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Updated: 03 मई, 2018 04:03 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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कर्नाटक विधानसभा के लिए 12 मई को वोट डाले जाने हैं और 15 मई को नतीजे आएंगे. नतीजे क्या होंगे किसे पता? मगर, बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा को नतीजे अपने पक्ष में ही नजर आ रहे हैं.

जीत को लेकर येदियुरप्पा को इतना भरोसा है कि उन्होंने अपने शपथग्रहण की तारीख तक मुकर्रर कर दी है, 'मैं 18 मई को शपथ लूंगा.' अपने दावे को मजबूती देने के लिए बताते भी हैं, 'मैंने प्रधानमंत्री से बेंगलुरू में रहने का अनुरोध किया है. हम पर्याप्त सीटें जीतने जा रहे हैं.'

कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके येदियुरप्पा का ये बयान तब आया है जब कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा की संभावना बन रही है. इंडिया टुडे के सर्वे से ये बात सामने आ चुकी है.

'त्रिशंकु विधानसभा हुई तो भी क्या सीएम वह बनेंगे?'

इंडिया टुडे के इस सवाल पर येदियुरप्पा कहते हैं, 'ये संभव ही नहीं है. यूपी में जो कुछ हुआ, वही कर्नाटक में भी होगा. यहां कोई त्रिशंकु विधानसभा नहीं होने जा रही, हमें पूर्ण बहुमत मिलेगा और हम अगली सरकार बनाएंगे.'

मोदी के साथ येदियुरप्पा की आखिरी रैली

चामराजनगर में हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में येदियुरप्पा मंच पर मौजूद थे. खास बात ये है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा आखिरी बार मोदी के साथ सार्वजनिक तौर पर मंच शेयर कर रहे थे.

narendra modi, bs yddyurappaमोदी के साथ येदियुरप्पा की आखिरी चुनावी रैली

असल में येदियुरप्पा को आलाकमान की ओर से पहले ही बता दिया गया है कि वो चुनाव प्रचार का रूट अपने हिसाब से अलग से बना लें. मतलब, प्रधानमंत्री और येदियुरप्पा दोनों की रैलियां होंगी, मगर साथ साथ नहीं. बीजेपी की ओर से इस बारे में बताया गया है कि ऐसा ज्यादा से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों के कवर करने के मकसद से किया गया है. हकीकत जो भी हो बीजेपी के इस कदम से कांग्रेस को सवाल पूछने का मौका तो मिल ही गया है.

पहले येदियुरप्पा और उसके बाद रेड्डी बंधु शुरू से ही कांग्रेस के निशाने पर रहे हैं. दिल्ली में जन-आक्रोश रैली में भी राहुल गांधी ने कहा था कि मंच पर जब प्रधानमंत्री मोदी होंगे तो उनके एक तरफ जेल जा चुके येदियुरप्पा खड़े होंगे और दूसरी तरफ जेल से छूटे रेड्डी बंधु. रेड्डी बंधुओं को क्लीन चिट देने पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी येदियुरप्पा पर हमला बोला था.

कहीं धूमल का हाल तो नहीं होने वाला

येदियुरप्पा ने खुद ही मीडिया को बताया था कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें अलग से अपनी चुनावी मुहिम तैयार करने को कहा था. येदियुरप्पा ने 10 मई तक रोजाना पांच रैलियां करने का लक्ष्य रखा था. वैसे फिलहाल कम से कम तीन रैली रोज तो कर ही रहे हैं.

दरअसल, येदियुरप्पा से अमित शाह नाराज बताये जाते हैं. नाराजगी का सबूत अमित शाह की बेल्लारी रैली के रद्द होने में खोजा जा रहा है. बेल्लारी सिटी से बीजेपी टिकट पर रेड्डी बंधुओं में से एक जी सोमशेखर रेड्डी चुनाव लड़ रहे हैं - और हरनपल्ली सीट से जी करुणाकरण रेड्डी. इंडियन एक्सप्रेस के सवाल के जवाब में येदियुरप्पा इसे लेकर किसी भी तरह की नकारात्मक छवि से इंकार करते हैं - बताते हैं कि उनके नाम पर हरी झंडी अमित शाह ने ही दिखायी है. साथ में दलील ये भी है कि बीजेपी ने जी जनार्दन रेड्डी को टिकट नहीं दिया है. इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में भी येदियुरप्पा का कहना रहा कि शाह को सिर्फ जी जनार्दन रेड्डी के को लेकर दिक्कत रही जिन्हें इलाके में खनन माफिया के तौर पर जाना जाता है.

amit shah, yeddyruppaउपवास साथ साथ, रैली में अलग अलग

रेड्डी बंधुओं को टिकट दिये जाने को लेकर येदियुरप्पा कहते हैं कि ये सब वो बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने के लिए कर रहे हैं. बावजूद इन सब के अमित शाह कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष येदियुरप्पा से खासे खफा हैं.

अमित शाह की नाराजगी की बड़ी वजह येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र हैं. वो वरुणा सीट से नामांकन करने ही जा रहे थे कि ऐन वक्त पर पीछे हटना पड़ा. इसकी घोषणा भी खुद येदियुरप्पा ने की. इस बात को लेकर विजयेंद्र के समर्थकों ने खूब बवाल भी किया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक येदियुरप्पा के पास दिल्ली से इसके लिए खास तौर पर फोन किया गया था. वरुणा सीट से ही सिद्धारमैया के बेटे यतींद्र चुनाव लड़ रहे हैं. सिद्धारमैया ने बेटे के लिए अपनी सीट छोड़ी है - और फिर चामुंडेश्वरी और बादामी से किस्मत आजमा रहे हैं.

येदियुरप्पा का ये मोदी कनेक्शन ही रहा जो उनके अनुभव का इस्तेमाल मार्गदर्शक मंडल की जगह कर्नाटक के लिए सीएम कैंडिडेट घोषित किया गया - जहां उनकी उम्र आड़े नहीं आयी. हालांकि, अब जो कुछ भी हो रहा है, उसने हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव की यादें ताजा कर दी है. हिमाचल प्रदेश में बीजेपी ने प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था. तब चर्चा ये भी रही कि अमित शाह उन्हें टिकट देने के पक्ष में भी नहीं थे. फिर पुरानी दोस्ती के बूते मोदी से दबाव डलवाकर धूमल टिकट तो हासिल कर लिये, लेकिन अपनी ही सीट से हार गये. कहीं कर्नाटक में भी हिमाचल का इतिहास तो नहीं दोहराया जाने वाला? येदियुरप्पा का भी धूमल जैसा ही हाल तो नहीं होने वाला? लक्षण कुछ ठीक नहीं लग रहे हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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