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Updated: 13 जुलाई, 2017 08:41 PM
शरत प्रधान
शरत प्रधान
 
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केंद्र द्वारा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ उठाए गए भ्रष्टाचार विरोधी कदम से प्रेरणा लेकर अपने पूर्ववर्ती अखिलेश यादव के विभिन्न परियोजनाओं में जांच शुरू कर दी है. मुख्यमंत्री कार्यालय ने हजारों करोड़ रुपये की आवंटन से जुड़े प्रत्येक परियोजना पर एक विस्तृत स्थिति की रिपोर्ट मांगी है. आदित्यनाथ का मुख्य ध्यान 1500 करोड़ रुपये की लागत से शुरु की गई गोमती नदी परियोजना पर है. इसके तहत लखनऊ में नदी के दोनों किनारों का बड़े पैमाने पर सौंदर्यीकरण का काम शुरु किया गया है.

इस परियोजना को अखिलेश के चाचा और यूपी के तात्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव और उनके वफादार प्रिंसिपल सेक्रेटरी दीपक सिंघल ने शुरू किया थी. लेकिन यही परियोजना "चाचा" और "भतीजे" के बीच विवाद का जड़ बनी जिसका नतीजा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को हार के रुप में देखना पड़ा.

अन्य परियोजनाएं जिसपर योगी सरकार की कड़ी नजर है उसमें करीब 300 किलोमीटर की लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे भी शामिल है जिसे लगभग 12,000 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था.

Yogi Adityanath, Akhilehs Yadav, UPअखिलेश यादव की परियोजनाओं पर नजर

एक समय में लखनऊ मेट्रो रेल के अलावा एक्सप्रेसवे को ही अखिलेश यादव की सबसे बड़ी सफलता के रुप में देखा जाता था. लेकिन आदित्यनाथ सरकार को इसमें भी भ्रष्टाचार की बदबू आ रही है. और इसी शक के साथ मुख्यमंत्री ने परियोजना में प्रारंभिक जांच का आदेश दिया. हालांकि सरकार को बड़ा धक्का तब लगा जब एक्सप्रेसवे पर विभिन्न जगहों से एकत्रित किए गए नमूनों में दोयम दर्जे के सामानों के उपयोग पर पुष्टि करने में विफल रही. लेकिन यात्रियों ने रिकॉर्ड 22 महीनों में पूरी की गई इस छह लेन के एक्सप्रेसवे को देश में सर्वश्रेष्ठ एक्सप्रेसवे में से एक बताया है.

इस बीच अखिलेश यादव की महत्वाकांक्षी मेट्रो रेल परियोजना पर किसी तरह के जांच के कोई आदेश नहीं दिए गए हैं. हालांकि यात्रा के लिए इसका खुलना अभी बाकी है. सूत्रों का आरोप है कि भले ही मेट्रो का 8 किमी का पहला चरण पूरा हो चुका है, लेकिन इसके वाणिज्यिक उपयोग के लिए अंतिम मंजूरी को केंद्र सरकार ने जानबूझ कर रोक दिया क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसका लाभ ले जाएं.

एक सेवानिवृत्त मेट्रो अधिकारी ने कहा, 'इसके उद्घाटन को इसलिए स्थगित किया गया था ताकि बीजेपी सरकार को इस परियोजना का सारा श्रेय बीजेपी को मिले.'

आदित्यनाथ सरकार ने अखिलेश यादव की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम परियोजना को भी स्कैनर के अंदर लाने का भी विचार किया था. लेकिन जब पता चला कि इस स्टेडियम को सार्वजनिक-निजी साझेदारी यानी की पीपीपी के तहत बनाया जा रहा है तो जांच बंद कर दी गई. हालांकि, मेट्रो की तरह, काम पूरा हो जाने और अंतरराष्ट्रीय मैचों की मेजबानी के लिए तैयार हो जाने के बाद भी स्टेडियम का अभी तक उद्घाटन नहीं हुआ.

पता चला है कि मुख्यमंत्री ने पिछली सरकार द्वारा अपने आखिरी दिनों में शुरू की गई सभी परियोजनाओं और योजनाओं को रोकने का मन बना लिया है. एक अधिकारी ने कहा, 'जनवरी और मार्च 2017 के महीनों के बीच शुरू की गई सभी ऐसी परियोजनाओं में स्थिति की रिपोर्ट मांगी गई है.' उन्होंने कहा, 'जिन परियोजनाओं में 20 फीसदी से कम काम अभी तक किया जा चुका है उनपर असर पड़ने की संभावना है.'

संयोग से लखनऊ से बलिया को जोड़ने वाली पूर्वांचल एक्सप्रेसवे को मुख्य मंत्री की जांच से छूट दी जा सकती है. क्योंकि आदित्यनाथ की 'कर्मभूमि' गोरखपुर सहित उत्तर प्रदेश के अत्यधिक उपेक्षित पूर्वी जिलों पर वाणिज्यिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए यह परियोजना महत्वपूर्ण साबित होगी. अखिलेश ने अपनी सरकार के गिरने के कुछ ही समय पहले ही इस एक्सप्रेसवे की परियोजना को शुरु करने का आदेश दिया था. इसके पीछे उनका उद्देश्य उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्सों की कनेक्टिविटी को दिल्ली से बढ़ाना था. लखनऊ-आगरा और आगरा-नोएडा मार्ग पहले से ही वर्ल्ड क्लास एक्सप्रेसवे के जरिए दिल्ली से जुड़ चुके हैं.

भाई-भतीजावाद और निष्पक्षता की अनुपस्थिति का आरोप लगाते हुए आदित्यनाथ सरकार ने समाजवादी पेंशन के वितरण को भी समाप्त कर दिया था. इस योजना को बुढ़े और दुर्बल लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा के नाम पर महीने में 500-750 रुपये की सहायत दी जाती थी.

अखिलेश शासन द्वारा सभी पद्म और यश भारती (राज्य स्तरीय सम्मान) पुरस्कार विजेताओं को 50,000 रुपये की एक अन्य मासिक पेंशन को भी निलंबित कर दिया गया है.

हालांकि जांच किसी भी हल पर पहुंचने में विफल रही जिसके कारण गरीब और जरूरतमंद लाभार्थियों को गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा.

आदित्यनाथ की हाल ही में शुरू की गई जांच के साथ सबसे जरुरी सवाल ये है कि आखिर इस जांच के पीछे वास्तव में उनका इरादा क्या है? क्या वास्तव में वो अपराधियों को पकड़ना चाहते हैं या फिर ये सिर्फ उन नाटकों में से एक है जिसका उद्देश्य पूरी तरह से अपने राजनीतिक विरोधियों से बदला साधना है?

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शरत प्रधान शरत प्रधान

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के जानकार हैं.

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