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Updated: 04 मार्च, 2017 11:01 AM
प्रथम द्विवेदी
प्रथम द्विवेदी
  @pratham643
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कंट्रोल: अरे भाई किधर जा रहे हो सुनो तो?

ट्रोल: कहीं नहीं बे जल्दी बताओ टाईम ज्यादा नहीं है बहुत काम है आज.

कंट्रोल: क्या हुआ फिर से कोई युद्ध छिड़ा क्या?

ट्रोल: हां युद्ध ही समझो, तुम्हारे जैसे कई लंपटों को आज घेरे में लेना है.

कंट्रोल: अच्छा भैया, कैसे करते हो ये सब, कहां से लाते हो इतना माल पानी.

ट्रोल: कुएं में बाल्टी डालते हैं और निकल आता है माल, पानी की तरह, ज्यादा मेहनत नहीं लगती है. अब जाओ तुम्हारी अम्मा इंतज़ार कर रही होंगी. काम धाम तो है नहीं तुम्हारे पास.

कंट्रोल: चले जाऐंगे भैया बस एक बात बता दो, तुम इतने अकड़े कैसे हुए हो? एक तूफान आएगा और तुम धम्म से जमीन पर गिरोगे.

ट्रोल: ये कैसा बेहूदा सवाल है, सही सलामत तो हूं मैं (थोड़ा लहराते हुए)

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कंट्रोल: लगता तो नहीं भाई, मुझे तो लगता है तुम्हारा तो एक-एक अंग जकड़ा हुआ है, ऐसा लगता है एक अर्से से तुमने खुलकर सांस भी नहीं ली.

ट्रोल: (त्योरियां चढ़ाते हुए) तुम कुछ ज्यादा नहीं बोल रहे हो, मार खाने का इरादा है क्या?

कंट्रोल: मैंने क्या गलत बोला भाई, देखो तुम्हारे हाथ कितने जकड़े हुए हैं, अपनी मर्जी से हिल भी नहीं सकते और तुम्हें लगता है तुम तुर्रम खां हो.  

ट्रोल: (थप्पड़ मारने की मुद्रा में) देखो इतना आजाद है मेरा हाथ, एक मारूंगा तो ये कीचड़ चाट लोगे.

कंट्रोल: वाह, आजाद तो हो तुम (ताली बजाते हुए), लेकिन तुम्हारी आजादी यहीं तक सीमित है, लोगों को दबाने तक, सवालों को दबाने तक. जब भी कोई सवाल खड़ा करता है तुम आजादी का चोंगा ओढकर निकल पड़ते हो ट्रोल करने. अच्छा ये बताओ किस पार्टी के लिए ट्रोल कर रहे हो आजकल.

ट्रोल: ऐ लंपटचंद, छछुदंरदास. औकात में आ जाओ नहीं तो यहीं गाड़ दूंगा.

कंट्रोल: बस इतना ही कर सकते हो तुम, हूल दे सकते हो, इससे ज्यादा तुम्हारे बस का कुछ नहीं है, और ये जो तुम्हारी आवाज है ना जिसे तुम आजाद समझते हो ये भी तुम्हारी नहीं है, ये तुम्हारे उस मालिक की है जिसने तुम्हारी आत्मा को भी कैद कर लिया है. केरल से लेकर दिल्ली तक तुम ही तुम हो. कहीं डंडा तो कहीं कटार, कहीं छुरी तो कहीं तलवार, कहीं लात तो कहीं हाथ. अच्छा ये बताओ ये युद्ध है किस बात के लिए?

ट्रोल: अभी पता चल जाएगा, मैसेज चला गया है आते ही होंगे लोग तुम्हें प्रसाद देने के लिए.

कंट्रोल: अच्छा तो वो तुम्हारे गुलाम हैं, तुम अकेले नहीं चलते झुंड बनाकर चलते हो? एक बात समझ लो मैं झुंड नहीं बनाता, अगर मुझसे लड़ना है तो अकेले लड़ो अपने चेले चपाटियों को मत लाना.

ट्रोल: ठीक है लड़ ले तू अकेले ही (आस्तीन समेटेते हुए)

कंट्रोल: अरे नहीं भाई ऐसे थोड़े ना लड़ते है, तुम्हे हराने के लिए मेरी जुबान ही काफी है. खून-खराबा क्या करना. अब सुनो, तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं है, तुम उसी कैदी की तरह हो जो हमेशा इस भ्रम में रहता है कि वो आजाद है. तुम सांस भी लेते हो किसी और की इजाजत से, तुम हिलते भी हो तो पहले फोन लगाकर पूंछते हो, हिलूं कि ना हिलूं. हुम्हारे हाथों और पैरों में बड़ी-बड़ी बेड़ियां पड़ी हुई हैं. तुम किसी की बेहतरी के लिए नहीं लड़ रहे हो तुम तो बस अपने मालिकानों की जागीर बचाने के लिए लड़ा रहे हो. तुम तो किसी गरीब की आवाज भी नहीं बन सकते, तुम खुद की आवाज भी नहीं बन सकते, तुम बस चिल्ला सकते हो, गाली दे सकते हो, मार सकते हो, अश्लीलता के शिखर तक जा सकते हो. तुम वही हो जो आजाद होकर भी आजादी मांगता है, तुम वही हो जो मोहरा बनता है और मोहरे बनाता भी है. तुम वही हो जो भरे बाजार में जलील होता है और जलील करता भी है. तुम वही हो जो सरेआम पीटता है और पिटता भी है. तुम वही हो जो अलग-अलग चोंगे ओढ़कर पूरी दुनिया में विचरण करता है. तुम वही हो जो सबसे बड़ा गुलाम है, तुम वही हो जिसकी आवाज भी अपनी नहीं, तुम वही हो जिसकी आत्मा अपनी नहीं, तुम वही हो जिसका ईमान अपना नहीं, तुम वही हो जो भाग तो रहा है लेकिन ना मंजिल तुम्हारी अपनी है और ना ही रास्ता तुम्हारा अपना है. अब जा रहा हूं शाम को ऑनलाइन रहुंगा, ट्रोल करने का इरादा हो तो आ जाना वहीं मिलुंगा जहां दिनभर सभी अपना समय बर्बाद करते हैं आज तुम्हारा युद्ध देखने के लिए मैं भी ऑनलाइन रहूंगा.     

शाम को ट्रोल ऑनलाईन नहीं आया लेकिन कंट्रोल आया. ट्रोल अब कंट्रोल बनने की राह पर चुका था और कंट्रोल, ट्रोल बनने की राह पर चल पड़ा था.

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लेखक

प्रथम द्विवेदी प्रथम द्विवेदी @pratham643

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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