New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 08 मार्च, 2022 05:49 PM
अनु रॉय
अनु रॉय
  @anu.roy.31
  • Total Shares

बाक़ी सब कुछ ठीक है लेकिन एक चीज़ जो पिछले कुछ सालों में अपने काम के दौरान वर्क-प्लेस से सीखी और समझी है वो ये कि पुरुषों से ज़्यादा तकलीफ़ आपकी प्राग्रेस से वहां साथ काम कर रही औरतों को होती है. उन स्त्रियों में ख़ुद को बेहतर कैसे बनाएं से ज़्यादा स्ट्रॉंग इमोशन ये होता है कि दूसरी लड़की/औरत को आगे बढ़ने से कैसे रोका जाए. उसके काम की तारीफ़ उसे नहीं मिले, इन फ़ैक्ट उसकी मेहनत को भी अपने नाम कर लें बॉस के सामने. पुरुष इतना ज़्यादा पॉलिटिक्स नहीं करते जितना औरतें दूसरी औरतों के ख़िलाफ़ कर लेती हैं. पेट्रीआर्की के लिए अगर ख़ाली पुरुष ज़िम्मेदार होते तो आज दुनिया से ये टर्म ख़त्म हो चुका होता. स्त्रियां अपने मतलब के लिए पेट्रीआर्की को पालती हैं, बढ़ाती हैं.

ऑफ़िस छोड़िए सोसाइटी/मोहल्ले का उदाहरण भी देखिए. जितना जज औरतें, औरतों को करती हैं मर्द कभी नहीं करते. मर्द दूसरे तमाम तरीक़े अपना कर स्त्रियों को सताते हैं उनसे इनकार नहीं है लेकिन औरतें ज़िम्मेदार हैं अपनी हर हार के लिए. बताइए गोरी बहू के लिए कितने ससुर नाक भौं सिकुड़ाते मिलते हैं?

Womens Day, International Womens Day, Woman, Office, Work, Man, Politics, Patriarchy, Psychology महिलाओं के बीच की आपसी राजनीति में उनके करियर में तमाम तरह की बाधाएं लाती है

कितने ससुर को इस बात से तकलीफ़ होती है कि उनका बेटा बहू को रसोई में हेल्प करके जोरू का ग़ुलाम हुआ जा रहा है? सास को हर चीज़ से परेशानी होती है ज़्यादातर ससुर की तुलना में. अब अगर साइकोलॉजी की बात करें तो एक चीज़ समझ में आती है कि स्त्रियां ही आख़िर अपने साथ वाली स्त्रियों से इतनी नफ़रत या चिढ़तीं क्यों हैं?

तो इसका जो सबसे मज़बूत पक्ष दिखता है वो ये कि ये स्त्रियां जो साथ वाली स्त्रियों से बैर रखती हैं वो कहीं न कहीं खुद को ले कर ख़ुश नहीं हैं. वो अपने आप में कुंठित हैं. वो असुरक्षित महसूस करती हैं ख़ुद से ज़्यादा मज़बूत/शिक्षित/आज़ाद लड़कियों/औरतों को देख कर. ये वक़्त उनकी ज़िंदगी में वो रहा होगा जब वो ऐसी ही ज़िंदगी जीना चाहती रही होंगी लेकिन जो चाह रही थीं वो हो न पायीं इसलिए कड़वाहट उनके अंदर भर गयी.

वही कड़वाहट ईर्ष्या/जलन तो कभी साथ की औरतों पर अत्याचार करके निकलता रहता है. और पुरुष की सत्ता बची रहे इसलिए ऐसी औरतों को वो सपोर्ट करते हैं. पेट्रीआर्की का खेल ऐसे ही तो चलता है.

International women's day पर चाहे कितने लम्बे लेख लिख दिए जाएं, कितने ही भाषण कर लिए जाएं जब तक औरतें, औरतों को सपोर्ट नहीं करेंगी हमें कोई जीत हासिल नहीं होने वाली. काश कि औरतें साथ वाली औरतों को आगे लाने में मदद करती न कि उसके बढ़ते कदम को पीछे खींचने की प्लानिंग प्लॉटिंग!

ये भी पढ़ें -

Women's Day 2022 : देवी को छोड़िए, वो मनुष्य का दर्जा पाने के लिए युद्धरत है!

सेनेटरी नैपकिन का नाम व्हिस्पर क्यों है? औरतों के मामले फुसफुसाने वाले क्‍यों हैं?

Ind Vs Pak: महिला वर्ल्ड कप से ज्यादा बात 'मातृत्व' वाले फोटो पर हुई, क्या ये खुशी की बात है?

लेखक

अनु रॉय अनु रॉय @anu.roy.31

लेखक स्वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं, और महिला-बाल अधिकारों के लिए काम करती हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय