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Updated: 16 सितम्बर, 2016 09:15 PM
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कहीं अरविंद केजरीवाल ही पंजाब में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तो नहीं होंगे? उस दिन जब सुच्चा सिंह छोटेपुर ने ऐसी बात कही तो शायद ही किसी ने उनके दावे को गंभीरता से लिया हो, लेकिन दबी जबान में ये संभावना चर्चाओं का हिस्सा बन रही है.

राजनीतिक हालात, आप की जरूरत और केजरीवाल की सियासी स्टाइल में ऐसे संभावनाओं की काफी गुंजाइश बनती है.

छोटेपुर का दावा

सुच्चा सिंह का दावा था कि पंजाब में मुख्यमंत्री पद के लिए खुद अरविंद केजरीवाल या फिर उनकी पत्नी सुनीता के लिए रास्ता साफ किया जा रहा है. सुच्चा सिंह पंजाब में आप के संयोजक रह चुके हैं और हाल ही में उन्हें आप से बर्खास्त कर दिया गया.

सुच्चा ने ये भी बताया कि केजरीवाल, सुनीता केजरीवाल को फतेहगढ़ साहिब से चुनाव लड़ा सकते हैं. तर्क दिया - चूंकि सुनीता फतेहगढ़ की रहने वाली हैं इसलिए इस बात की पूरी संभावना है.

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सुच्चा का दावा पहली ही नजर में इसलिए खारिज हो गया क्योंकि आप के संविधान के अनुसार एक परिवार के दो लोग कभी चुनाव नहीं लड़ सकते. पर संभवानाओं के द्वार थोड़ खुले से भी रह गये ये सोच कर कि संविधान में संशोधन कोई बड़ी बात तो है नहीं जिसके लिए केजरीवाल को केंद्र की मोदी सरकार या दिल्ली के उप राज्यपाल का मुहं देखना पड़ेगा.

जब सिद्धू को आप का सीएम उम्मीदवार बनाये जाने की बात छिड़ी तो केजरीवाल ने ट्वीट कर बताया कि उन्होंने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी है. अब जबकि सिद्धू एपिसोड खत्म हो चुका है कयास लगाये जा सकते हैं कि उन्हें सिर्फ स्टार प्रचारक तक सीमित रखने और उनकी पत्नी को मिनिस्टर के तौर पर जगह दिये जाने के पीछे ये भी वजह हो सकती है.

अंग्रेजी अखबार हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर आप के सूत्रों पर यकीन किया जाये तो केजरीवाल अगले साल मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं.

ऐसी संभावनाओं के पीछे सबसे बड़ा तर्क है कि चूंकि दिल्ली में आप का मकसद पूरा नहीं हो पा रहा है इसलिये ऐसा करना केजरीवाल की जरूरत है. केजरीवाल गवर्नेंस की मिसाल कायम करना चाहते हैं, लेकिन संवैधानिक बाध्यताओं के चलते दिल्ली में ये चीजें नाममुमकिन हो जा रही हैं. अगर पंजाब में पार्टी जीत जाती है तो मिसाल कायम की जा सकती है.

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सुच्चा सिंह छोटेपुर के साथ अरविंद केजरीाल [फाइल फोटो]

केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री तो हैं लेकिन अपने पास शुरू से ही उन्होंने कोई विभाग नहीं रखा हुआ है. हो सकता है एक दूरगामी सोच के तहत ही केजरीवाल ने ये फैसला किया हो.

केजरीवाल की प्रवृत्ति

केजरीवाले आंदोलनकारी और जुझारू मिजाज को देखते हुए इस संभावना को सीधे तौर पर खारिज करना मुश्किल हो रहा है.

रामलीला आंदोलन के बाद केजरीवाल ने अपने तात्कालिक मेंटोर अन्ना हजारे की बात को भी दरकिनार करते हुए राजनीतिक पार्टी बनाई. जब चुनाव हुए तो केजरीवाल ने सीधे शीला दीक्षित को चुनौती और फिर शिकस्त भी दी.

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तब चुनावों में केजरीवाल सत्ता में आने पर शीला दीक्षित को जेल भेजने की बात करते थे. अब भी वो पंजाब के मिनिस्टर मजीठिया को सलाखों के पीछे भेजने की बात करते हैं. बादल परिवार के प्रति भी कुछ ऐसे ही इरादे का गाहे बगाहे इजहार करते रहते हैं.

बनारस में नरेंद्र मोदी को चुनौती वो दे ही चुके हैं - और सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को टारगेट करते करते अब मोदी के खिलाफ हर पल मोर्चा खोले रहते हैं.

केजरीवाल का प्लस प्वाइंट

दिल्ली में उनके कामकाज को थोड़ी देर के लिए भूल जाया जाये तो उनकी छवि बेदाग है. केजरीवाल ने एक ऐसे नेता की छवि बनाई है जो सबसे निडर और किसी को भी कुछ भी कह देने का माद्दा रखता हो. डंके की चोट पर वो प्रधानमंत्री कायर और मनोरोगी बताते हैं तो ट्वीट कर पत्रकार शेखर गुप्ता को दलाल कहने में जरा भी संकोच नहीं करते.

केजरीवाल की कमजोरी

केजरीवाल पर एक बार भगोड़ा होने का ठप्पा लग चुका है. बड़ी मुश्किल से उन्होंने दिल्ली में शानदार वापसी की है. लेकिन ऐसा मौका बार बार मिले इस बात की तो कतई गारंटी नहीं है.

खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जोशीले योद्धा के तौर पर प्रोजेक्ट कर चुके केजरीवाल की पार्टी भी अब बाकियों जैसी लगने लगी है. कभी फर्जी डिग्री तो कभी डोमेस्टिक वायलेंस तो कभी सेक्स सीडी को लेकर उनके मंत्री टीवी चैनलों के लिए मसाला परोसते रहे हैं.

आम आदमी पार्टी के बागी केजरीवाल की छवि किसी तानाशाह के तौर पर देखते हैं. सिद्धू ने भी केजरीवाल पर तानाशाही और चापलूस पसंद होने का इल्जाम लगाया है.

बड़ा सवाल ये है कि जिस मोदी लहर में विधान सभा स्तर के नेता लोक सभा पहुंच गये उसमें भी अरुण जेटली जैसा नेता पंजाब में हार गया. फिर केजरीवाल के जीतने की संभवाना कितनी बच पाती है.

केजरीवाल की सबसे बड़ी कमजोरी उनका पंजाब की बजाये हरियाणा से होना. माना जाता है कि पंजाबी हरियाणा वालों को फूटी आंख देखना पसंद नहीं करते.

बावजूद इन सबके संभावनाओं के सागर में कब क्या निकल आए अंदाजा लगाना मुश्किल है. चलते चलते एक ट्वीट केजरीवाल की सियासत पर सटीक टिप्पणी है.

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