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Updated: 23 मार्च, 2018 09:33 PM
शरत प्रधान
शरत प्रधान
 
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फूलपुर और गोरखपुर उपचुनावों में मिली करारी हार ने भले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपनी सरकार के एक साल पूरा होने का जश्न मनाने के उत्साह को कम किया हो. हालांकि असहमति का पहला स्वर खुद योगी जी के कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभार की तरफ से उठे. राजभार बीजेपी के सहयोगी, सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष हैं.

हालांकि उत्तर प्रदेश के 403 सदस्यों वाले विधानसभा में भाजपा के 324 सदस्य हैं और राजभर की पार्टी के सिर्फ चार ही सदस्य हैं. लेकिन फिर भी राजभर ने जिस दृढ़ता से अपनी बात को रखा है उसे नजरअंदाज करना योगी आदित्यनाथ के लिए मुश्किल होगा.

राजभर जी ने कहा कि- सरकार का ध्यान सिर्फ मंदिरों पर है, गरीबों की भलाई में नहीं. वही गरीब जिसने उन्हें वोट देकर सत्ता तक पहुंचाया है. बातें तो बहुत बहुत बड़ी बड़ी की गई, लेकिन काम कुछ भी नहीं हुआ.

राजभर कहते हैं- हम सरकार और एनडीए के साथ हैं. लेकिन बीजेपी गठबंधन के धर्म को नहीं निभा रही है. मैंने अपनी चिंता इन्हें बार बार बताई है. लेकिन ये लोग अपने 325 सीट के नशे में पागल हो कर घूम रहे हैं.

राजभर सिंह के जवाब में यूपी के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह कहते हैं- राजभर जी हमारी सरकार में मंत्री हैं और हमारे सहयोगी भी हैं. अगर उन्हें कोई दिक्कत है तो उसे कैबिनेट के सामने रखना चाहिए. पब्लिक के सामने नहीं. आप सरकार हिस्सा होकर उसकी आलोचना भी करें ये नहीं होगा.

राजभर सिंह ने हर उस मुद्दे पर सरकार की खिंचाई की है जिसके लिए खुद सीएम योगी ने समय समय पर अपनी पीठ थपथपाई है. फिर चाहे वो राज्य की सुरक्षा व्यवस्था का मामला हो, विकास के उनके लंबे चौड़े वादों की बात हो, किसानों की भलाई का बड़बोलापन हो, राज्य में नौकरियों के सृजन और स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाने की बात हो या फिर राज्य के संपूर्ण विकास की बात हो.

जब 600 करोड़ रुपए की लागत से नए बने उसी लोक भवन में अपने एक साल की उपलब्धियों पर इतराने में व्यस्त थे जिसे उनके प्रतिद्वंदी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बनवाया था, तब राजभर ने उनके खिलाफ झंडा बुलंद कर किया हुआ था. रंगारंग कार्यक्रम से भरपूर उत्सव से दूरी बनाते हुए राजभर ने सरकार खिलाफ अपनी नाराजगी को खुलेआम जाहिर किया.

राजभर ने कहा- 'हमने भाजपा का साथ देने का फैसला इस तरह के तड़क-भड़क वाले कार्यक्रमों के आयोजन के लिए नहीं किया था, बल्कि समाज के वंचित और पिछड़े लोगों की भलाई और उनके उत्थान के लिए काम करने के लिए किया था. ये वो लोग हैं जिन्हें 27 फीसदी आरक्षण से कोई फायदा नहीं होने वाला क्योंकि उसपर कुछ ओबीसी लोगों ने कब्जा जमा लिया है.'

राजभर यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने आगे कहा- 'एक साल हो गया लेकिन अभी तक सरकार ने राजभर, बिंद, केवट, प्रजापति, लोहार जैसे पिछड़े लोगों को किए अपने वादे पूरे नहीं किए. हालत तो ये है कि उनके लिए घरों में शौचालय निर्माण जैसी कल्याणकारी योजनाओं की बात तो छोड़िए, हम अभी तक उन सभी को राशन कार्ड तक उपलब्ध नहीं करा पाए हैं.'

yogi adityanath, omprakash rajbharयोगी जी को अपने ही मंत्री के विरोध की आवाज को सुनना चाहिए

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा- "मुझे लगता है कि सीएम की प्राथमिकताएं मिक्स हो गई हैं. और उनकी ज्यादा दिलचस्पी मंदिरों के बनाने में है, फिर चाहे इसकी कीमत दो धर्मों या समुदायों के बीच हिंसा फैलानी ही क्यों न हो.' उन्होंने योगी जी के कानून व्यवस्था के दावों पर भी सवाल खड़ा करते हुए कहा- एक भी ऐसा दिन नहीं होता जब राज्य में कोई बड़ी घटना न हुई हो. आखिर कानून व्यवस्था बेहतर कैसे है या फिर पुरानी सरकार से अच्छी कैसे है? बदलाव कहां हुआ है? लेकिन फिर भी मुख्यमंत्री ये दावे करने में व्यस्त हैं कि उन्होंने राज्य को बदल कर रख दिया है. मैं ये सब मानने वाला नहीं."

राजभर ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलने के लिए समय मांगा था लेकिन उन्होंने उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया. राज्यसभा चुनावों में भाजपा अपने 9वें सदस्य को भेजने की तैयारी में है. उनकी इस तैयारी को झटका देने के स्वर में राजभर ने कहा कि- "अगर अमित शाह मुझसे नहीं मिलते तो मैं और मेरी पार्टी राज्यसभा चुनावों में वोट देने नहीं जाएंगे."

सालभर पहले जब योगी आदित्यनाथ ने राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब सभी को उनसे खुब उम्मीदें थीं. हो भी क्यों न आखिर राज्य के इतिहास में पहली बार एक भगवाधारी को मुख्यमंत्री पद पर बिठाया गया था. योगी की साफ और कर्मठ नेता की छवि होने के कारण लोगों को उम्मीद थी कि वो देश के सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य का चेहरा बदल कर रख देंगे.

लेकिन इन एक सालों में काम कम और मुंहबोली घोषणाएं ज्यादा हुई हैं. अपनी वाक् पटुता से योगी सभी को खुश करने में लगे रहे. 1100 से अधिक एनकांउटर जिसमें कुछ "निर्दोष" लोग भी मारे गए का खुलासा करके योगी जी ने सोचा कि राज्य में कानून व्यवस्था ठीक हो गई. उन्होंने ये चेक करना भी जरुरी नहीं समझा कि उसमें से 43 मृतक तो शातिर अपराधी भी नहीं थे. भले ही मुख्यमंत्री ये घोषणा करें कि जितने भी एनकाउंटर हुए हैं वो सभी ऐसे अपराधियों के हुए हैं जिनके सिर पर ईनाम जारी किया हुआ था. लेकिन सच्चाई ये है कि कुछ अपराधियों पर ईनाम एनकाउंटर के कुछ दिनों पहले ही घोषित किए गए थे. कुछ लोगों को कोर्ट से जमानत मिलने के कुछ दिनों बाद ही गोली मार दी गई थी.

लखनऊ में हुए हाई प्रोफाइल इंवेस्ट समिट के बाद योगी जी दावा कर रहे हैं राज्य में 5 लाख करोड़ का निवेश होगा. लेकिन उन्होंने बड़ी आसानी से इस बात को अनदेखा कर दिया कि यही औघोगिक घरानों ने पिछली सरकार के समय भी ऐसे ही वादे किए थे. और उन्हें अभी तक पूरा नहीं किया है. साथ ही योगी जी ने ये भी पता करने कि कोशिश नहीं की कि उन्ही घरानों ने पिछले कुछ महीनों में अलग अलग राज्यों में हुए ऐसे ही समिटों में हिस्सा लिया और इसी तरह की घोषणाएं की.

इसी तरह अपने ही क्षेत्र में ऑक्सीजन की कमी की वजह से 70 बच्चों की मौत के मामले को भी मानने के लिए तैयार नहीं हैं. क्षेत्र में पड़े कूड़े कचरे के अंबार को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैसे वो जगह हजारों बच्चों की जान लेने वाले दिमागी बुखार के वाइरस के फैलने के लिए मुफीद जगह बन गई है.

विडम्बना ये है कि जब मुख्यमंत्री एंटी करप्शन पोर्टल के लॉन्च की घोषणा करने में व्यस्त थे तो उसी समय राजभर द्वारा सरकार के भ्रष्टाचार रोक पाने में विफल होने के आरोप लगाए जा रहे थे. राजभर ने कहा- 'भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना तो दूर की बात, सरकार इसके बढ़ने पर भी नियंत्रण लगाने में फेल हो गई है. हर स्तर पर अवैध पैसे का रेट बढ़ गया है और इससे सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब लोग होते हैं.'

भले ही योगी आदित्यनाथ, राजभर के विरोध को दबाने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे और अपनी पूरी ताकत झोंक देंगे. लेकिन फिर भी सरकार के वर्षगांठ के मौके पर उठाए गए इन सवालों के जवाब उन्हें देना चाहिए.

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लेखक

शरत प्रधान शरत प्रधान

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के जानकार हैं.

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