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Updated: 20 नवम्बर, 2022 06:20 PM
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भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) में एक दिन महिलाओं के लिए समर्पित रहा. और ऐसा उस दिन किया गया जिस दिन पूरी दुनिया इंटरनेशनल मेंस डे मना रही थी. कांग्रेस की ये पहल तारीफ के काबिल है.

22 सितंबर, 2022 को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में एक दिन महिला सदस्यों के लिए बोलने का मौका दिया था. 8 मार्च, 2016 को संसद में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर महिला सांसदों को बोलने का मौका दिया गया था.

भारत जोड़ो यात्रा के ट्विटर हैंडल से एक पोस्ट में लिखा है, "नारी तू नारायणी! आज की खास शक्ति यात्रा को देश की महिलाओं का साथ मिला. इनकी शक्ति से यात्रा को गति मिली. हमारा विश्वास है कि हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी आवश्यक है. जिम्मेदारी के तौर पर भी और अधिकार के रूप में भी."

साथ ही, #ShaktiWalk हैशटैग के साथ एक तस्वीर भी शेयर की गयी है, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की एक तरफ टीवी अदाकारा रश्मि देसाई और दूसरी तरफ मॉडल-एक्टर आकांक्षा पुरी पदयात्रा कर रही हैं.

19 नवंबर की भारत जोड़ो यात्रा से ऐसी कई तस्वीरें शेयर की गयी हैं, जिन्हें प्रियंका गांधी वाड्रा सहित कई सारे कांग्रेस नेताओं ने भी रीट्वीट किया है - लेकिन तमाम तस्वीरें अधूरी सी लग रही हैं. जैसे कुछ कमी रह गयी हो. जैसे किसी की कमी खल रही हो. जैसे हर निगाह कोई खास चेहरा खोज रही हो.

दरअसल, तस्वीरों में प्रियंका गांधी का न होना ही सबसे ज्यादा हैरान करने वाला है. ऐसे मौके के लिए कांग्रेस के पास सबसे बड़ा चेहरा तो सोनिया गांधी हैं और अपनी सेहत ठीक न होने के बावजूद वो भारत जोड़ो यात्रा में हिस्सा ले चुकी हैं - कम से कम इस खास मौके पर प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) को तो होना ही चाहिये था.

ये ठीक है कि प्रियंका गांधी वाड्रा की हिमाचल प्रदेश चुनावों में व्यस्तता रही, लेकिन वो तो एक दिन पहले ही वहां से निकल चुकी थीं. जैसे शिमला से चल कर चंडीगढ़ से दिल्ली के लिए फ्लाइट पकड़ीं, प्रियंका गांधी वाड्रा को बुलाया गया होता तो सीधे भारत जोड़ो यात्रा में पहुंच सकती थीं - और इस खास मौके पर तो उनका हक भी बनता है.

दिल्ली में प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तराखंड के कांग्रेस नेता हरीश रावत की किताब का विमोचन भी किया है. फिर तो ये भी नहीं कहा जा सकता कि चुनावी थकान के बाद वो सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर रहीं. बुक रिलीज की तस्वीर भी प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए हरीश रावत को कांग्रेस महासचिव ने शुभकामनाएं भी दी है.

जब सोनिया गांधी कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुईं, तभी बताया गया कि अगले दिन प्रियंका गांधी वाड्रा भी मां और भाई के साथ पदयात्रा ज्वाइन करेंगे, लेकिन अब तक वो दिन नहीं आ सका. वैसे बताया जा रहा है कि यात्रा के मध्य प्रदेश पहुंचने पर प्रियंका गांधी अपने भाई राहुल गांधी के साथ मार्च करने वाली हैं.

भारत जोड़ो यात्रा से प्रियंका दूर क्यों?

22 नवंबर को राहुल गांधी कांग्रेस के चुनाव कैंपेन के लिए गुजरात पहुंच रहे हैं. गुजरात में राहुल गांधी की दो रैलियां तय की गयी हैं - और वहीं से राहुल गांधी के लौटने के बाद, रिपोर्ट के अनुसार, प्रियंका गांधी 23 से 25 नवंबर तक मध्य प्रदेश में राहुल गांधी के साथ पदयात्रा करने वाली हैं. अभी तक तो यही कार्यक्रम बताया गया है, आगे रद्द हो जाये या फिर टल जाये तो बात और है.

rahul gandhi, priyanka gandhi vadraप्रियंका गांधी वाड्रा को अभी तक भारत जोड़ो यात्रा से दूर रखे जाने से शक-शुबहे की गुंजाइश तो बनती ही है.

अक्सर यही देखने को मिला है कि जहां कहीं भी चुनाव प्रचार की कमान प्रियंका गांधी के हाथ में रहती है, राहुल गांधी या तो वहां नहीं जाते या फिर जाते भी हैं तो किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित रहते हैं. जैसे यूपी चुनाव 2022 के दौरान उनका चुनाव प्रचार अमेठी की सीमाओं में बंधा नजर आया. बाकी पूरे चुनाव के दौरान वो पंजाब में एक्टिव रहे. प्रियंका गांधी पंजाब भी गयी थीं, पंजाबी बहू बन कर वोट मांगने - और उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने पूर्वांचल के लोगों को भैया बोल कर बवाल करा दिया था.

प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी को एक साथ रोड शो करते दिल्ली चुनाव में देखा गया था. 12 नवंबर को हुए हिमाचल चुनाव में कांग्रेस के कैंपेन को एक तरह से प्रियंका गांधी ने ही लीड किया, लेकिन राहुल गांधी दूर ही रहे. भारत यात्रा का मजबूत बहाना जो था. 2021 के असम चुनाव में भी प्रियंका गांधी की सक्रियता हिमाचल प्रदेश जैसी ही देखी गयी थी - और अब राहुल गांधी गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए तो जा रहे हैं लेकिन अभी तक प्रियंका गांधी का कोई चुनावी कार्यक्रम सामने तो नहीं आया है.

चुनाव कैंपेन की बात और है, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के दो महीने से ज्यादा बीत जाने के बाद भी प्रियंका गांधी वाड्रा का दूर बने रहना थोड़ा अजीब तो लगता ही है. ऐसे में जबकि कांग्रेस का हर छोड़ा बड़ा नेता भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हो आया हो, तबीयत अच्छी न होने के बावजूद सोनिया गांधी पैदल मार्च कर चुकी हों, सहयोगी दलों के नेता सुप्रिया सुले और आदित्य ठाकरे तक राहुल गांधी के साथ पदयात्रा कर चुके हों - आखिर प्रियंका गांधी वाड्रा को दूर रखा जाना सवाल तो खड़े करता ही है?

और सबसे गंभीर सवाल तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती पर रखे गये शक्ति वॉक से प्रियंका गांधी वाड्रा की गैर-मौजूदगी खड़ा करती है - आखिर प्रियंका गांधी वाड्रा को भारत जोड़ो यात्रा से अलग रखे जाने की खास वजह क्या हो सकती है?

प्रियंका के साथ ये भेदभाव क्यों?

कांग्रेस के कई नेता और बहुत सारे कार्यकर्ता तो प्रियंका गांधी वाड्रा में इंदिरा गांधी की छवि देखते रहे हैं, लेकिन उन्हीं इंदिरा गांधी की जयंती पर हुए विशेष शक्ति वॉक में प्रियंका गांधी आखिर क्यों नहीं थीं?

अव्वल तो खास मौके पर प्रियंका गांधी को ही भारत जोड़ो यात्रा को लीड करने का मौका दिया जा सकता था. वैसे भी राहुल गांधी तो यही कहते रहे हैं कि वो भारत जोड़ो यात्रा में वो महज एक भारत यात्री हैं. भारत जोड़ो यात्रा में जो नेता कन्याकुमारी से कश्मीर तक यात्रा कर रहे हैं, उनको भारत यात्री की उपाधि से विभूषित किया गया है.

सिर्फ भारत यात्री ही नहीं, राहुल गांधी तो खुद को ऐसे भी प्रोजेक्ट करते रहे हैं जैसे बाकी आम कांग्रेस कार्यकर्ता हैं, जैसे कांग्रेस बाकी सांसद, जैसे कांग्रेस कार्यकारिणी के आम सदस्य होते हैं.

और प्रियंका गांधी तो कांग्रेस की महासचिव भी हैं. उत्तर प्रदेश जैसे राजनीतिक लिहाज से अति महत्वपूर्ण राज्य की कांग्रेस की प्रभारी भी हैं. हाल के हिमाचल प्रदेश चुनाव में तो प्रियंका गांधी ही कांग्रेस के चेहरे के तौर पर नजर आयीं. राहुल गांधी ने तो उधर झांकने की भी जहमत नहीं उठायी.

ये तो एक बार फिर साबित हुआ कि कांग्रेस में 'नारायणी' नारी नहीं, बल्कि 'नर' नारायण हैं - ऐसे सवाल तब भी उठाये गये थे जब महिला कांग्रेस की नेता सुष्मिता देव ने कांग्रेस छोड़ी थी. उसके बाद वो तृणमूल कांग्रेस चली गयीं. यूपी चुनाव से पहले प्रियंका गांधी के सामने भी ऐसे सवाल उठाये जाते थे और वो अलग अलग तरीकों से कांग्रेस का बचाव करती रहीं.

यूपी चुनाव 2022 में जब प्रियंका गांधी ने 40 फीसदी महिला उम्मीदवारों को टिकट देने की पहल की थी तो, कांग्रेस की तरफ से खूब प्रचारित किया गया. राहुल गांधी का भी बयान आया था कि अभी तो ये शुरुआत है - अगर वो शुरुआत थी तो बाद में क्या प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में डाल दिया गया?

यूपी के बाद अब गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस की तरफ से वैसी कोई पहल तो हुई नहीं. हिमाचल प्रदेश में तो प्रियंका गांधी की कमान संभाले हुई थीं, लेकिन वहां भी महिलाओं को लेकर शुरुआत के आगे की कोई बात सुनायी नहीं दी - क्या यूपी जैसी पहल के लिए प्रियंका गांधी को राहुल गांधी और सोनिया गांधी की मंजूरी नहीं मिल सकी?

क्या यूपी की नाकामी को महिला मोर्चे पर कांग्रेस ने खुद को फेल मान लिया है - या फिर प्रियंका गांधी के नये नवेले आइडिया और प्रयोगों को फेल मान लिया गया है?

अगर प्रियंका गांधी से तुलना की जाये तो राहुल गांधी ही ने ही कहां कामयाबी के झंडे गाड़े हैं? अगर 2009 के आम चुनाव में यूपी में कांग्रेस को मिली ज्यादा सीटें और 2018 में तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत को अलग कर दिया जाये तो राहुल गांधी की नाकामियों के किस्से भरे पड़े मिलते हैं.

भारत जोड़ो यात्रा को कांग्रेस ही बेहद अहम नहीं मान रही है, देश की सबसे ताकतवर पार्टी बीजेपी पर भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है. जब कर्नाटक में राहुल गांधी ने सवाल उठाये तो मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई विपक्ष के नेता सिद्धारमैया को बुलाकर मीटिंग करने लगे. चैन नहीं मिला तो कर्नाटक में बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता बीएस येदियुरप्पा को भी बुला लिया गया - और बोम्मई के साथ उनको भी बीजेपी नेतृत्व ने यात्रा पर भेज दिया.

भारत जोड़ो यात्रा का असर तो महाराष्ट्र में भी देखा जा सकता था, लेकिन राहुल गांधी ने सावरकर पर बयान देकर संसद में गले मिल कर आंख मारने जैसी ही गलती दोहरा दी - फिर भी बीजेपी के 'काशी तमिल संगमम्' के आयोजन और उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बढ़ चढ़ कर हिस्सेदारी देखने के बाद तो बीजेपी की फिक्र समझना जरा भी मुश्किल नहीं लगता.

कांग्रेस में ऐसे तमाम मौके देखे गये हैं जब राहुल गांधी और सोनिया गांधी के बाद प्रियंका गांधी की ही बात सबसे ज्यादा मायने रखती है. अभी तक ऐसा भी नहीं लगता कि मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद प्रियंका गांधी की अघोषित पोजीशन बदल गयी होगी.

ऐसे कई मौके आये हैं जब प्रियंका गांधी को संकटमोचक के तौर पर देखा गया है, लेकिन जब कांग्रेस की मीटिंग होती है तो प्रियंका गांधी को बाकी महासचिवों के साथ अलग बिठा दिया जाता है - ऐसे अलग बिठा कर जनता को कोई संदेश दिया जाता है या फिर खुद प्रियंका गांधी को ही उनकी हदें समझायी जाती हैं?

आखिर ऐसा क्यों होता है? कहीं सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी को राहुल गांधी की राजनीति के लिए खतरा तो नहीं मानती हैं? क्या बेटे-बेटी के भेद के कारण ही प्रियंका गांधी को हमेशा ही अलग थलग रखा जाता है? और भारत जोड़ो यात्रा भी वैसे ही सिर्फ एक और उदाहरण है.

प्रियंका गांधी के यूपी चुनाव के स्लोगन पर बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने कटाक्ष किया था - घर पर लड़का है, लेकिन लड़ नहीं सकता. क्या प्रियंका गांधी की लोकप्रियता राहुल गांधी के लिए कोई खतरा पैदा कर सकती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी मानने लगे हों... प्रियंका गांधी लड़की हैं, ज्यादा लड़ नहीं सकतीं?

अगर ऐसा कुछ है तो आजमा कर देख लेना चाहिये - प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम्?

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