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Updated: 04 मई, 2022 04:09 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. और, सूबे में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाने के लिए आम आदमी पार्टी ने भी ताल ठोंक दी है. लेकिन, गुजरात में कांग्रेस के लिए असली समस्या बनकर उभरे हैं पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल. बीते कई दिनों से हार्दिक पटेल लगातार कांग्रेस के शीर्ष और स्थानीय नेतृत्व पर निशाना साधते रहे हैं. और, हाल ही में उन्होंने अपने ट्विटर बायो से कांग्रेस का नाम हटा दिया है. हालांकि, हार्दिक पटेल ने उम्मीद जताई थी कि शीर्ष नेतृत्व उन्हें पार्टी में बनाए रखने के लिए कोई रास्ता खोज लेंगे. जिसके बाद सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हार्दिक से बात कर जल्द ही गुजरात में बड़ा निर्णय लेने का आश्वासन दिया है.

वैसे, हार्दिक पटेल का ये राजनीतिक 'स्विच शॉट' काफी हद कर पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की तरह नजर आ रहा है. क्योंकि, पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले नवजोत सिंह सिद्धू को ने अपने बगावती तेवरों के जरिये कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखवा दिया था. और, ऐसा करने में सिद्धू को कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का भरपूर साथ मिला था. हालांकि, नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले खुद को सीएम उम्मीदवार घोषित करने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ कई बयान दिए थे. पंजाब में कांग्रेस को मिली हार के बाद अब सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाया जा चुका है. और, उनके खिलाफ एक्शन लेने की मांग करते हुए शीर्ष नेतृत्व को पत्र भी भेज दिया गया है.

Hardik Patel Gujarat Assembly election 2022 हार्दिक पटेल का राजनीतिक 'स्विच शॉट' काफी हद कर पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की तरह नजर आ रहा है.

गुजरात में इस बात की संभावना है कि कांग्रेस आलाकमान एक बार फिर से पंजाब वाला ही दांव खेले. क्योंकि, गुजरात में कांग्रेस को जीतने के लिए हार्दिक पटेल जैसे ही युवा और कद्दावर नेता की जरूरत है. क्योंकि, गुजरात कांग्रेस में भी गुटबाजी अपने चरम पर है. इसे खत्म करने के लिए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व गुजरात विधानसभा चुनाव से हार्दिक पटेल को नवजोत सिंह सिद्धू की तरह ही इस्तेमाल कर सकता है. वहीं, कांग्रेस के पास पाटीदार समुदाय को साधने वाला हार्दिक पटेल के कद का कोई नेता भी नहीं है, तो, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या हार्दिक पटेल खुद को सिद्धू जैसा 'दर्शानी घोड़ा' बनाने के लिए तैयार होंगे?

गुजरात में हार्दिक पटेल नही हैं 'दर्शानी घोड़ा'

नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के लिए 'दर्शानी घोड़ा नहीं बन सकता' जैसे कई बयान दिए थे. पंजाब चुनाव के नतीजों को देखकर कहा जा सकता है कि अपनी ही पार्टी के खिलाफ सिद्धू के इन बयानों ने ही चुनाव से पहले कांग्रेस के सामने असहज स्थिति पैदा कर दी थी. हालांकि, इसके बावजूद कांग्रेस आलकमान ने सिद्धू के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. क्योंकि, कांग्रेस को चुनाव में नुकसान की आशंका थी. लेकिन, चुनावों के बाद अब नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का माहौल बनाया जाने लगा है. खैर, हार्दिक पटेल इस मामले में नवजोत सिंह सिद्धू से पूरी तरह अलग है.

गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में से करीब 70 सीटों पर हार्दिक पटेल की जाति वाले पाटीदार समुदाय का प्रभाव माना जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो 70 सीटों पर पाटीदार समुदाय अपने वोटों के जरिये जीत और हार तय करता है. 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में पाटीदार समुदाय भाजपा से छिटककर कांग्रेस के पाले गया था. भाजपा को पाटीदार समुदाय का 49.1 फीसदी वोट मिला था. जबकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में ये आंकड़ा करीब 60 फीसदी रहा था. लेकिन, इस बदलाव का नतीजा 2017 के गुजरात चुनाव में दिखा था. जहां भाजपा 99 सीटों पर सिमट गई थी. और, कांग्रेस की सीटें बढ़कर 82 हो गई थीं. उस दौरान कांग्रेस को हार्दिक पटेल का अघोषित समर्थन मिला हुआ था.

वैसे, आम आदमी पार्टी के गुजरात में कदम रखने से पाटीदार समुदाय के वोटों में बंटवारे की संभावना भी पैदा हो गई है. लेकिन, हार्दिक पटेल इसे काफी हद तक रोक सकते हैं. इस स्थिति में कांग्रेस हार्दिक पटेल को हल्के में लेने की गलती नहीं कर सकती है. अगर ऐसा होता है, तो सीधे तौर पर आम आदमी पार्टी ही मजबूत होगी. क्योंकि, अरविंद केजरीवाल पंजाब के सीएम भगवंत मान की तरह ही गुजरात में ऐसा चेहरा खोज रहे हैं, जो पार्टी को स्थापित करने में मदद करे. और, हार्दिक पटेल उस कैटेगरी में सबसे ऊपर हैं. दरअसल, आम आदमी पार्टी की ओर से हार्दिक पटेल को पहले ही पार्टी में शामिल होने का ऑफर दे दिया गया है. लेकिन, कांग्रेस को शक्ति सिंह गोहिल, भरत सिंह सोलंकी, जगदीश ठाकोर जैसे नेताओं से निपटना होगा.

क्या हार्दिक के जाने से बढ़ेंगी कांग्रेस की चुनौतियां?

बीते दिनों चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से मुलाकात के दौरान पाटीदार समाज के एक चर्चित नेता नरेश पटेल के पार्टी में शामिल होने की संभावनाएं जताई जा रही थीं. कहा जा रहा था कि अगर प्रशांत किशोर की कांग्रेस में एंट्री होती है, तो नरेश पटेल इस चुनावी पैकेज के बोनस के तौर पर पार्टी में आएंगे. लेकिन, न प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल हुए और न ही नरेश पटेल की कांग्रेस में एंट्री हुई. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कांग्रेस के पास हार्दिक पटेल को छोड़कर पाटीदार समुदाय का कोई बड़ा नेता नहीं है. लेकिन, ऐसी चर्चा है कि गुजरात कांग्रेस के नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व को बताया है कि हार्दिक पटेल के पार्टी छोड़ कर जाने से पार्टी को कोई खास सियासी नुकसान नहीं है.

कांग्रेस ने गुजरात में अपने पिछले फॉर्मूले पर ही चलने का मन बनाया है. दरअसल, कांग्रेस क्षत्रिय, आदिवासी, दलित, मुस्लिम मतदाताओं को साथ में लाने की कोशिश में है. और, इसमें पटेल समुदाय के मतदाताओं को भी जोड़ने की कोशिश कर रही है. जिसके चलते अभी भी कयास लगाए जा रहे हैं कि नरेश पटेल कांग्रेस में शामिल होने के लिए तैयार बैठे हैं. लेकिन, इसके लिए नरेश पटेल ने खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने की मांग है. हालांकि, कांग्रेस में हार्दिक पटेल के रहते ये संभव नहीं लगता है. अगर ऐसा होता है, तो 'स्विच शॉट' खेलने वाले हार्दिक राजनीतिक पाला बदलने में देर नहीं लगाएंगे. क्योंकि, हार्दिक पटेल पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को कांग्रेस द्वारा 'दर्शानी घोड़ा' बनाने के एक्शन से पहले ही परिचित होंगे.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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