New

होम -> सोशल मीडिया

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 20 मार्च, 2019 06:55 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
  • Total Shares

पुलवामा हमले के बाद पत्रकार बरखा दत्त को गालियां देने, जान से मारने की धमकी देने और पुरुष जननांग की तस्वीर भेजने वाले 4 लोगों को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है. पुलिस की इस कार्रवाई पर संतोष व्‍य‍क्‍त किया जा सकता है, लेकिन इस कार्रवाई के बावजूद जिस तरह की बहस सोशल मीडिया पर चल रही है, वह बेहद दुर्भाग्‍यपूर्ण है. एक महिला के साथ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक व्‍यवहार करने वाले अपराधियों में 'राजनीति' और 'धर्म' ढूंढने के कारण यह मामला अपराध के दायरे से निकलकर फिर राजनीति के दायरे में आ गया है.

शिकायत करते वक्त बरखा ने ये कहा था कि राष्ट्रवाद के नाम व्यक्ति अश्लील तस्वीर भेज रहा है. लेकिन तस्वीर भेजने वाला अपराधी जब पकड़ में आया तो पता चला कि वो शख्स हिंदू नहीं मुसलमान है. यानी इस अपराध के जरिए यह भी साफ हो रहा है कि कुछ अपराधी सुनियोजित ढंग से अपनी पहचान बदलकर अपराध कर रहे हैं.

अब इस मामले पर एक बार फिर बरखा दत्त को गलत बताया जा रहा है क्योंकि उन्होंने अपराधी को एक हिंदू राष्ट्रवादी समझा था. हालांकि बरखा दत्त ने इस बात को साफ किया है कि उन्होंने अपराधी को न तो राष्ट्रवादी कहा था और न ही उसके धर्म पर बात की थी. उन्होंने बस इतना कहा था कि वो व्यक्ति अपनी डीपी की वजह से खुद को राष्ट्रवादी दर्शा रहा था.

barkha dutt tweetबरखा दत्त ने अश्लील तस्वीर लगाकर ट्विटर पर शिकायत की थी

क्या इस मामले पर बहस जरूरी थी?

इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि अश्लील तस्वीर भेजने वाला किस धर्म और किस जाति से था. क्या बहस करने के लिए यही एक बात रह गई थी. क्यों लोग इस गंभीर मुद्दे की गंभीरता को नजरंदाज करके उसमें दोबारा धर्म की राजनीति को ले आए. क्या ये काफी नहीं था कि सोशल मीडिया पर एक महिला के साथ बदतमीजी करने वाला अपराधी पकड़ा गया.

जिस मुद्दे को लेकर बरखा दत्त ने अपनी आवाज उठाई थी, कि किसी ने उनके साथ गलत किया वो कहीं पीछे ही रह गया, और पूरा मामला पॉलिटिकल हो गया. वो मुद्दा जिसपर बहस की गुंजाइश थी ही नहीं, उसपर जब लोगों ने हिंदू और मुस्लिम कहकर बहस करना शुरू कर दिया तो मामले को गंभीरता ही खो गई और वो कंट्रोवर्शियल बना दिया गया.

barkha dutt tweetबरखा दत्त ने कहा कि उन्होंने अपराधी को न तो राष्ट्रवादी कहा था और न ही उसके धर्म पर बात की थी

कौन हैं ये अपराधी ?

यहां पहले ये तय करने की जरूरत है कि जो लोग सोशल मीडिया पर इस तरह के अपमानजनक कमेंट्स करते हैं और उन्हें अश्लील तस्वीरें भेजते हैं वो आखिर हैं कौन? क्या वो पहले पॉलिटिकल हैं, बाद में अपराधी या पॉलिटिक्स की वजह से अपराधी बने हैं, या वो पहले से ही अपराधी थे और जब उन्हें सोशल मीडिया पर राजनीति पर बहस करने की जगह मुफ्त में मिली तो वो अपनी आपराधिक सोच को इस तरह व्यक्त करने लगे. अपराधी चाहे कोई भी हो, शोषण करने वाला, यौन शोषण करने वाला या साइबर बुलिंग करने वाला, आपराधिक मानसिकता वाले लोगों की मानसिकता कभी नहीं बदलती भले ही वो किसी भी मुद्दे पर बहस कर रहे हों.

मामला सिर्फ बरखा दत्त का नहीं है. सोशल प्लैटफॉर्म पर अपनी बात निडर होकर बोलने वाले हर महिला और पुरुष को इस तरह के कमेंट्स और धमकियां दी जाती हैं. फिर चाहे वो राइट विंग से हो या लेफ्ट विंग से. समस्या ये है कि लोग ये जज करने लग गए हैं कि ये सब किसी एजेंडे के तहत किया जा रहा है. लोग इस बात को भूल ही चुके हैं कि किसी भी मामले पर कोई तटस्थ राय भी हो सकती है. अपनी राय रखने वाले हर शख्स को सुनना पड़ता है कि वो इन पार्टियों का एजेंडा चला रहा है. बरखा दत्त तो सेलिब्रिटी जर्नलिस्ट हैं जिनके ट्वीट पर पुलिस हरकत में आई और एक्शन हुआ. लेकिन उनका क्या जो इतने बड़े नहीं हैं. इन अपराधियों के डर से लोग अब अपनी बात कहने से डरने लगे हैं.

सोशल मीडिया पर लोग हिंसक क्यों हो जाते हैं?

अगर बातचीत या बहस आमने-सामने की हो तो भले ही व्यक्ति इस बात का लिहाज कर लेता है कि सामने वाला व्यक्ति उम्र में बड़ा है या वो कोई महिला है, लेकिन सोशल मीडिया पर अगर किसी बात पर असहमति हो तो लोग जरा भी देर नहीं करते और रहा सहा लिहाज भी भूल जाते हैं. सोशल मीडिया पर लोगों का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है जो बेहद विकृत है. अपनी जिंदगी में लोग भले ही उतने हिंसक न दिखते हों, लेकिन सोशल मीडिया पर उनका गुस्सा और उनकी भड़ास आप उनके कमेंट्स को देखकर समझ सकते हैं. इनके लिए सोशल मीडिया बहती गंगा हो गई है जिसमें लोग हाथ धोकर निकल जाते हैं.

कैसे पॉलिटिकल हो जाते हैं मुद्दे...

आग में घी का काम करते हैं कुछ संजीदा शब्द जैसे हिंदू, मुस्लिम, लेफ्ट या राइट. इनके इस्तेमाल करते ही मामला व्यक्ति और मुद्दे से हटकर पॉलिटिकल हो जाता है. इस बहस में तब समझदार भी कूदते हैं और जो ट्रोलर्स हैं वो तो हैं ही. और जब बहस शुरू होती है और इनके कमेंट्स पर कुछ लाइक्स आ जाते हैं तब इन अपराधियों के हौसले और बढ़ जाते हैं. जिन लोगों को मुद्दा उनके हिसाब से पॉलिटिकली सूट करता है वो उसपर अपनी राय देकर चला जाता है. बाकी ट्रोलर्स उसे और खींचते रहते हैं. और मामला चाहे रेप का भी क्यों न हो, वो सांप्रदायिकता या राजनीति पर आकर खत्म होता है. आश्चर्य तो तब होता है जब महिलाओं को ट्रोल करने वाली खुद महिलाएं होती हैं.

समस्या वहीं की वहीं रहती है. सोशल मीडिया के अपराधियों का कुछ नहीं बिगड़ता. बेफिजूल की बहस इन्हें और शय देती है. और फिर इनके चेहरों पर न शर्म दिखती है और न डर. माथे पर तो रत्ती भर भी शिकन नहीं आती कि सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर ये सब हरकतें करने के बाद उसका होगा क्या. इससे चीजें विकृत हो रही हैं, जिसका कोई समाधान नहीं निकल रहा. साइबर कानून और फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन पर एक बार फिर विचार करने की जरूरत है. क्योंकि पत्रकार तो फिर भी बहुत छोटा होता, लोग तो यहां देश के प्रधानमंत्री को गालियां देने से नहीं चूकते.

ये भी पढ़ें-

प्रियंका गांधी ने गंगा जल से आचमन करके मोदी समर्थकों को खुश कर दिया!

पति को मंगलसूत्र पहनाने वाली इन महिलाओं को कोसने से पहले सोच को समझिए

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय