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Updated: 23 फरवरी, 2023 08:26 PM
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खासकर यदि महिला के मस्तिष्क की महिमा से निकला गीत चुभने लगे तो ! यूपी पुलिस को चर्चित लोकगायिका नेहा सिंह राठौर के भोजपुरी भाषा में गाये गए "यूपी में का बा.... सीजन 2" की ये पंक्तियां इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने नेहा को नोटिस भेज दिया -

बाबा के दरबार बा, ढहत घर-बार बा

माई-बेटी के आग में झोंकत यूपी सरकार बा.....

यूपी में का बा?

बाबा के डीएम त बड़ी रंगबाज बा

कानपुर देहात में आइल रामराज बा

बुलडोजर से रौंदत दीक्षित के घरवा आज बा

अरे एही बुलडोजरवा पे बाबा के नाज बा.

यूपी में का बा?

उपरोक्त पंक्तियों में अखरने वाली क्या बातें हैं ? यदि सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियों पर गौर फरमाएं तो कुछ भी आपत्तिजनक या अभद्र नहीं हैं. ना ही किसी के प्रति हेटस्पीच ही क्वालीफाई करती है. इसी हफ्ते एक मामले में न्यायमूर्ति ने कहा कि 'किसी के खिलाफ हर बयान को अभद्र भाषा नहीं कहा जा सकता है और इसे इस तरह वर्गीकृत करने के लिए इसमें कुछ निंदा शामिल होनी चाहिए.' इससे ज्यादा उचित बात एक दूसरे मामले में, हालांकि संदर्भ अलग था, कही कि 'आपको आसमान के नीचे खड़े होकर हर किसी की आलोचना करने की आज़ादी है, जज के तौर पर हमें अनुशासन का पालन करना है.' इस कथन में जज की जगह पुलिस को रखा जा सकता है. निश्चित ही पुलिस ने नेहा को नोटिस थमा कर अनुशासनहीनता ही प्रदर्शित की है.

Neha Singh Rathoreनेहा सिंह राठौर

अब देखें कानपुर देहात पुलिस को क्या अखरा? उन्हें अखर रहा है क्योंकि इस पूरे गीत में पिछले दिनों कथित तौर पर अतिक्रमण ढहाने के दौरान कृष्ण गोपाल दीक्षित की फूस की झोंपड़ी में आग लगने से उनकी पत्नी प्रमिला दीक्षित और बेटी नेहा के जलकर मर जाने की घटना के दर्जनों पुलिस वालों और प्रशासनिक कर्मचारियों की मौजूदगी में होने पर तीखा व्यंग्य कसा गया है. भले ही प्रत्यक्षदर्शियों ने इंकार किया हो चूंकि ज़िला प्रशासन की ओर से बयान जारी कर दिया गया कि आग खुद दीक्षित परिवार के लोगों ने ही लगाई थी, सबको मय नेहा यही मान लेना चाहिए. इसके विपरीत नेहा अपने गीत के माध्यम से सवाल खड़े कर समाज में वैमनस्यता फैला रही है, तनाव बढ़ रहा है, और इसका समाज पर बुरा असर पड़ सकता है ; इसलिए उसे सबक सिखाने के लिए कानूनी प्रक्रिया को एक्सप्लॉइट करना बनता है. परेशान होगी तो फिर ऐसी हिमाक़तें नहीं करेंगी. एक्सप्लॉइट करना इसलिए कह रहे हैं कि मामला यदि अदालत का रुख करता भी है तो ठहरेगा ही नहीं और जो होगा वो यही होगा कि नेहा और उसके परिवार वाले परेशान होंगे और परेशान करना ही प्रशासन का मक़सद है.

अमूमन बिहारी नेहा सिंह राठौर के गीत सामाजिक मुद्दों पर होते हैं. साल 2018 से अपने करियर की शुरुआत करने वाली नेहा ने रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे विषयों पर कई गीत गाये हैं. बिहार विधानसभा चुनाव के समय नेहा सिंह ने एक व्यंग्य गीत गाया था जिसके बोल थे 'बिहार में का बा.' इसके बाद काफी लोगों ने नेहा सिंह राठौर को पहचान लिया था. फिर उन्होंने यूपी चुनाव 2022 से पहले कुछ ऐसा ही व्यंग्य रचते हुए मुख्यमंत्री योगी जी को निशाने पे लिया था- 

यूपी में का बा...

बाबा के दरबार में खत्तम रोजगार बा...

हाथरस के निर्णय जोहत लइकी के परिवार बा

कोरोना से लाखन मर गइलन, लाशन से गंगा भर गइलें,

टिकठी और कफन नोचत कुकुर और बिलाड़ बा,

मंत्री के बेटवा बड़ी रंगदार बा,

किसानन के छाती पर रौगत मोटर कार बा,

एक चौकीदार, बोलो के जिम्मेदार बा...

जिंदगी झंड, पर फिर भी घमंड बा!'

चूंकि माहौल चुनावी था, कानूनी संज्ञान लेना उल्टा पड़ता सो प्रशासन मन मारकर रह गया और बतौर राजनीति न्यूट्रलाइज करने के लिए बीजेपी के रवि किशन की प्रशस्ति 'यूपी में सब बा, जे कबो न रहक उ अब बा, योगी के सर्कार बा, विकास के बहार बा, सड़कें के जाल बा..." खूब गायी बजायी जाने लगी थी. हालाँकि तब नेहा ने सफाई दी थी कि,'लोग हमको कह देते हैं कि ये तो मोदी विरोधी हैं, योगी विरोधी हैं. मैं इनको कैसे समझाऊं मोदी जी का एक मिशन है स्वच्छ भारत अभियान, मैंने उसके समर्थन में गीत लिखा था. हम जनता हैं, हम किसी पार्टी के नहीं हैं. न मैं पक्ष में हूं, न मैं विपक्ष में हूं, मैं सिर्फ जनता के रोल में हूं.'

देखा जाए तो व्यंग्य की परंपरा अत्यंत समृद्ध है. कबीर के चुभते व्यंग्य दशोदिशाओं की विसंगतियों, धार्मिक आडंबरों तथा रूढ़िगत मान्यताओं पर गहरा प्रहार करते हैं; भारतेन्दु ने भारत दुर्दशा पर दृष्टिपात करते हुए स्वेदश का धन विदेश जाने और अंग्रेजी सभ्यता-संस्कृति के अनावश्यक प्रसार को अपने व्यंग्यों का निशाना बनाया; भारत भारती में राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त ने अनेक तीखी व्यंग्यात्मक पंक्तियाँ लिखी हैं; माखनलाल चतुर्वेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, नागार्जुन जैसी अनेक विभूतियाँ हैं, जिन्होंने समाज, राष्ट्र और व्यक्तिगत जीवन में व्याप्त विसंगतियों को आलोचना, अवहेलना तथा निंदा का लक्ष्य बनाया था.

आजकल सोशल मीडिया पर लोकगीत स्टाइल में स्पष्ट और चुटीले लिखने वालों की भरमार है, अधिकतर सरकार पर ही व्यंग्य कसते हैं ; रीति यही है और वाजिब भी है कि सत्ता को सचेत किया जाता रहना चाहिए. कहीं क्या खूब किसी ने तंज कैसा था, 'गरमी से बेहाल बानी, फूंकत फूंकत चूल्ह गईला,चाचा जी ; महंगा करके सिनिंदर हमको बेवकूफ चाचाजी.' सीधी साधी सी बात है सरकार की आलोचना करने में हिचक क्यों? हाँ , भाषा का ताना बाना और शब्द मर्यादित होने चाहिए. यदि ऐसा है तो बाकी जिसे जो सोचना है सोचता रहेगा.

इन दिनों लगता है सत्ताधारी पार्टी का विश्वास हिल गया है, तभी तो वे अतिरंजना में आकर बेवजह ही प्रतिक्रिया देने लगे हैं. चुनावी साल है, महंगा पड़ेगा उन्हें! क्योंकि विपक्ष के सरकारी तंत्रों के दुरूपयोग के सदाबहार आरोप को बल जो मिलेगा. इधर नेहा ने भी इरादे स्पष्ट कर दिए हैं. उसका कहना है- नोटिस का जवाब देने के लिए वह कानूनी राय ले रही हैं लेकिन इसी तेवर और इसी अंदाज में उसका गाना आगे भी जारी रहेगा. मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है. बल्कि जो सच्चाई है, वही बताई है. मुझे पहले भी चुप कराने की कोशिश की गई, लेकिन वे सफल नहीं हुए, अब ये नोटिस भेज दिया गया है. मैं गाना गाती हूं और गाती रहूंगी. सरकार भाजपा की है, तो सवाल सपा या किसी और पार्टी से तो पूछूंगी नहीं.

पता नहीं विनाश काले विपरीत बुद्धि कहना कितना सटीक होगा यूपी पुलिस के लिए. किसके कहने पर 'बरनी' के छत्ते में हाथ जो डाल दिया है. यूपी ही तो था जहाँ तमाम विरोधों के बावजूद 'शोषण का दस्तावेज - बकरी' सरीखे अत्यंत ही तीखे राजनीतिक व्यंग्य के नाटकों का मंचन होता रहा है -ठीक है, कल को आप लोगों को भी जेहल ले जाएँगे. आज बकरी गांधी जी की हुई, कल को गाय कृष्ण जी की हो जाएगी, बैल बलराम जी के हो जाएँगे. ये सब ठग हैं ठग ! फिर साल भर पहले ही यूपी चुनाव के दौरान सत्ता ने अपेक्षित सहिष्णुता का परिचय दिया था जिसका फायदा भी मिला था.

पूरा विपक्ष योगी सरकार पर निशाना साधते हुए मजे भी ले रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नेहा के गीत की ही तर्ज पर ट्वीटिया दिया, 'यूपी में झुठ्ठे केसों की बहार बा, यूपी में गरीब-किसान बेहाल बा, यूपी में पिछड़े-दलितों पर प्रहार बा, यूपी में कारोबार का बंटाधार बा, यूपी में भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार बा'. उत्तर प्रदेश कांग्रेस भी नेहा सिंह के प्रति समर्थन जताते हुए जता रही है, 'हमनियो के पूछत बानी जा,UP में का बा? इन नोटिसों से घबराइएगा मत @nehafolksinger. गले की बाग और कलेजे की आग बरकरार रखिएगा. इस तानाशाही के ख़िलाफ़, हम लड़ेंगे! हम जीतेंगे!

वैसे ऑन ए लाइटर नोट कहें तो "बाबा" ने आधी अधूरी प्रेरणा भर ली है हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री दिवंगत जवाहर लाल नेहरू से. जिनके शासन काल में मशहूर शायर मजरूह सुल्तानपुरी को मुंबई की आर्थर जेल में दो साल बिताने पड़े क्योंकि उन्होंने अपनी चंद लाइनों के लिए, जिनमें उन्होंने नेहरू को कामनवेल्थ का दास कहकर तंज कसा था, माफ़ी मांगने से मना कर दिया था.

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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