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Updated: 31 मई, 2021 08:38 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पश्चिम बंगाल के राजनीतिक 'रंगमंच' पर विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही रोज ही एक नया नाटक खेला जा रहा है. हाल ही में यास तूफान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के देरी से आने और अन्य कार्यक्रम का हवाला देकर जल्दी निकल जाने के बाद बंगाल में एक नया सियासी चक्रवात आ गया है. केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय को वापस बुलाया है और ममता बनर्जी ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया.

वहीं, चक्रवाती तूफान यास ने ओडिशा में भी भारी नुकसान पहुंचाया है. नरेंद्र मोदी ने ओडिशा का भी दौरा किया था. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने मोदी के साथ मीटिंग में हिस्सा लिया और अपनी रिपोर्ट सौंपी. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहे देश की बात करते हुए केंद्र सरकार से तत्काल किसी आर्थिक पैकेज की मांग नहीं की. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने केंद्र सरकार से केवल आपदा से निपटने के लिए एक मजबूत सिस्टम और तटीय इलाकों में तूफान का प्रभाव बढ़ने पर सुरक्षा की मांग की.

प्रधानमंत्री मोदी ने तूफान से प्रभावित ओडिशा के लिए 500 करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा कर दी. बंगाल और झारखंड को भी ये राशि मिलेगी, लेकिन राज्य सरकारों को नुकसान का पूरा ब्यौरा देना होगा. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक दोनों ही एनडीए और भाजपा के विरोधी हैं. लेकिन, अब तक शायद ही कोई ऐसा मौका आया हो, जब नवीन पटनायक के सामने कभी ममता बनर्जी जैसी दिक्कत पैदा हुई हो. इस स्थिति में ये सवाल उठ रहा है कि नवीन पटनायक को अपना राजनीतिक गुरू क्यों नहीं बना लेती ममता बनर्जी?

ओडिशा में भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंदी सीएम नवीन पटनायक की तारीफ करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थकते नही है.ओडिशा में भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंदी सीएम नवीन पटनायक की तारीफ करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थकते नही है.

बंगाल में सबकुछ यूं ही चलता रहेगा

2 मई को नतीजे सामने आने के बाद पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा शुरू हुई. राज्य का 'रक्तचरित्र' देखते हुए आने वाले समय में भी इसके जारी रहने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. हिंसा से राजनीतिक लाभ लेने के लिए भाजपा और तृणमूल कांग्रेस एकदूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. कोरोना महामारी की वजह से भी बंगाल में हालात बिगड़ रहे हैं. ममता बनर्जी सरकार के मंत्रियों और नेताओं के खिलाफ सीबीआई पुराने मामले खोल रही है. लेकिन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जनता को लेकर उतनी परेशान नहीं नजर आ रही हैं, जितनी भाजपा और मोदी सरकार को लेकर हैं. ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही उनके अधिकतर बयान भाजपा और मोदी सरकार से जुड़े हुए रहे हैं, नाकि बंगाल की जनता को राहत दिलाने वाले. पश्चिम बंगाल में भाजपा और ममता बनर्जी के बीच कभी खत्म न होने वाले 'राजनीतिक विरोध' का चेन रिएक्शन लगातार चल रहा है. ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल तक ही सीमित रखने का कोई भी अवसर भाजपा की ओर से नहीं छोड़ा जा रहा है. 

ओडिशा में पिछले 5 विधानसभा चुनावों से बीजू जनता दल की सरकार बनती चली आ रही है.ओडिशा में पिछले 5 विधानसभा चुनावों से बीजू जनता दल की सरकार बनती चली आ रही है.

कांग्रेस और भाजपा से पटनायक की समान दूरी

वहीं, ओडिशा में भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंदी सीएम नवीन पटनायक की तारीफ करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थकते नही है. पीएम मोदी ने यास तूफान पर रिव्यू मीटिंग का जिक्र करते हुए ट्वीट किया और आपदा प्रबंधन में ओडिशा की प्रगति की तारीफ की. ओडिशा में पिछले 5 विधानसभा चुनावों से बीजू जनता दल की सरकार बनती चली आ रही है और पांच बार नवीन पटनायक मुख्यमंत्री बन चुके हैं. कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के दौरान भी शायद ही कोई ऐसा मौका आया होगा, जब नवीन पटनायक सरकार ने केंद्र सरकार से अपने रिश्ते बिगाड़े हों. जबकि ओडिशा में उस दौरान कांग्रेस ही मुख्य विपक्षी दल रहा था.

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नवीन पटनायक ने कहा था कि बीजू जनता दल आगामी चुनाव में भाजपा और कांग्रेस से दूरी बनाए रखने की नीति पर ही चलती रहेगी. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर को रोकने में कामयाब रहे बीजद ने 21 में से 20 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. हालांकि, 2019 में पटनायक को नुकसान हुआ और बीजद 12 लोकसभा सीटें ही जीत सकी. बीजू जनता दल और नवीन पटनायक का नजरिया भाजपा को लेकर बिल्कुल साफ है. नवीन पटनायक का केंद्र की राजनीति में आने का कोई विचार नहीं है और यही वजह है कि 2019 के ओडिशा विधानसभा चुनाव में भी भाजपा इतनी आक्रामक नहीं रही.

जीत के बाद सातवें आसमान पर ममता का मनोबल

वहीं, पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के दौरान ही ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव 2024 के हुंकार भर दी थी. ममता ने एक पैर पर बंगाल और दो पैरों पर दिल्ली जीतने की बात कहकर राजनीतिक हलचल पैदा कर दी थी. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को 213 सीटें मिलने के बाद ममता बनर्जी की इस दहाड़ को और बल मिला. 'दीदी' ने बंगाल से भाजपा को निपटाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. 200 सीटों का दावा करने वाली भाजपा 73 सीटों पर जीती, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 3 सीटें ही मिली थीं. ममता बनर्जी के लिए समस्या है कि वो दिल्ली जीतने का भी घोषणा कर चुकी हैं. इसके लिए वो भरपूर कोशिश भी कर रही हैं, लेकिन बात बनने की जगह बिगड़ती जा रही है. जीत के बाद 'दीदी' का मनोबल सातवें आसमान पर है और इसका नुकसान पश्चिम बंगाल की जनता को उठाना पड़ रहा है.

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस में हुई बगावत का सबसे बड़ा कारण ममता बनर्जी का अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को पार्टी में अहमियत देना रहा. लंबे समय तक टीएमसी के साथ रहे नेताओं को अभिषेक बनर्जी का बढ़ता कद रास नहीं आया और उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया. ममता को मानना होगा कि वह अभिषेक को उत्तराधिकारी बनाने के चक्कर में कमजोर हो चुकी हैं. भाजपा को 2019 लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में 2 फीसदी वोटों का नुकसान जरूर हुआ है, लेकिन ममता अगले 5 साल तक ऐसा ही करती रहीं, तो उनके हाथ से बंगाल भी निकल सकता है. दिल्ली में लगातार दो बार सत्ता से बाहर रहने के बाद मोदी सरकार ने जीएनसीटीडी विधेयक के जरिये सीएम अरविंद केजरीवाल के पर कतर दिए हैं. हालांकि, बंगाल में ऐसा नहीं हो सकता है, लेकिन भाजपा की ओर से ममता की राह मुश्किल बढ़ाने में कमी नहीं की जाएगी.

नरेंद्र मोदी और भाजपा से अकेले दम पर लोहा लेकर जीत हासिल करने की इमेज उन्हें मजबूत बना सकती है.नरेंद्र मोदी और भाजपा से अकेले दम पर लोहा लेकर जीत हासिल करने से ममता बनर्जी की इमेज मजबूत हुई है.

नवीन पटनायक का रास्ता ज्यादा आसान

2024 के लोकसभा चुनाव होने में अभी तीन साल का समय है. अगर ममता बनर्जी प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए दावा करती हैं, तो उनके सामने कांग्रेस, एनसीपी, आम आदमी पार्टी समेत कई दलों को साधना होगा. ममता को यह जितना आसान लग रहा है, उतना होने नहीं वाला है. नरेंद्र मोदी और भाजपा से अकेले दम पर लोहा लेकर जीत हासिल करने की इमेज उन्हें मजबूत बना सकती है. लेकिन, मोदी और भाजपा का विकल्प बनने के लिए उन्हें अच्छी-खासी मेहनत करनी होगी. जिसके लिए वो अभी से ही मुख्यमंत्री पद पर अभिषेक बनर्जी को बैठाकर आगे की रणनीति पर काम कर सकती हैं. पश्चिम बंगाल के साथ वह केंद्र की राजनीति नहीं कर पाएंगी, क्योंकि भाजपा उन्हें किसी भी हाल में ऐसा करने नहीं देगी.

ममता बनर्जी के हो-हल्ला मचाने से कुछ खास बदलने वाला नहीं है, ये उन्हें भी पता है. 'दीदी' हर चीज के लिए सड़क पर धरना तो नहीं दे सकती हैं. ममता बनर्जी जितनी जल्दी ये समझ जाएं कि फिलहाल उन्हें तीन साल तक पश्चिम बंगाल की जनता के लिए ही काम करना है, उतना अच्छा है. लोकसभा चुनाव से पहले वह मोदी के खिलाफ बिगुल फूंक सकती हैं, राजनीतिक दलों को अपने नाम पर तैयार करने की कोशिश भी कर सकती हैं, लेकिन फिलहाल उनके लिए पश्चिम बंगाल पहली प्राथमिकता होना चाहिए. अगर वह इसी तरह व्यवहार करती रहीं, तो पांच सालों में उनके हाथों से बंगाल भी निकल जाएगा.

2020 में आए अम्फान तूफान के दौरान पश्चिम बंगाल को केंद्र सरकार की ओर से 1000 करोड़ का आर्थिक पैकेज दिया गया था. निश्चित तौर पर यह भाजपा को पश्चिम बंगाल में फायदा दिलाने के लिए किया गया फैसला था, लेकिन ओडिशा को भी उसी दौरान 500 करोड़ का पैकेज मिला था. वहीं, इस बार यास तूफान के बाद उपजे हालातों पर नवीन पटनायक ने कोरोना से जूझ रहे देश की बात कहते हुए खुद के संसाधनों से राहत और बचाव कार्ट करने की बात कही. इसके बाद भी पीएम मोदी ने ओडिशा को आर्थिक पैकेज दिया और पश्चिम बंगाल को नुकसान का पूरा ब्यौरा देने को कहा.

अब नवीन पटनायक जैसा मुख्यमंत्री विरोध का कोई मौका ही ना दे, तो भाजपा किस बात का विरोध कर सरकार में आने की कोशिश करेगी? नवीन पटनायक अपनी कुशल प्रशासक की छवि के सहारे पांच बार सीएम बन चुके हैं. ममता बनर्जी को चाहिए कि भाजपा के साथ तमाम अदावतों को छोड़कर वह राज्य चलाएं. जो अभी कर रही हैं, उसके लिए सही वक्त आने का इंतजार करें. कहना गलत नहीं होगा कि फिलहाल ममता बनर्जी के लिए नवीन पटनायक को अपना राजनीतिक गुरू मान लेना और उनके रास्ते पर चलना ज्यादा मुफीद नजर आता है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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