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Updated: 25 मार्च, 2022 05:31 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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मैं तो एक योगी हूं. एक मुख्यमंत्री (Cm Yogi) के रूप में मैंने राजधर्म की शपथ (Oath Ceremony) ली है, अपने परिवार की नहीं. मुझे पूरे प्रदेश का ध्यान रखना होता है. मेरे लिए पूरे उत्तर प्रदेश के 25 करोड़ लोग ही मेरा परिवार हैं. मैं उनके सुख-दुख में सहभागी हूं.

ये लाइनें योगी आदित्यनाथ (Yogi Aditya Nath) ने तब कही थीं जब उनके सामने उनकी बड़ी बहन का संघर्ष दिखाया गया था. सीएम योगी टीवी की स्क्रीन पर देख रहे थे कि कैसे उनकी बहन मवेशियों को चारा खिला रही हैं. सीएम योगी को बताया गया कि, आपकी बहन घर से कई किलोमीटर पैदल चलकर चाय और प्रसाद की छोटी सी दुकान चलाने आती हैं.

Yogi Adityanath Oath Ceremony, Yogi Aditya Nath, Yogi Adityanath Oath, Cm Yogiसंन्यास की परंपरा को जानने वाले लोग जानते हैं कि एक संन्यासी अपनी पूर्ववर्ती पहचान नष्ट का देता है

इसके बाद जब योगी से पूछा गया कि आपको नहीं लगता कि सभी अपने परिवार का ध्यान रखते हैं, आप भी थोड़ा ख्याल रखते. इस पर योगी भावुक हो गए, उनकी आंखें भर आईं और उन्होंने रुंधे गले से कहा कि मैं एक योगी हूं, मैं क्या कर सकता हूं?

असल में उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दूसरे शपथ ग्रहण में शामिल होने के लिए कई बड़े संत भी लखनऊ पहुंचे हैं. इन संतों में आचार्य बालकृष्ण, परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष चिदानंद मुनि महाराज, रजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविन्द्र पुरी शामिल हैं.

सन्यासी कौन है?

सन्यासी का मतलब है, जीवन को मोक्ष प्राप्ति के लिए समर्पित कर देना. सन्यासी वो है जो साधु, संतों की संगति में रहते हुए मोक्ष प्राप्ति के लिए जीवन व्यतीत करता है. सन्यासी बनने के लिए व्यक्ति को कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है. सबसे पहले उसे संसारिक मोह-माया, लोभ, काम, अर्थ पर विजय प्राप्त करना जरूरी है.

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सन्यासी का सही अर्थ क्या है?

संन्यास की परंपरा को जानने वाले लोग जानते हैं कि एक संन्यासी अपनी पूर्ववर्ती पहचान नष्ट का देता है. कई लोग जल्दबाजी में मान लेते हैं कि संन्यासी का समाज से क्या लेना-देना? जबकि ऐसा नहीं है. उसका भी समाज से लेना-देना है. संन्यासी समाज को परिभाषित करता है.

कई लोग अजय सिंह बिष्ट उपनाम योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी को लेकर सवाल उठाते हैं. अगर वे थोड़ा धैर्य से सोचेंगे तो पाएंगे कि संन्यासी का राजनीति से एक नाभि-नाल की तरह ही संबंध रहा है. वैसे भी मुख्यमंत्री का पद उन्होंने लोक कल्याण के लिए लिया है, एक सन्यासी का अपना क्या स्वार्थ हो सकता है.

गोरखपंथी समाज क्या है

गोरखपंथी जीवनयापन के लिए समाज से संपर्क रखते थे. वे एक खुले बर्तन या नारियल की तुम्बी में भिक्षा मांगते थे. इस प्रकार वे समाज के धनवान सामंतशाही से ओतप्रोत जीवन जीने वाले को एक संदेश देते थे कि देखो ऐसे भी जिया सकता है. गोरखपंथी संतों ने अपनी विरक्ति भाव से धन के लालच को उसकी हैसियत दिखा दी. आप यह समझिए कि कैसे उनकी इस विरक्ति में एक राजनीतिक स्टैंड था.

आप पढ़ेगें तो पाएंगे कि इतिहासकार रोमिला थापर ने संन्यास को एक प्रति-संस्कृति बताया है. गोरखपंथ भी ऐसी ही संस्कृति को आगे ले जाता रहा है. अब जिस तरह धर्म के सांस्थानीकरण के साथ होता है उसी तरह गोरखपंथ के तमाम उपपंथों के मठ बने, धन और शक्ति इकट्ठा हुई. इसके बाद समाज में संन्यासियों को जो सम्मान प्राप्त था, उसमें सत्ता भी आकर जुड़ गई. इसके बाद उन्होंने मठों के संचालन से लेकर उत्तराधिकार के स्पष्ट नियम बनाए और इसतरह अपनी शक्ति को बचाया.

हमारे देश में शुरु से ही संन्यासी को राजदरबार में सम्मान और श्रद्धा भरी नजरों से देखा गया है. मैंने तो कई धारावाहिकों में राजा के बगल में बैठे संतों को देखा है. आप अपना बचपन याद करें तो आपको भी याद आ जाएगा कि कैसे ऋृषि-मुनि राजाओं को सही मार्ग दिखाते थे. भारत में रहले कालामुख महंत कुछ राजाओं के गुरु भी होते थे.

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योगी ने दीक्षा के बाद से ही राजनीति में कदम रखा था

गंग और होयसल तो राजाओं के यहां विचारों और योजनाओं के निर्माण में सक्रिय भागीदारी निभाते थे. योगी आदित्यनाथ ने भी अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा के बाद से ही राजनीति में कदम रख दिया था. मठ को आप समाज से एकदम बाहर की चीज नहीं समझ सकते. सीएम योगी ने अपनी सांस्कृतिक और परंपराओं का पालन करते हुए विवाह नहीं किया. वे अन्य सांसारिक लोगों की तरह यह मेरा है-यह मेरा है नहीं कहते हैं, वे लोगों में भेदभाव नहीं करते, उनके लिए सभी लोग एक समान हैं, उन्हें समाज का कल्याण करना, उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं है.

सामान्य भाषा में सन्यास क्या है

सामान्य भाषा में समझे तो जब कोई व्यक्ति इस संसार को समझ ले और फिर उसका मन वैराग्य की तरफ प्रबल होने लगे तो वह सन्यासी बन सकता है. सन्यास लेने वाले व्यक्ति को सबसे पहले उसे अपनी इन्द्रियों को वश में करना पड़ता है. उसे किसी आत्मज्ञानी गुरु के शरणागत होना पड़ता है. फिर उसे गुरु द्वारा बताए गए विधियों का पालन करते हुए आत्मदर्शन करने के लिए प्रयास करना पड़ता है. तभी वह सन्यासी बनने में सफल हो सकता है.

इन नियमों का पालन करने के लिए किसी व्यक्ति को सबसे पहले शरीर, मन और बुद्धि को चरणबद्ध तरीके से ढालना पड़ता है. उसे धन, काम, लोभ, मोह, माया का त्याग करना पड़ता है. यानी उसे गृहस्थ जीवन को छोड़ना पड़ता है. उसके अंदर किसी चीज को लेकर लालच नहीं रह जाता. जो मिल गया वही खा लिया, जो मिल गया पहन लिया, कहीं भी सो गया.

दो तरह का सन्यास

संन्यासी किसी बन्धन में नहीं रहता. सारे बन्धनों का त्याग करने के पश्चात्, जन्म-जन्मांतर के दैहिक और कार्मिक बन्धनों से मुक्त होने की प्रक्रिया ही संन्यास है. विगत सारे जन्मों के कर्मों का भस्मीकरण करते हुए, मोक्ष की ओर की गई यात्रा ही सच्चा 'सन्यास' है. दूसरी तरफ अघोषित, अनौपचारिक सन्यास के लिए किसी अखाड़े या आश्रम की आवश्यकता नहीं होती, अघोषित सन्यास, स्वयं की इच्छा से ही धारण कर लिया जाता है. इसके लिए दीक्षा की औपचारिकता नहीं होती. ध्यान, धारणा और समाधि जैसी प्रक्रियाओं का स्वयं ही पालन करते रहना होता है.

गुरुकुल के समय सन्यास

गुरुकुल में शिष्य शिक्षा लेने के बाद दो मार्ग चुन सकते थे. जिसे गृहस्थ जीवन में जाना है जाए, जिसे सन्यासी बनना है बन जाए. सन्यासी बनने वाले को अपने पुराने सभी संबंध मिटाने पड़ते. उसे एक साल तक घर से दूर जाकर सफेद वस्त्र धारण कर रहना पड़ता. वह अपने साथ एक दंड रखता था, जिसे उसके अतीत के रूप में देखा जाता. एक साल बाद जब वह लौटकर आता तो गांव के लोगों को इसकी सूचना दे दी जाती थी. जिसके बाद नदी किनारे उसकी चिता सजाई जाती, जिसपर शरीर के रूप में वह दंड जालाया जाता जिसे वह अपने साथ रखता था. यह मान लिया जाता है कि प्रतीकात्मक रूप से वह व्यक्ति अब इस दुनिया में नहीं रहा.

अपनी चिता स्वंय जलाते हुए वह सफेद कपड़े के साथ नदी में उतरता, तो उस कपड़े का एक छोरा आचार्य के हाथ में रहता. वह नदी में जाते हुए उस श्वेत वस्त्र के साथ सबकुछ त्याग देता. नदी की दूसरी ओर सन्यासियों का समूह, उसे अग्नि की लपटों में समा जाने के प्रतीक केसरी कपड़े में लपेट देते. इस तरह एक सन्यासी अपने साथ कुछ नहीं ले जाते. उसके पहने आखिरी सफेद कपड़े को उसकी पत्नी, परिवार वाले को दे दिया जाता है. इस तरह वह अपना सबकुछ छोड़कर एक सन्यासी बन जाता.

अजय सिंह बिष्ट के आदित्यनाथ योगी बनने की कहानी

योगी बनने से पहले आदित्यनाथ का नाम अजय सिंह बिष्ट था. उन्होंने 1977 में टिहरी गडवाल के गजा के स्कूल से अपनी शिक्षा की शुरुआत की. साल 1989 में उन्होंने ऋषिकेश के भरत मन्दिर इन्टर कॉलेज से 12th की परीक्षा पास की. इसके बाद 1992 में उन्होंने हेमवती नन्दन बहुगुणा गडवाल विश्वविद्यालय से गणित में B.Sc की. जानकारी के अनुसार, कॉलेज के समय से ही वे भाषण देने की कला में माहिर हैं. वे कॉलेज के समय से ही तेज-तर्रार और होनहार रहे हैं. उनका झुकाव पहले से ही अध्यात्म की तरफ था.

21 साल की उम्र में साल 1993 ही वे अपना घर-परिवार छोड़कर गोरखपुर आ गए थे. यहां उनकी मुलाकात गोरखनाथ मन्दिर के महंत अवैधनाथ से हुई. जिसके बाद उन्होंने महंत अवैधनाथ से दिक्षा ली और साल 1994 में सन्यासी बन गए. सन्यासी बनने के बाद एक नए जीवन की शुरुआत होती है. पुराने सभी पहचान मिट जाते हैं, यहां तक कि सन्यास, लेने वाले को नया नाम दिया जाता है. जिसके चलते अजय सिंह बिष्ट का नाम बदलकर योगी आदित्यनाथ रख दिया गया. एक सन्यासी पर उसकी पिछली जिंदगी का साया भी नहीं रहता.

जानकारी के अनुसार योगी के पिता आनंद सिंह बिष्ट संन्यास की दीक्षा लेने वाले बेटे को मनाने आए थे, लेकिन उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा था. मां मायूस हो गईं थीं, लेकिन बेटे के लिए लगातार दुआएं मांगती रहती हैं. हाल भी में इकलौती बहन शशि देवी ने भाई योगी ने निवेदन किया था कि एक बार घर आकर मां से मिल लो...आपको क्या लगता है क्या सीएम योगी की मां की यह इच्छा वे कभी पूरी कर पाएंगे?

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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