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Updated: 10 मई, 2022 04:06 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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'द कश्मीर फाइल्स' की रिलीज के बाद से छिड़ी नैरेटिव की जंग खत्म होती नजर नहीं आ रही है. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस विवाद को एक बार फिर से भड़का दिया है. शशि थरूर ने ट्वीट किया है कि 'भारत के सत्तारूढ़ दल द्वारा प्रचारित फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' को सिंगापुर में बैन कर दिया गया है.' शशि थरूर ने इस ट्वीट के साथ ये भी शेयर किया है कि किन वजहों से सिंगापुर ने 'द कश्मीर फाइल्स' को बैन किया. सिंगापुर ने 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म को भड़काऊ, मुस्लिमों के एकतरफा चित्रण और हिंदुओं को अत्याचार भोगने वाला दिखाए जाने वाली वजहों से बैन किया है. वैसे, बॉलीवुड की ऐसी कई फिल्में रही हैं, जो विदेशों में बैन की जा चुकी हैं. लेकिन, यहां सबसे अहम सवाल ये है कि 'द कश्मीर फाइल्स' पर सिंगापुर में बैन लगने से शशि थरूर क्यों उत्साहित हैं?

Shashi Tharoor The Kashmir Files Ban Singaporeशशि थरूर का ये ट्वीट 'द कश्मीर फाइल्स' को लेकर उनकी और कांग्रेस पार्टी की खीझ को दर्शाता है.

क्या पूरी हो गई शशि थरूर की 'मुराद'!

वैसे, कहना गलत नहीं होगा कि शशि थरूर का ये ट्वीट काफी हद तक 'द कश्मीर फाइल्स' को लेकर उनकी और कांग्रेस पार्टी की खीझ को दर्शाता है. क्योंकि, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल तक विपक्ष के हर नेता ने अपनी पूरी ताकत 'द कश्मीर फाइल्स' को भड़काऊ बताने में झोंक दी थी. लेकिन, 'द कश्मीर फाइल्स' सभी आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए देश के साथ ही विदेशों में भी काफी सराही गई. तो, सिंगापुर सरकार की ओर से फिल्म पर लगाया गया बैन शशि थरूर और कांग्रेस पार्टी समेत विपक्षी दलों के लिए किसी 'मनमांगी मुराद' के पूरे होने जैसा ही नजर आ रहा है. लिखी सी बात है कि भारत में अपना पूरा जोर लगाने के बाद भी 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म के खिलाफ माहौल बनाने में कांग्रेस कामयाब नहीं हो सकी. तो, शशि थरूर इसे भाजपा द्वारा प्रायोजित फिल्म बता कर ही कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के सामने अपने नंबर बढ़ाने की कोशिश कर रहे है.

सच पर पर्दा डालने की 'कांग्रेसी नीति'

आजादी से पहले हुए मोपला दंगों में हिंदुओं के नरसंहार की बात हो या 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन की कहानी हो. कांग्रेस ने हमेशा से ही सच को दबाए रखने की नीति अपनाई है. जिस तरह से मोपला नरसंहार को लेकर कई परिकल्पनाएं रच दी गईं. ठीक उसी तरह कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचारों को सरकारी आंकड़ों में समेट कर दर्जनों तथ्य बना दिए गए. मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर कांग्रेस ने हरसंभव तरीके से वो तर्क और तथ्य गढ़े, जो कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन की पीड़ा को कमतर बनाने के लिए काफी कहे जा सकते हैं. शाहबानो मामले की याद करें, तो साफ हो जाता है कि मुस्लिम तुष्टिकरण के चक्कर में संविधान और कानून को तिलांजलि देने से भी कांग्रेस कभी नहीं कतराई है.

कश्मीरी पंडितों की पीड़ा 'झूठी' नहीं 

दुनियाभर में फैले ज्यादातर कश्मीरी पंडितों ने 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म को हाथोंहाथ लिया. लेकिन, कुछ ऐसे भी कश्मीरी पंडित रहे, जो अपनी 'वोक' विचारधारा के चलते फिल्म से खुद को जोड़ने में नाकाम रहे. दरअसल, कश्मीरी पंडितों का ये वर्ग हिंदू समुदाय के उस 'एलीट' क्लास से आता है. जिनके परिवारों ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन के दशकों पहले ही कश्मीर छोड़ दिया था. लेकिन, खुद को कश्मीरी पंडित बताते हुए उन्हें इस ज्वलंत मुद्दे पर अपने हितों का साधने वाला 'स्पेशल कमेंट' देना जरूरी है.

वैसे, इन चंद एलीट किस्म के कश्मीरी पंडितों के कहने से पलायन और नरसंहार की पीड़ा को झूठा करार नहीं दिया जा सकता है. क्योंकि, इस फिल्म के रिलीज होने के बाद ही 'कश्मीरी पंडितों का कसाई' कहे जाने वाले बिट्टा कराटे के खिलाफ फिर से मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई है. कहना गलत नहीं होगा कि इस फिल्म के रिलीज होने के बाद ऐसा माहौल बना, जिसने कश्मीरी पंडितों के दर्द को लोगों के सामने ला दिया. जबकि, इससे पहले कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन पर देश की एक बड़ी आबादी की समझ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से ज्यादा नही थी.

मुस्लिमों के खिलाफ नहीं, बल्कि इस्लामिक कट्टरपंथ से प्रेरित कश्‍मीरी आतंकवाद पर है फिल्म

- सिंगापुर ने 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म को भड़काऊ, मुस्लिमों के एकतरफा चित्रण और कश्मीर में चल रहे हालिया टकराव के मद्देनजर हिंदुओं को अत्याचार भोगने वाला दिखाए जाने के चलते बैन किया है. हालांकि, सिंगापुर के ये सभी तथ्य बचकाने ही लगते हैं. क्योंकि, कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार और पलायन तीन दशक पहले हुआ था. लेकिन, सिंगापुर ने इसे हालिया टकराव का नाम दिया है. कश्मीरी पंडितों का नरसंहार और पलायन उनके हिंदू होने की वजह से हुआ था, इससे शायद ही कोई इनकार कर सकता है. और, ऐसा करने वाले मुस्लिम ही थे. तो, क्या उसकी जगह ईसाई, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध लोगों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

- कही पढ़ा था कि 'सत्य को छिपाने से कभी उसे असत्य साबित नहीं किया जा सकता है.' तत्कालीन सरकारों, राजनेताओं, बुद्धिजीवियों के एक धड़े ने भले ही कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन को कमतर दर्शाने की भरसक कोशिश की हो. लेकिन, 'द कश्मीर फाइल्स' ने उन सभी स्थापित तर्कों और तथ्यों को बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया है. क्योंकि, इस फिल्म का आधार ही कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन के बाद उनके सैकड़ों इंटरव्यू और डॉक्यूमेंट्री हैं.

- फिल्म कही भी मुस्लिमों के खिलाफ भड़काती हुई नजर नहीं आती है. बल्कि, इसने उस दौरान कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन से जुड़ा सच लोगों के सामने रखा है. वैसे, भारत के विपक्षी दल भी मानते हैं कि देश में आतंकवाद एक बड़ी समस्या है. लेकिन, कश्मीर का जिक्र छिड़ते ही उनकी जबान को लकवा मार जाता है. क्योंकि, इससे कश्मीरी पंडितों की कहानी सामने आ जाने का खतरा था. 

- कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ भी हुआ, वह बाकायदा धर्म के नाम पर हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाए जाने वाली क्रूरता थी. और, कश्मीरी पंडितों के साथ सहानुभूति रखने वाले अन्य धर्मों के लोगों को भी मौत के घाट उतार दिया गया. फिर वो चाहे मुस्लिम ही क्यों न रहे हों. 'द कश्मीर फाइल्स' में इस बात को भी बताया गया है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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