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Updated: 30 जुलाई, 2018 02:59 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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असम में इन दिनों नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स यानी एनआरसी खूब चर्चा में है. इसका फाइनल ड्राफ्ट भी जारी हो चुका है, जिसने वहां के मुसलमानों की चिंता बढ़ा दी है. दरअसल, फाइनल ड्राफ्ट में असम के कुल 3.29 करोड़ लोगों में से केवल 2.89 करोड़ लोगों को असम की नागरिकता के अनुकूल पाया गया है. इस लिस्ट में 40 लाख लोगों के नाम नहीं हैं. ऐसे में लोगों में ये संदेश जा रहा है कि जिनके नाम लिस्ट में नहीं हैं वह असम के नागरिक नहीं हैं और अवैध रूप से रह रहे हैं. हालांकि, खुद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि कुछ लोग जानबूझ कर डरावना माहौल पैदा कर रहे हैं. वह बोले कि यह रिपोर्ट अभी सिर्फ एक ड्राफ्ट है, इसलिए घबराने की कोई जरूरत नहीं है. आपको बता दें कि जिन लोगों के नाम एनआरसी लिस्ट में नहीं हैं, उन्हें अपने नाम दर्ज कराने के लिए दावा करने का मौका है. इसके लिए उन्हें संबंधित केंद्र में जाकर फॉर्म भरना होगा और अधिकारी को बताना होगा कि एनआरसी लिस्ट में उसका नाम क्यों नहीं है.

तो इसमें डरने वाली क्या बात है?

इससे डर सबको नहीं, बल्कि उन मुसलमानों को है, जिनके नाम एनआरसी लिस्ट में नहीं हैं. उन्हें डर इस बात का है कि कहीं सरकार उन्हें ये कहकर देश से बाहर ना निकाल दे कि वह भारतीय नागरिक नहीं हैं. असम के वित्त मंत्री बिस्वा सरमा ने कहा है कि सरकार का रुख साफ है कि ऐसे हिंदू बांग्लादेशियों को भारत में आश्रय दिया जाना चाहिए, जिन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है. अब मुस्लिम ये सोचकर भी डर रहे हैं कि उनके साथ कोई रियायत नहीं बरती जाएगी. साथ ही अगर वह पर्याप्त सबूत नहीं दे सके तो उन्हें देश से बाहर भी निकाला जा सकता है. असम की कुल आबादी करीब 3.2 करोड़ है, जिसमें करीब एक तिहाई मुस्लिम हैं. आपको बता दें कि असम और पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुसलमान रह रहे हैं. अब लिस्ट में जिन 40 लाख लोगों के नाम नहीं हैं, उनमें प्रवासी मुसलमानों के साथ-साथ प्रवासी हिंदू भी हैं. साथ ही, बहुत से ऐसे भी लोग हैं जो भारत के नागरिक होने के बावजूद लिस्ट में अपना नाम दर्ज नहीं करा सके हैं.

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कुछ हो ना हो, राजनीति तो शुरू हो गई

इस मामले में किसे निकाला जाएगा, किसे रखा जाएगा, इन सवालों के जवाब मिलने से पहले इस मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गई है. ममता बनर्जी ने कहा है कि जिन 40 लाख लोगों के नाम लिस्ट से गायब हैं, उनमें कई ऐसे भी हैं, जिनके पास आधार और पासपोर्ट तक है. उन्होंने इसे भाजपा की साजिश बताते हुए जवाब मांगा है कि आखिर जिन लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हैं उनके लिए सरकार क्या कर रही है. उन्होंने कहा है कि वह भी जल्द ही असम जाएंगी और उनके एमपी पहले ही असम के लिए रवाना हो चुके हैं.

वहीं दूसरी ओर, असम कांग्रेस के प्रमुख ने एनआरसी ड्राफ्ट को लेकर कहा है कि 40 लाख लोगों ने नाम न होना चौंकाने वाला है और रिपोर्ट में अनियमितताओं के होने की बात कही है. उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा है कि इसके पीछे उनका राजनीतिक फायदा छुपा है.

यूं हुआ ये सब शुरू

जैसे ही 2016 में असम में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी, वैसे ही मुस्लिम बांग्लादेशी लोगों की पहचान करने की कवायद शुरू हो गई. भाजपा दावा कर रही है कि पिछली सरकारों ने सिर्फ अपना वोटबैंक बढ़ाने के लिए भारी संख्या में अवैध बांग्लादेशी लोगों को असम में पनाह दी. 1980 के दशक में असम में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन भी हुआ था, जिसमें कहा गया था कि बाहर से असम में आए लोग उनके घर, नौकरियां और जमीन छीन रहे हैं. दरअसल, 26 मार्च 1971 में बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अपनी आजादी की घोषणा की. इसी दौरान भारी संख्या में लोग भारत में आ घुसे. ये लोग असम और पश्चिम बंगाल में जा बसे. यही वजह है कि अब उन लोगों को एनआरसी लिस्ट से बाहर रखा जा रहा है, जो 24 मार्च 1971 से पहले से भारत में रहने के सबूत नहीं दे पा रहे हैं.

सरकार को डर है कि इस ड्राफ्ट के चलते राज्य में विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं, जिसके चलते पूरे राज्य में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है. साथ जिलों- बारपेटा, दरांग, दीमा, हसाओ, सोनितपुर, करीमगंज, गोलाघाट और धुबरी में तो धारा 144 तक लागू कर दी गई है. साथ ही, इस बात की भी सख्त निगरानी की जा रही है कि कोई अफवाह ना फैले, वरना स्थिति बिगड़ सकती है.

असम में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों को देश से बाहर निकालने की इस मुहिम के बारे में सुनकर तो आपको बहुत अच्छा लग रहा होगा, लेकिन जरा सोच कर देखिए, जो पिछले करीब 47 सालों से कहीं रह रहा है, वो निकाल दिया जाएगा तो कहां जाएगा. वोटबैंक के लिए पिछली सरकारों ने उन्हें पनाह दी, बेशक गलत किया, लेकिन अब उनकी गलती का खामियाजा भुगतना होगा उन लोगों को जो बेघर होकर भारत में पनाह पाने के लिए घुसे थे. यहां एक बात ध्यान रखने की है कि वो भले ही हिंदू हैं या मुसलमान है, लेकिन ये बेहद गरीब तबका है. भारत में अवैध रूप से रह रहे अधिकतर लोग मजदूरी आदि करते हैं, ना कि करोड़ों की प्रॉपर्टी बनाकर ऐश कर रहे हैं. यानी अगर अब 47 साल बाद उन्हें निकाला जाता है तो इससे भले ही हमें खुशी मिल जाए, लेकिन एक बार फिर वो बेघर हो जाएंगे.

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