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Updated: 16 जनवरी, 2022 04:47 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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यूपी चुनाव 2022 की तारीखों के ऐलान के पहले से ही सीएम योगी आदित्यनाथ विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर कहते रहे थे कि पार्टी (भाजपा) जहां से कहेगी, वहां से चुनाव लड़ूंगा. इसके बाद से ही योगी आदित्यनाथ के अयोध्या, मथुरा और गोरखपुर सीट से यूपी विधानसभा चुनाव 2022 लड़ने के कयास लगाए जा रहे थे. हालांकि, भाजपा की ओर से औपचारिक घोषणा में साफ हो गया है कि सीएम योगी आदित्यनाथ अब गोरखपुर शहर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरेंगे. माना जा रहा है कि गोरखपुर शहर सीट से योगी आदित्यनाथ के सहारे भाजपा पूरे पूर्वांचल को साधने की जुगत में हैं. सूबे का मुखिया और भाजपा का सीएम फेस होने के नाते योगी आदित्यनाथ को यूपी चुनाव 2022 के सियासी मैदान में उतार कर भाजपा ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों की परेशानी बढ़ा दी है. भाजपा के इस फैसले के बाद सवाल उठना लाजिमी है कि योगी आदित्यनाथ को देख क्या अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी चुनाव लड़ने का साहस दिखाएंगे?

Yogi Adityanath Priyanka Gandhi Akhilesh Yadavयोगी आदित्यनाथ को चुनाव लड़ाकर भाजपा केवल पूर्वांचल ही नहीं साध रही है. और, भी बहुत कुछ है.

भाजपा ने कैसे बढ़ाई अखिलेश-प्रियंका की मुश्किलें?

यूपी चुनाव में केवल योगी आदित्यनाथ के ही चुनाव लड़ने की राजनीतिक चर्चा नहीं हो रही थी. बल्कि, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के बारे में भी चुनाव लड़ने को लेकर सवाल उठ रहे थे. और, ऐसे हर सवाल पर अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी की ओर से एक जैसा ही जवाब मिलता था कि अगर पार्टी चाहेगी, तो वह चुनाव लड़ेंगे. अब अगर प्रियंका गांधी की बात की जाए, तो वह कांग्रेस महासचिव तो हैं ही. इसके साथ ही वह कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार से जुड़ी हैं. इस हिसाब से अगर प्रियंका गांधी यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बना लें, तो कांग्रेस में शायद ही कोई नेता होगा, जो उन्हें ऐसा करने से रोक सकता हो. वैसे भी कांग्रेस को संजीवनी देने के लिए प्रियंका गांधी का सीएम फेस बनना जरूरी है. और, इसके बिना यूपी चुनाव में कांग्रेस के रिवाइवल की उम्मीद करना बेमानी होगा. क्योंकि, राहुल गांधी ने अमेठी से हारने के बाद पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया था. और, उन्हें प्रियंका गांधी ने ही दोबारा उत्तर प्रदेश में लॉन्च किया है.

वहीं, अखिलेश यादव की बात की जाए, तो 2012 के विधानसभा चुनाव में जब वह मुख्यमंत्री बने थे. तो, इसे पिता मुलायम सिंह यादव की वजह से मिला मौका माना गया था. क्योंकि, तत्कालीन सपा सरकार को लेकर कहा जाता था कि यह साढ़े तीन मुख्यमंत्रियों (अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव और आजम खान) की सरकार है. वैसे, उस समय अखिलेश यादव केवल समाजवादी पार्टी के सांसद हुआ करते थे. लेकिन, अब वह खुद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. गठबंधन से लेकर पार्टी में विपक्षी नेताओं को शामिल कराने तक के तमाम बड़े फैसला वह खुद लेते हैं. तो, उनके यूपी चुनाव लड़ने का फैसला पार्टी में कौन करेगा? ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भाजपा के योगी आदित्यनाथ को विधानसभा चुनाव लड़ाने के फैसले से कहीं न कहीं अखिलेश और प्रियंका पर भी दबाव होगा कि वे यूपी चुनाव लड़ने को लेकर अपना रुख साफ करें. 

अखिलेश ही सीएम फेस, तो चुनावी मैदान में उतरने से क्यों कतराना?

माना जा रहा है कि यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती समाजवादी पार्टी ही पेश कर रही है. छोटी पार्टियों से गठबंधन और भाजपा के कुछ ओबीसी मंत्रियों और विधायकों को समाजवादी पार्टी की साइकिल पर बिठा लेने से अखिलेश यादव काफी हद तक भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में आ गए हैं. 2012 में सपा सरकार का चेहरा रहे अखिलेश यादव इस बार भी पार्टी की ओर से सीएम फेस हैं. लेकिन, चुनाव लड़ने को लेकर गोलमोल जवाब देकर बचने की कोशिश करते हैं. अगर अखिलेश विधानसभा चुनाव न लड़ने का फैसला लेते हैं, तो जिस 'सामाजिक न्याय' की बात अखिलेश बार-बार दोहरा रहे हैं, उनके इस फैसले से सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह उसी पर लग जाएगा. और, भाजपा इसका इस्तेमाल अपने हिसाब से करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. क्योंकि, योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर शहर सीट से प्रत्याशी बनाने के बाद भाजपा के पास अखिलेश यादव को चुनाव लड़ने के लिए ललकारने का मौका मिल गया है. इसके बाद भी अगर अखिलेश चुनावी रण में नहीं उतरते हैं, तो भाजपा इसे अखिलेश के फेल सियासी समीकरणों की वजह से हारने के डर के तौर पर ही पेश करेगी.

हालांकि, अखिलेश यादव के लिए विधानसभा चुनाव जीतना कोई बड़ी बात नहीं होगी. लेकिन, तब क्या होगा, जब भाजपा की ओर से उन्हें गोरखपुर के लिए ही ललकार दिया जाएगा? वहीं, अखिलेश यादव फिलहाल आजमगढ़ लोकसभा सीट से सांसद हैं. अगर वह यूपी विधानसभा चुनाव लड़ते हैं और उनकी जीत के बावजूद समाजवादी पार्टी के पास सरकार बनाने का जादुई आंकड़ा नहीं आता है. तो, अखिलेश यादव निश्चित रूप से विधानसभा सदस्यता से ही इस्तीफा देंगे. और, ऐसा होने पर अखिलेश यादव के लिए आगे का दौर मुश्किल हो जाएगा. क्योंकि, तब भाजपा की ओर से इसे अवसरवादी राजनीति के तौर पर प्रचारित किया जाएगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अगर समाजवादी पार्टी यूपी चुनाव में कोई करिश्मा नहीं कर पाती है, तो अखिलेश यादव को हाशिये पर पहुंचाने में भाजपा को बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी. क्योंकि, तमाम पार्टियों से गठबंधन और दलबदलू नेताओं के बाद भी समाजवादी पार्टी की 'नई हवा है-नई सपा है' की चुनावी रणनीति फेल ही मानी जाएगी. 

प्रियंका गांधी सक्रिय हैं, लेकिन चुनाव नही लड़ेंगी?

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इन दिनों पार्टी के लिए संकटमोचक के तौर पर काम कर रही हैं. पंजाब हो या राजस्थान, प्रियंका गांधी ने इन दोनों ही जगहों के सियासी संकट को बखूबी मैनेज किया था. यूपी में भी सियासी तौर पर हाशिये पर जा चुकी कांग्रेस को फिर से जिलाने के लिए प्रियंका गांधी ने जमीनी तौर पर काम किया है. हाथरस से लेकर लखीमपुर खीरी तक हर जगह प्रियंका का चेहरा जरूर नजर आया है. वहीं, 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' के चुनावी कैंपेन के जरिये उन्होंने यूपी चुनाव को एक अलग ही दिशा में मोड़ दिया है. 40 फीसदी महिलाओं को प्रत्याशी बनाने की बात के साथ प्रियंका गांधी ने सूबे की आधी आबादी को कांग्रेस के पक्ष में लामबंद करने का बड़ा सियासी दांव खेला है. उन्नाव की दुष्कर्म पीड़िता की मां को कांग्रेस का टिकट देकर उन्होंने एक अलग ही तरह की राजनीति को पेश किया है. लेकिन, इन तमाम फैसले के बावजूद प्रियंका गांधी का यूपी चुनाव न लड़ना कांग्रेस को बैकफुट पर ढकेलने वाला फैसला होगा.

क्योंकि, कांग्रेस के 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' के चुनावी कैंपेन को काउंटर करने के लिए भाजपा की ओर से यही सवाल उठाया जा रहा है कि प्रियंका गांधी भी लड़की हैं, तो वह चुनाव क्यों नहीं लड़ रही हैं? दरअसल, प्रियंका गांधी भले ही कांग्रेस के लिए पूरी तरह से एक्टिव नजर आती हों, लेकिन, उन्होंने अभी तक एक भी चुनाव नहीं लड़ा है. कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार के किसी भी सदस्य ने आज तक विधानसभा चुनाव नही लड़ा है. इसे देखते हुए माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी का भी यूपी चुनाव 2022 के सियासी रण में उतरना मुमकिन नही हैं. लेकिन, अगर प्रियंका गांधी यूपी चुनाव लड़ने से इनकार करती हैं, तो यह कांग्रेस के चुनावी कैंपेन को ही कमजोर कर देगा. वहीं, भाजपा इस फैसले के सहारे सीधे कांग्रेस आलाकमान पर हमलावर होगी कि गांधी परिवार पर 'बॉर्न टू रूल' सिड्रोंम का असर छाया हुआ है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो प्रियंका गांधी का चुनाव न लड़ना कांग्रेस को ही भारी पड़ेगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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