बातचीत के दौरान पूनम ने कहा था, 'किसान बहुत बड़े स्तर पर शांति के साथ विरोध प्रदर्शन कर कर रहे हैं. उनके हाथों में कम्युनिस्ट झंडा है. ये सभी किसान सिर्फ नासिक से नहीं आए हैं, बल्कि पूरे महारष्ट्र से किसानों को इकठ्ठा किया गया है'. उन्होंने कहा, 'यह दुख की बात है कि महाराष्ट्र के किसानों के ऊपर शहरी माओवाद का शिकंजा कसता जा रहा है और पुणे में इसका गढ़ मौजूद है. उनके इस बयान के लिए विपक्षी दलों ने उनकी आलोचना की थी.

जून 13, 2017: भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने मध्य प्रदेश में किसानों की आत्महत्या पर अपनी सरकार का बचाव करते हुए कहा कि उनके सूत्रों के मुताबिक मध्य प्रदेश में एक भी किसान ऐसा नहीं है, जिसने कर्ज की वजह से खुदकुशी की हो. उन्होंने कहा कि किसानों की खुदकुशी की तमाम वजहें हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि किसान निजी समस्या, डिप्रेशन की वजह से भी खुदकुशी कर सकते हैं. बता दें कि इससे पहले भी विजयवर्गीय ने मंदसौर घटना पर विवादित बयान दिया था. तब उन्होंने मंदसौर में 5 किसानों की मौत को बड़ा मसला न बताते हुए उसे एक जिले की घटना कहा था.

फरवरी 17, 2017: मध्य प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक रामेश्वर शर्मा ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि मरे वो किसान हैं जो काम कम और सब्सिडी चाटने का व्यापार ज्यादा करते हैं.

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लेखक

बिजय कुमार बिजय कुमार @bijaykumar80

लेखक आजतक में प्रोड्यूसर हैं.

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