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Updated: 29 मई, 2019 06:26 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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अखिल भारतीय हिंदू महासभा हमेशा से ही अपनी अनोखी दलीलों और मांगों की वजह से चर्चा में रही है. मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने कब इस संगठन की ओर से कुछ अच्छा होते हुए देखा जो हिंदू समाज के लिए बहुत हितकारी रहा हो. बल्कि मैंने इस संगठन को सिर्फ इसकी क्रांतिकारी दलीलों की वजह से ही जाना है.

इतिहास जरूर ये कहता है कि ये संगठन बहुत पुराना है जिसकी स्थापना 1915 में मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में की गई थी. इससे हमारे देश के कई गणमान्य लोग जुड़े रहे जिनका आजादी में महत्वपूर्ण योगदान भी रहा. वीर सावरकर भी हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे हैं. लेकिन गांधी जी की हत्या के बाद इसके बहुत से कार्यकर्ता इसे छोड़कर भारतीय जनसंघ में भर्ती हो गये थे. वही जनसंघ जिससे भारतीय जनता पार्टी बनी. लेकिन आज जो कार्यकर्ता हिंदू महासभा से जुड़े हैं वो धर्म के नाम पर समाज के सामने ऐसे उदाहरण पेश कर रहे हैं जिससे सिर्फ विवाद जन्म ले रहे हैं. हालिया विवाद है वीर सावरकर की जयंति पर स्कूल जाने वाले छात्र-छात्राओं के हाथों में हथियार थमाया जाना.

hindu mahasabhaसावरकर जयंति पर मेधावी छात्रों को हथियार देने का क्या औचित्य?

अलीगढ़ में सावरकर जयंति पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें हिंदू महासभा की राष्ट्रीय महासचिव पूजा शकुन ने 10वीं और 12वीं के मेधावी छात्र छात्राओं को हथियार बांटे. ये वही पूजा है जो कुछ समय पहले महात्मा गांधी के पुतले पर गोली चलाकर चर्चा में आई थीं. सावरकर की जयंति पर शस्त्र और शास्त्र दोनों बांटे गए हैं. लेकिन दलील ये दी जा रही है कि आत्मरक्षा के लिए शस्त्र बांटे गए. ये पढ़ाई लिखाई करने वाले बच्चे हैं जिनके हाथों में किताबें होनी चाहिए, लेकिन हिंदू महासभा ने बच्चों के हाथों में हथियार थमाकर एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है.

बच्चों को हथियार दिए जाने पर लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर है. सोशल मीडिया पर लोग हिंदू महासभा के इस कृत्य की आलोचना कर रहे हैं. लेकिन ऐसे भी लोगों की कमी नहीं है जो हिंदू महासभा के हथियार बांटे जाने को सही ठहरा रहे हैं. असल में ये हिंदूवादी सोच के वो लोग हैं जो हिंदुत्व के नाम पर हर गलत चीज को भी सही ठहराते हैं. इनकी दलील ये है कि आत्मरक्षा के लिए हथियार रखने में बुराई ही क्या है.

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वहीं मेरठ में सावरकर जयंती के मौके पर हिंदू महासभा ने वीर सावरकर के लिए की भारत रत्न की मांग भी की है. भारत रत्न की मांग करना जायज है लेकिन जब उन्होंने कहा कि भारतीय करंसी से महात्मा गांधी का फोटो हटाकर वीर सावरकर की फोटो लगाई जाए, तो ये हास्यास्पद लगा. हालांकि ये सावरकर को सम्मान देने के लिए था, लेकिन महात्मा गांधी का विरोध साफ दिखाई दिया.

हिंदू महासभा से जुड़े ऐसे तमाम विवाद और दलीलें हैं जो इस बात की पैरवी करती हैं कि सरकार को इस संगठन के बारे में गंभीरता से सोचने और इसपर तुरंत लगाम लगाने की सख्त जरूरत है.

राजघाट में महात्मा गांधी की समाधि हटाने की मांग

19 मई 2019, गोडसे के जन्मदिन पर सूरत में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का जन्मदिन मनाया गया. हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने मंदिर में गोडसे की तस्वीर के सामने दिए जलाए और मिठाइयां बांटी. इतना ही नहीं राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर राजघाट में महात्मा गांधी की समाधि को हटाने की मांग भी की गई.

महात्मा गांधी पर फिर से चलाई गोली

30 जनवरी 2019 को जब महात्मा गांधी को देशभर में श्रद्धांजलि दी जा रही थी, तब अलीगढ़ में हिंदू महासभा की राष्ट्रीय महासचिव पूजा शकुन ने महात्मा गांधी के पुतले पर तीन गोलियां मारीं, पेट्रोल छिड़कर पुतले को फूंका और मिठाई बांटी. इतना ही नहीं इस दौरान 'गोडसे जिंदाबाद' के नारे भी लगाए गए. पूजा शकुन का कहना था कि संगठन ने हत्या की 'रिक्रिएशन' करके नई परंपरा की शुरुआत की है. और अब दशहरा पर राक्षस राजा रावण के उन्मूलन के समान इसका अभ्यास किया जाएगा. नाथूराम गोडसे के सम्मान में हिंदू महासभा महात्मा गांधी पुण्यतिथि को शौर्य दिवस (शौर्य दिवस) के रूप में मनाती है.

ताजमहल में शिव मंदिर बनाया जाए

हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज हमेशा अपने विवादित बयानों की वजह से ही सुर्खियों में रहते हैं. 2018 में स्वामी चक्रपाणि महाराज ने कहा कि- 'सरकार ने जिस तरह से लालकिले को डालमिया ग्रुप को दिया है उसी तरह से ताजमहल को हिंदू महासभा को देना चाहिए. ताजमहल में शिवालय है इसलिए हिंदू महासभा ताजमहल में शिव मंदिर बनाएगी. इससे ताजमहल का वैभव और बढ़ेगा.' पिछले ही साल इन्होंने केरल में आई बाढ़ की वजह बीफ खाना बताया था. इनका कहना था कि- 'बीफ खाने वालों को बचाना पाप है. जो जानवरों की हत्या नहीं करते उनकी मदद की जाए. बाढ़ में मासूम लोग भी मर रहे हैं और ये सिर्फ उन लोगों के कारण है जो बीफ खाते हैं.'

यहां ये बताना भी जरूरी है कि 2018 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने फर्जी बाबाओं की सूचि तैयार की थी जिसमें स्वामी चक्रपाणि महाराज का नाम भी शामिल है.

गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का मंदिर बनवाया

नवंबर 2017 में हिंदू महासभा ने मध्यप्रदेश के ग्वालियर में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का मंदिर तक बनवा लिया था. मूर्ति स्थापना करके गोडसे आरती और पूजा भी शुरू कर दी थी. इन्होंने खुद गोडसे की आरती भी बनाई. तब बीजेपी ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी कहा था. हालांकि विवाद होने पर इसे बाद में हटा दिया गया था.

'गोडसे की मूर्ति टूटी तो देश भर में तोड़ देंगे गांधी की मूर्ति'

कांग्रेस ने गोडसे के मंदिर हटाने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन किया और पुलिस को चेतावनी दी थी कि अगर दो दिन में गोडसे की मूर्ति नहीं हटी तो वह उग्र आंदोलन करेंगे और महासभा के कार्यालय से गोडसे की मूर्ति को उखाड़ फेंकेंगे. इसपर हिंदू महासभा का रवैयै एकदम आक्रामक था, उनका कहना था कि गोडसे की मूर्ति टूटी तो देश भर गांधी की मूर्तियां तोड़ देंगे.

मुसलमानों और ईसाइयों की नसबंदी हो और मस्जिदों-गिरजाघरों में देवी देवताओं की मूर्तियां लगें

2015 में हिंदू महासभा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष साध्वी देवा ठाकुर ने पत्रकार सम्मेलन में कहा था कि- 'मुसलमान और ईसाइयों की आबादी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. इसपर अकुंश लगाने के लिए केंद्र को आपातकाल लगाना होगा और उनकी नसबंदी करानी होगी ताकि इनकी आबादी न बढ़ पाए.' उन्होंने हिंदुओ से भी आह्वान किया कि वे अधिक से अधिक बच्चे पैदा करें ताकि उसका विश्व पर प्रभाव हो.' इतना ही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि- 'मस्जिदों और गिरजाघरों में देवी देवताओं की मूर्तियां लगाई जानी चाहिए'.

तो हिंदू महासभा के विचार कितने आक्रामक और नफरत फैलाने वाले हैं इन्हें इन उदाहरणों से आसानी से समझा जा सकता है. लेकिन अब समय आ गया है कि सरकार इस संगठन पर गंभीरता से विचार करे. इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करे. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर यहां सिर्फ नफरत फैलाई जा रही है. सरकार को गंभीर होने की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से सांसद बनाकर भाजपा पहले से ही विवादों में घिरी हुई है. लेकिन इसके बाद अगर हिंदू महासभा या इस तरह के दूसरे संगठन हिंदुत्व का प्रचार और प्रभुत्व के नाम पर ये सब करेंगे तो परेशानियां ही बढ़ेंगी. यहां हमें उन लोगों को भी नहीं भूलना चाहिए जो इस तरह की सोच का समर्थन करते हैं. और ये लोग कम नहीं हैं. खुद भाजपा में ही ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो गांधी के हत्यारे को महापुरुष मानते हैं. ये संगठन और ये विचार समाज पर तो असर डालते ही हैं, साथ ही सरकार की मुसीबतें भी बढ़ाते हैं. इसलिए अभी नहीं तो कभी नहीं.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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