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Updated: 05 नवम्बर, 2021 07:44 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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चमगादड़ (Bats) पक्षी से इंसान शायद सबसे ज्यादा नफरत करता है. यह एकमात्र ऐसा पक्षी है तो स्तनधारी है और उड़ सकता है. मनुष्य समय-समय पर कई बीमारियों का दोष इस पर मढ़ता आया है. भले ही यह बात पूरी तरह सिद्ध हुई हो या नहीं.

असल में चमगादड़ को न्यूजीलैंड में ‘Bird Of The Year Award 2021' का अवार्ड मिला है. हालांकि यब खबर सुनकर लोग हैरान हैं. उनका कहना है कि चमगादड़ को ही यह अवार्ड क्यों दिया गया? यह बात लोगों के हलक से नीचे नहीं उतर रही कि चमगादड़ जैसे पापी पक्षी को यह अवार्ड कैसे मिल गया? इंसान की जज करने की जो आदत है उसने चमगादड़ को भी नहीं छोड़ा. इंसानों के हिसाब से कोरोना काल में जो कुछ हुआ वह चमगादड़ की गलती है, अपनी लापरवाही पर किसी का ध्यान नहीं गया.

कुछ ऐसा ही कोरोना काल के समय हुआ जब कोविड-19 वायरस का फैलाने का इल्जाम चमगादड़ पर लगा. चमगादड़ देखते ही देखते कोरोना वायरस फैलाने के लिए बदनाम हो गए. हालांकि वैज्ञानिकों ने पूरी तरह इस बात को प्रमाणित नहीं किया है. अभी यह बहस खत्म नहीं हुई कि चमगादडों को लेकर सोशल मीडिया पर एक नफरत की हवा चल पड़ी है.

बहुत से पक्षी प्रेमियों ने इस मामले में धोखाधड़ी का आरोप लगाया है. वे कहने को तो पक्षी प्रेमी हैं लेकिन चमगादड़ से नफरत करते हैं. ऐसे में हमें खुद से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि हम इंसान चमगादड़ों के पास गए थे या वे हमारे पास आए थे.

चमगादड़ों को आपने खाया ना कि उन्होंने आपको खाया तो फिर अपनी गलती पर उन्हें दोषी क्यों बना रहे हैं? क्या उन्होंने कहा था कि हमें मारकर खा जाओ? नहीं ना…तो फिर उन्हें कोरोना के लिए पापी बनाकर सजा क्यों दे रहे हैं? हम इंसान ही प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करते हैं. हमने ही जंगली जीवों के दुनियां में दखल दिया है. हमने पेड़ काटे, हमने जंगल जला दिए...जब उनके रहने और खाने की जगह हम छीन लेंगे तो वे हमारी दुनियां में आने के अलावा और भला कहां जाएंगे?

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वहीं इस मामले में बर्ड ऑफ द ईयर अवॉर्ड आयोजित करने वाली संस्था फॉरेस्ट एंड बर्ड ने कहा है कि ये संस्था का नहीं बल्कि आम लोगों का फैसला है. लोगों ने चमगादड़ों को वोट देकर जिताया है. इस वोट का आधार प्रीडेटर कंट्रोल, हैबिटेट रेस्टोरेशन और क्लाइमेट एक्शन होता है. यह भी देखा जाता है कि किसी विलुप्त हो रहे जीव को कैसे बचाया जा सकता है. असल में न्यूजीलैंड में लॉन्ग टेल्ड बैट यानी लंबी पूंछ वाला चमगादड़ रहता है. स्थानीय भाषा में पेकापेका-तोउ-रोआ (Pekapeka-tou-roa) कहा जाता है. इस चमगादड़ की प्रजाति न्यूजीलैंड में गंभीर तौर पर खतरे में है.

देश में जब बर्ड फ्लू फैला था तो सभी पक्षियों को सामूहिक रूप से मारने का आदेश दे दिया गया. चीन में एक सनक चढ़ी तो गौरैया को सामूहिक रूप से मारा गया. नजीता यह हुआ कि टिड्डे पूरी की पूरी फसल बर्बाद कर गए क्योंकि गौरैया खेत के कीड़े-मकोड़ों को खाती थीं. अभी कोरोना काल को ही याद कर लीजिए जब एक अफवाह की वजह से सामूहिक मुर्गियों को जिंदा जमीन में दफना दिया.

हम इंसान है हम जो चाहें कर सकते हैं क्योंकि हमसे बड़ा इस धरती पर कोई जीव नहीं है. अगर होता तो जिस तरह कोरोना वायरस इंसनों में फैला था वो इंसनों को मार देता. यह कहने में अजीब है लेकिन यही सच है कि हम बातें तो जीव हत्या ना करने की करते हैं लेकिन शाम को आराम से ऩॉनवेज उड़ा रहे होते हैं. मतलब इंसान कहता कुछ और है और करता कुछ और है...यानी दोहरे चरित्र में जीना हमारी इंसानी फिदरत है.

असल में हमने अपने मन में नफरत बिठी ली है जिसके आगे हमें कुछ दिखता नहीं है. एक अफवाह सामने आई और बाकी सारी खूबियों पर हम मिट्टी डालकर वही सच मान लेते हैं जो हवा चल रही होती है. जबकि चमगादड़ हर साल कीड़ों से फसल को बचाकर अमरीकी किसानों के 3.7 बिलियन अमरीकी डॉलर का फायदा करते हैं, क्योंकि वे कीड़े खाते हैं. इतन ही नहीं पेड़-पौधों की 500 से ज्यादा प्रजातियां परागण के लिए चमगादड़ पर निर्भर हैं.

चमगादड़ पेड़ के बीजों को वर्षावन में बिखेरते हैं जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायता मिलती है. चमगादड़ और इंसान सदियों से एक साथ रहते आए हैं और इससे दोनों को फायदा मिला है. अब अगर समस्या आ रही है तो गलती हमारी है. हमने प्रकृति तो इतना खोखला कर दिया कि अब हम ही खोलला होते जा रहे हैं.

पशु-पक्षी से हमें तभी खतरा होगा जब हम उनको खतरे में डालेंगे. इंसान वही काटता है जो बोता है. हो सकता है कि चमगादड़ से बीमारियां फैलती हैं लेकिन इसके जिम्मेदार भी हम हैं. हम ना उनकी दुनियां में घुसते ना वे हमारी दुनियां में आते. ना जंगल काटते, ना घास के मैदान साफ होते, ना इंसना उन्हें खाता और ना ही वे इंसानों के अनाज के भंडार तक आते जिससे हमारे बीच कथित रूप में वारयस आया...यह हकीकत है लेकिन हम इंसान तो सबसे बलवान हैं जो चाहें कर सकते हैं तो बस सामने वाले से घृणा करो और खुद को सबसे महान बताओ, कड़वा है मगर यही सच है.

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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