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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 25 मई, 2021 10:12 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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किसान आंदोलन में सोशल मीडिया पर चल रही 'टूलकिट' और OTT प्लेटफॉर्म पर 'तांडव' वेब सीरीज के बाद केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म के लिए फरवरी के महीने में गाइडलाइंस जारी की थी. सोशल मीडिया कंपनियों WhatsApp, Twitter और Facebook समेत तमाम OTT प्लेटफॉर्म के लिए इन गाइडलाइंस को मानने के लिए तीन महीने का समय दिया गया था, जिसकी मियाद आज यानी 25 मई को खत्म हो जाएगी. अगर ये सोशल मीडिया कंपनियां इन गाइडलाइंस का पालन नहीं करती हैं, तो इनका इंटरमीडियरी स्टेटस (Intermediary) छिन सकता है. साथ ही इन पर पोस्ट किए गए किसी आपत्तिजनक कंटेंट के लिए IT एक्ट के अनुसार कंपनियों के खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज किया जा सकता है.

अब तक केवल फेसबुक की ओर से ही इस बाबत जवाब सामने आया है. फेसबुक के प्रवक्ता ने कहा है कि हमारा मकसद आईटी नियमों के प्रावधानों का पालन करना है और कुछ मुद्दों पर सरकार से चर्चा जारी रखेगी. इंस्टाग्राम भी फेसबुक का ही प्लेटफॉर्म है, तो इसे साझा बयान माना जा सकता है. लेकिन, सोशल मीडिया कंपनियों ट्विटर और व्हाट्सएप की ओर से अभी तक कोई बयान सामने नहीं आया है. हालांकि, व्हाट्सएप ने अपनी प्राइवेसी पॉलिसी को लेकर कहा है कि कंपनी भारत में व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा (PDP) कानून लागू होने तक इस रुख को बनाए रखेगी. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सोशल मीडिया कंपनियां भारत सरकार के आगे अपनी 'चौधराहट' सरेंडर करेंगी?

व्हाट्सएप ने अपनी प्राइवेसी पॉलिसी को लेकर कहा है कि कंपनी भारत में व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा (PDP) कानून लागू होने तक इस रुख को बनाए रखेगी.व्हाट्सएप ने अपनी प्राइवेसी पॉलिसी को लेकर कहा है कि कंपनी भारत में व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा (PDP) कानून लागू होने तक इस रुख को बनाए रखेगी.

सरकार क्या चाहती है?

टूलकिट और तांडव वेबसीरीज पर बवाल के बाद केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म के लिए गाइडलाइंस जारी कर चीफ कॉम्प्लियांस ऑफिसर, नोडल कॉन्टेक्ट पर्सन और रेसिडेंट ग्रेवांस ऑफिसर नियुक्त करने को कहा था. केंद्र सरकार का मानना है कि सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म सेल्फ रेगुलेशन का कोड का पालन नहीं करते हैं. कई बार सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म पर ऐसे कंटेंट साझा किए जाते हैं, जिसकी वजह से देश की संप्रभुता, सुरक्षा, विदेशों से संबंध और कानून-व्यवस्था जैसे अहम मामलों पर खतरा पैदा होता रहता है.

केंद्र सरकार ने इन अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनियों को भारत में ही अपना ऑफिस बनाने और किसी भी शिकायत का 15 दिनों में निवारण करने के लिए कमेटी बनाने का आदेश दिया था. वर्तमान में सोशल मीडिया कंपनियों की व्यवस्था ऐसी है कि गाइडलाइंस का पालन करने के लिए भी ये अमेरिका स्थित अपने ऑफिस की ओर मुंह कर लेती हैं. ट्विटर और व्हाट्सएप जैसी कंपनियों ने गाइडलाइंस के पालन के लिए केंद्र सरकार से 6 महीनों का समय मांगा था. दरअसल, अमेरिका स्थित इन कंपनियों के हेडक्वाटर्स से गाइडलाइंस का पालन करना है या नहीं को लेकर अभी भी प्रतीक्षा की जा रही है.

समस्या की मुख्य जड़ 'सेंशरशिप' ही है.समस्या की मुख्य जड़ 'सेंशरशिप' ही है.

सारा खेल 'सेंसरशिप' का

केंद्र सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस में सोशल मीडिया कंपनियों और OTT प्लेटफॉर्म से सेल्फ रेगुलेशन के लिए एक कमेटी बनाने को कहा गया था. इस कमेटी में सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज या विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग की गई थी. जिससे सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कंटेंट को नियंत्रित किया जा सके. सरकार के अनुसार, जिस तरह फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड के एथिक्स और कोड लागू होते हैं. उसी तरह ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर भी उम्र के हिसाब से सर्टिफिकेशन हो और भ्रामक या ऐसे कंटेंट जिसकी वजह से देश की सुरक्षा, कानून-व्यवस्था आदि पर खतरा हो, उन्हें तुरंत हटाया जा सके.

केंद्र सरकार की गाइडलाइंस का पालन करने के लिए ये कंपनियां अमेरिका स्थित हेडक्वाटर्स की प्रतिक्रिया का इंतजार करती हैं, तो किसी कंटेंट को हटाने के आदेश पर भी ये कंपनियां अपने मुख्यालय की प्रतिक्रिया का इंतजार करती हैं. केंद्र सरकार का मानना है कि इस स्थिति में देश के लिए खतरा पैदा हो सकता है. इन सोशल मीडिया कंपनियों को भारत में ही ऑफिस बनाकर काम करना होगा और सरकार या कोर्ट के आदेश पर कंटेंट को तुरंत हटाना होगा. समस्या की मुख्य जड़ 'सेंशरशिप' ही है. दरअसल, केंद्र सरकार की ओर से सोशल मीडिया कंपनियों को इंटरमीडियरी स्टेटस यानी बिचौलियों का दर्जा मिला हुआ है. जिसकी वजह से किसी यूजर के आपत्तिजनक कंटेंट पर इन कंपनियों को कोर्ट में पार्टी नहीं बनाया जा सकता है.

'फ्री स्पीच' का हवाला देते हुए ट्विटर लगातार मनमानी करता रहा है. माइक्रोब्‍लॉगिंग साइट ट्विटर ने हाल ही में भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा के एक ट्वीट पर 'मैनिपुलेटेड मीडिया' (Manipulated Media) का लेबल भी लगा दिया है. वहीं, किसान आंदोलन को लेकर फैलाई गए भ्रामक कंटेंट, CAA जैसे मुद्दों पर ट्विटर की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई थी. ओटीटी प्लेटफॉर्म भी ऐसे कई कंटेंट प्रसारित करते हैं, जिससे समस्याएं पैदा हो जाती हैं. इन पर कंटेंट को लेकर कोई सेंसर बोर्ड नहीं है, जिसकी वजह से हिंसा से भरा या अश्लील कंटेंट भी सबके लिए आसानी से उपलब्ध हो जाता है. सरकार इसी पर रोक लगाना चाहती है.

किसान आंदोलन में टूलकिट समेत कई हैशटैग पर केंद्र सरकार ने आपत्ति जताई थी.किसान आंदोलन में टूलकिट समेत कई हैशटैग पर केंद्र सरकार ने आपत्ति जताई थी.

सरकार ऐसा क्यों चाहती है?

किसान आंदोलन में टूलकिट समेत कई हैशटैग पर केंद्र सरकार ने आपत्ति जताई थी. सरकार ने ये भी आशंका जताई थी कि ये सभी हैशटैग और टूलकिट को खालिस्तान समर्थकों और पाकिस्तान समर्थित हो सकते हैं. जिस पर ट्विटर ने कुछ हैशटैग को छोड़कर संविधान द्वारा दी गई 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का हवाला देते हुए रोक लगाने से इनकार कर दिया था. ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी 'तांडव' जैसी वेबसीरीज की वजह से देश के सामनाजिक ताने-बाने पर खतरा मंडराने लगता है. इसकी वजह से बवाल की आशंका भी बढ़ जाती है. बवाल होने की स्थिति में ये सोशल मीडिया कंपनियां और ओटीटी प्लेटफॉर्म इस कंटेंट को हटाकर अपने दायित्वों की इतिश्री कर लेती हैं.

ऐसे मामलों में ही सेल्फ रेगुलेशन की कमी झलकने लगती है. ऐसे ही बवालों से बचने के लिए केंद्र सरकार का मानना है कि ऐसे कंटेंट पर तत्काल रोक लगाया जाना बहुत जरूरी है. सरकार चाहती है कि ऐसे कंटेंट पर तुरंत रोक लगाई जाए, जिनसे देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को खतरा हो सकता है. बीते साल केंद्र सरकार ने दर्जनों चीनी एप्स को इन्हीं कारणों से बैन किया था. हालांकि, इसे चीन के साथ बॉर्डर पर तनातनी के रूप में भी देखा जा सकता है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या फ्री स्पीच के नाम पर किसी भी तरह का कंटेंट लोगों के सामने नहीं परोसा दा सकता है.

गाइडलाइंस जारी करते समय केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 'कैपिटल हिल' और 'लाल किले' की घटना पर डबल स्टैंडर्ड अपनाने को लेकर सोशल मीडिया कंपनियों को चेताया भी था. जिसमें ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अकाउंट पर्मानेंट सस्पेंड कर दिया था. ऐसी ही किसी स्थिति से बचने के लिए केंद्र सरकार इन गाइडलाइंस को लाई है. वैसे, गाइडलाइंस का पालन ना करने पर केंद्र सरकार इन सोशल मीडिया कंपनियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने पर विचार कर सकती है.

ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसी सोशल मीडिया कंपनियां 'फ्री स्पीच' का समर्थन करती हैं.ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसी सोशल मीडिया कंपनियां 'फ्री स्पीच' का समर्थन करती हैं.

सोशल मीडिया कंपनियों में हिचकिचाहट क्यों है?

केंद्र सरकार की इन गाइडलाइंस के पालन में मुख्य तौर से सोशल मीडिया कंपनियां हिचकिचा रही हैं. ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसी सोशल मीडिया कंपनियां 'फ्री स्पीच' का समर्थन करती हैं. इनका मानना है कि किसी भी विचार को खारिज या समर्थन करने का पूरा अधिकार सोशल मीडिया यूजर के पास होना चाहिए. अगर सोशल मीडिया कंपनियां केंद्र सरकार की इन गाइडलाइंस को मान लेती हैं, तो सरकार की आलोचना में लिखे गए किसी भी कंटेंट को हटाने के लिए उस पर दबाव बनाना आसान हो जाएगा. वर्तमान और भविष्य में आने वाली सरकारें इसी आधार पर सोशल मीडिया कंपनियों पर दबाव बनाकर आलोचनाओं या समीक्षाओं को हटवाती रहेंगी. जिसकी वजह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल आधार पर बनी इन सोशल मीडिया कंपनियों का अस्तित्व ही संकट में आ जाएगा.

अगर सोशल मीडिया कंपनियां केंद्र सरकार की इन गाइडलाइंस को मान लेती हैं, तो भविष्य में अन्य देशों की सरकारें भी उस पर इसी तरह से दबाव बना सकती हैं. इस स्थिति में इन सोशल मीडिया कंपनियों के पास बचने का कोई रास्ता नहीं रहेगी. गौरतलब है कि गाइडलाइंस जारी होने के बाद ट्विटर ने बीते मार्च महीने में एक सर्वे में यूजर्स के सामने काल्पनिक स्थितियों को रखते हुए पांच विकल्प रखे थे. जिनमें यूजर्स को तत्काल अकाउंट बंद करने, फिर ट्वीट करने से पहले विवादित ट्वीट डिलीट करने, ट्वीट की रीच (लाइक, रिट्वीट और कमेंट को ब्लॉक करने) को कम करने, ट्वीट को 'फ्लैग' करने और कोई कार्रवाई ना करने जैसे विकल्प दिए गए थे. शायद इस सर्वे से ट्विटर अंदाजा लगाना चाह रहा था कि किन देशों में उसे काम करने में समस्या पैदा हो सकती है. ट्विटर की ओर से अभी तक गाइडलाइंस पर जवाब नहीं आया है.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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