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Updated: 20 अप्रिल, 2021 05:56 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने संक्रमण के मामलों और कोविड-19 से हो रही मौतों के मामले में पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. अप्रैल माह में कोरोना संक्रमण के बेलगाम होने के बाद कई राज्यों में लॉकडाउन लगाने की घोषणा की गई है. सबसे पहले महाराष्ट्र में पूरी तरह से कर्फ्यू लगाने की घोषणा हुई थी. यह लॉकडाउन नहीं था, लेकिन उससे कम भी नहीं था. कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ रहे मामलों की वजह से राजस्थान में 15 दिन और दिल्ली में 7 दिनों के लिए लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से राज्य के पांच शहरों में 26 अप्रैल तक लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया था. हालांकि, योगी सरकार ने लोगों की जान बचाने के साथ आजीविका बचाने की दलील देते हुए संपूर्ण लॉकडाउन लगाने से इनकार कर दिया है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर लॉकडाउन टुकड़े-टुकड़े में क्यों लग रहा है, देशव्यापी लॉकडाउन लगाने में क्या समस्या है?

ये भी कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार राजनीतिक कारणों से देशव्यापी लॉकडाउन लगाने से पीछे हट रही है.ये भी कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार राजनीतिक कारणों से देशव्यापी लॉकडाउन लगाने से पीछे हट रही है.

जान और आजीविका दोनों बचाने की कोशिश कर रही है केंद्र सरकार

बीते साल देशव्यापी लॉकडाउन लगाने का फैसला करने वाली केंद्र सरकार इस बार ऐसा फैसला लेने से बच रही है. केंद्र सरकार ने इस बार लॉकडाउन लगाने की जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकारों पर डाल दी है. राज्य सरकारों को प्रदेश में कोरोना की वजह से उपजे हालातों के अनुसार लॉकडाउन लगाने की बात कही गई है. साथ ही केंद्र सरकार ने ताकीद की है कि राज्यों में लॉकडाउन लगाने के दौरान जरूरी सेवाएं बाधित न हों औऱ औद्योगिक इकाइयों पर भी कोई रोक न लगे. कई राज्यों में आंशिक लॉकडाउन लगा भी दिया गया है. ये भी कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार राजनीतिक कारणों से देशव्यापी लॉकडाउन लगाने से पीछे हट रही है. चुनावों को देखते हुए केंद्र सरकार देशव्यापी लॉकडाउन लगाने से कतरा रही है. लेकिन, देशव्यापी लॉकडाउन न लगाने के पीछे राजनीतिक वजहों से कहीं ज्यादा आर्थिक कारण जरूरी नजर आते हैं. योगी आदित्यनाथ ने लॉकडाउन न लगाने के फैसले को लेकर जो बात कही है, असल में राज्य सरकारों की सबसे बड़ी चिंता यही है.

अर्थव्यवस्था के मामले में दोबारा खतरा उठाने के मूड में नहीं

देशव्यापी लॉकडाउन लगाने से सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था को झटका लगेगा. बीते साल लगे लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा था. लॉकडाउन की वजह से देश मंदी की चपेट में आ गया था. कोरोनाकाल में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के दौरान जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट सामने आई थी. दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में जीडीपी में 7.5 फीसदी की गिरावट सामने आई थी. इस दौरान देश में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. जिसके बाद तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में 0.4 फीसदी का मामूली इजाफा हुआ था. लॉकडाउन के दौरान सभी प्रकार के उद्योग-धंधे पूरी तरह से बंद रहे थे औऱ इसकी वजह से सबसे ज्यादा असर इकोनॉमी पर पड़ा था.

अगर अर्थव्यवस्था एक बार फिर पटरी से उतर जाती है, तो केंद्र सरकार के लिए यह सबसे बुरे सपने जैसा होगा.अगर अर्थव्यवस्था एक बार फिर पटरी से उतर जाती है, तो केंद्र सरकार के लिए यह सबसे बुरे सपने जैसा होगा.

तीसरी तिमाही के बाद अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद थी, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने इसे फिर से तोड़ दिया है. अगर अर्थव्यवस्था एक बार फिर पटरी से उतर जाती है, तो केंद्र सरकार के लिए यह सबसे बुरे सपने जैसा होगा. बीते साल लोगों और औद्योगिक क्षेत्रों को कोरोना महामारी की वजह से उपजी मंदी से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी. देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से केंद्र सरकार को फिर से ऐसे ही बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा करनी पड़ेगी. जो कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए सही फैसला नहीं कहा जा सकता है. इसी वजह से केंद्र सरकार देशव्यापी लॉकडाउन का फैसला नहीं ले रही है.

टुकड़ों-टुकड़ों में लॉकडाउन लगाने से अर्थव्यवस्था पर कोई खास बोझ नहीं पड़ेगा. अगर देशव्यापी लॉकडाउन लगता है, तो लोगों की आजीविका बंद हो जाएगी. इसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर और केंद्र सरकार समेत राज्य सरकारों पर आर्थिक बोझ बढ़ने के रूप में पड़ेगा. जिन जगहों पर कोरोना संक्रमण के ज्यादा मामले हैं, वहां राज्य सरकार अपने हिसाब से छोटे लॉकडाउन लगा रही हैं. इस लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक कारखानों पर रोक नहीं है. दिल्ली में एक सप्ताह और राजस्थान में 15 दिनों का लॉकडाउन इसी का उदाहरण है. राज्य सरकारें लोगों को कोरोना प्रोटोकॉल अपनाने के साथ लॉकडाउन नहीं लगाने का इशारा कर चुकी हैं. इस स्थिति में लोगों के ऊपर भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वो कोविड-एप्रोपिएट बिहेवियर अपनाएं. देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से उद्योगों पर एकबार फिर से तालाबंदी का खतरा मंडराने लगेगा. केंद्र सरकार इस बार ऐसा नहीं होने देना चाहती है.

देशव्यापी लॉकडाउन से बढ़ेगी बेरोजगारी

लॉकडाउन लगने की आहट भर से प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो चुका है और पलायन कर रहे प्रवासी मजदूरों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसा तब है, जब केंद्र सरकार ने उद्योगों पर रोक लगाने से मना कर दिया है. दरअसल, केंद्र सरकार और राज्य सरकारें लोगों के बीच अब तक भरोसा कायम नहीं कर पाई हैं. बात प्रवासी मजदूरों की हो, रोज कमाने-खाने वाले लोगों की हो या नौकरीपेशा लोगों की, इन सभी के अंदर लॉकडाउन की वजह से बुरी स्थिति में फंसने का डर बना हुआ है. बीते साल लॉकडाउन लगाने की वजह सेउद्योग-धंधे बंद हो गए थे और बड़ी संख्या में काम करने वाले बेरोजगार हो गए थे. कोरोनाकाल के दौरान बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के अनुसार, कोरोना काल में एक करोड़ से ज्यादा नौकरीपेशा लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था.सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के अनुसार, कोरोना काल में एक करोड़ से ज्यादा नौकरीपेशा लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के अनुसार, कोरोना काल में एक करोड़ से ज्यादा नौकरीपेशा लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था. यह संख्या नौकरीपेशा लोगों की है और असल आंकड़े इससे कहीं ज्यादा होने की उम्मीद है. बेरोजगारी के आंकड़ों में मजदूर और रोज कमाने-खाने वाले लोग शामिल नही हैं. इनमें से बहुत लोगों की नौकरी में वापसी हो गई है, लेकिन देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से एक बार फिर नौकरी जाने का खतरा बढ़ जाएगा. बीते महीने बेराजगारी दर 7.4 फीसदी हो चुकी है, जिसकी वजह से नई नौकरियों के अवसर न के बराबर हैं. बेरोजगारी का आंकड़ा लगातार बढ़ ही रहा है, इसमें कमी नजर नहीं आ रही है.

देशव्यापी लॉकडाउन लगाने से अर्थव्यवस्था की कमर पूरी तरह से टूट जाएगी. रोज-कमाने खाने वाले, मजदूर और नौकरीपेशा लोगों के हाथ में पैसा नहीं होगा, तो उनके सामने भयावह स्थितियां पैदा हो सकती हैं. टुकड़ों-टुकड़ों में लॉकडाउन की वजह से कम से कम ऐसी स्थितियां उत्पन्न होने का खतरा कम होगा. उद्योग, कारखाने, व्यापार सुचारू रूप से चलते रहने से केंद्र सरकार और राज्य सरकारों पर कोई नया आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा. साथ ही सरकारों को टैक्स वसूली से अपना राजकोष भी भरने का मौका मिलेगा. जिसका इस्तेमाल केंद्र सरकार और राज्य सरकारें आपात स्थितियों से निपटने के लिए कर सकती हैं. अगर देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया जाता है, तो यह आम जनता के लिए खतरे की घंटी होगी. कुल मिलाकर केंद्र सरकार अपने पिछले अनुभवों को मद्देनजर रखते हुए देशव्यापी लॉकडाउन लगाने का खतरा उठाने को तैयार नहीं है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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