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Updated: 05 दिसम्बर, 2015 01:30 PM
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दिल्ली में प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने और हाई कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल द्वारा सरकार की खिंचाई किए जाने के बाद नींद से जागी दिल्ली सरकार ने कई ताबड़तोड़ फैसले लिए. प्रदूषण को नियंत्रण में लाने की कोशिशों के तहत केजरीवाल सरकार के जिस एक फैसले पर सबसे ज्यादा बहस छिड़ी है वह है, 1 जनवरी 2016 से दिल्ली में प्राइवेट गाड़ियों (कार, बाइक) को महीने में 15 दिन ही चलने की इजाजत मिलना.

यानी कि दिल्ली में कार और बाइक चलाने वाले हर दिन के बजाय एक दिन छोड़कर अपनी गाड़ियां चला पाएंगे. इसके लिए सम-विषम वाला फॉर्मूला अपनाया गया है. यानी एक दिन 1,3,5,7,9 यानी विषम नंबर (ऑड नंबर) और दूसरे दिन 0,2,4,6,8 यानी सम संख्या (इवन नंबर) के नंबर प्लेट वाली गाड़ियों को ही सड़कों पर चलने की इजाजत होगी. सरकार ने भले ही अपने इस प्रयास को प्रदूषण नियंत्रण के लिए जरूरी करार दिया हो लेकिन इस कदम की कड़ी आलोचना शुरू हो गई है. लोगों ने इस फॉर्मूले की सफलता पर ही सवाल उठा दिए हैं और प्रदूषण नियंत्रण के लिए इसे फौरी सरकारी प्रयास करार देते हुए इसकी गंभीरता पर सवाल उठाए हैं.

लोगों की यह नाराजगी या सवाल बेवजह बिल्कुल भी नहीं हैं क्योंकि दिल्ली सरकार का सम-विषम संख्या वाला फॉर्मूला नया नहीं है और पश्चिमी देश इसे वर्षों पहले ही अपना चुके हैं और उन्हें इस तरह के प्रयासों में कोई खास सफलता नहीं मिली. दूसरी बात सरकार ने एकदम अचानक से ही यह फैसला ले लिया और सरकार के पास कार और बाइक छोड़कर सड़कों पर उतरे लोगों को यातायात की सुविधा उपलब्ध कराने और अचानक ही इन लाखों लोगों की भीड़ के आने से पहले से ही दिक्कतों का सामना करने वाले डेली पैसेंजर्स की परेशानियां बढ़ने जैसी चिंताओं का समाधान करने का कोई निश्चित फॉर्मूला नहीं है.

साथ ही भले ही सरकार पुलिस, ट्रांसपोर्ट विभाग और दिल्ली मेट्रो से इस पर चर्चा करके लोगों को किसी भी तरह की परेशानी से बचाने की बात कर रही हो लेकिन हकीकत तो ये है कि खुद ट्रांसपोर्ट विभाग और ट्रैफिक पुलिस इस नियम को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं और खुद ही इसे कैसे लागू करना है, इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं है. इस नियम के आलोचक यह भी तर्क दे रहे हैं कि अमीर लोग जिनके पास तीन-चार गाड़ियां है उन्हें इस नियम से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा बल्कि मध्यम वर्गीय आदमी जिनके पास एक ही कार है, वह इस नियम से ज्यादा प्रभावित होंगे. तो अमीर लोग जो ज्यादा कार प्रयोग करते हैं उन पर रोक लगा पाना मुश्किल होगा. साथ ही लोग इस नियम की काट खोजने के लिए ऑड या इवन दोनों ही नंबर वाली गाड़ियों अपने पास रखने की कोशिश करने लगेंगे, जिससे गाड़ियों की संख्या और बढ़ेगी और साथ ही प्रदूषण का खतरा भी.

दुनिया के कई देशों में पहले ही फेल हो चुका है यह फॉर्मूलाः दिल्ली सरकार गाड़ियों को एक दिन के अंतराल पर चलाने का जो फॉर्मूला लेकर आई है वह दुनिया के कई बड़े देशों में पहले ही फेल चुका है. आइए डालें एक नजर.

1. इस तरह का फॉर्मूल अपनाने वाला मैक्सिको पहला देश था. 1986 में मैक्सिको सिटी में नंबर प्लेट के अनुसार गाड़ियों को हफ्ते में एक दिन न चलाने का नियम बनाया गया. इसके पीछे प्रदूषण को घटाने के साथ-साथ लोगों द्वारा पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग बढ़ाने की सोच थी. शुरुआत में तो प्रदूषण घटा लेकिन 11 महीने बाद ही प्रदूषण का स्तर पहले से भी ज्यादा हो गया. वजह लोगों ने ज्यादा गाड़ियां खरीदना शुरू कर दीं. जिससे सम-विषम संख्या वाले नियम को मात दी जा सके और वे रोक वाले दिन भी गाड़ियों का प्रयोग कर सकें. साथ ही लोगों ने बजाय के पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करने के टैक्सियों का ज्यादा प्रयोग करना शुरू कर दिया. नतीजा, प्रदूषण पहले से भी ज्यादा खतरनाक स्तर पर पहुंच गया.

2. चीन ने 2008 के ओलिंपिक के आयोजन के लिए अपनी राजधानी बीजिंग को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए शहर की फैक्ट्रियों को बंद करने और गाड़ियों के महीने में 15 दिन ही चलने जैसे नियम बनाए. उसे शुरुआत में तो सफलता मिली लेकिन यह कोशिश लंबे समय तक नहीं टिक सकी और जल्द ही बीजिंग एक फिर से प्रदषण की गिरफ्त में आ गया. सर्दियों में बीजिंग स्मोग (कोहरे और धुएं को मिलाकर बना) की समस्या से पीड़ित रहा है. इसके बाद चीन ने कोल एनर्जी से ग्रीन एनर्जी की ओर बढ़ने और सभी फैक्ट्रियों को शहर से बाहर ले जाने जैसी योजनाएं चलाई हैं.

3. पेरिस की राजधानी फ्रांस में मार्च 2014 में प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने के बाद वहां एक दिन सम संख्या और अगले दिन विषम संख्या वाली गाड़ियों के चलाने का नियम बनाया गया. लेकिन इससे पहले कि विषम संख्या वाली गाड़ियां सड़कों से हटतीं फ्रांस सरकार ने बैन यह कहते हुए हटा दिया कि हवा की गुणवत्ता बेहतर हो गई है. इस एक दिन के कार बैन के बाद पुलिस ने शाम तक करीब 4 हजार गाड़ियों पर जुर्माना लगाया और इससे पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग भी नहीं बढ़ा.

4. ब्रिटेन ने इस मामले में सबसे बेहतरीन कोशिश की थी. 2008 में उसने लो इमिशन जोन पॉलिसी बनाई. इसके तहत शहर के जिन हिस्सों में सबसे ज्यादा प्रदूषण था, वहां उन्हीं गाड़ियों को चलने की इजाजत दी गई जोकि उत्सर्जन के तय मानकों का पालन करती हैं. ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियां पर 100 से 200 पाउंड का जुर्माना लगाया गया. हालांकि 2015 में सबसे ज्यादा प्रदूषित क्षेत्रों के 23 स्कूल के बच्चों पर हुई एक स्टडी से पता चला कि यहां के बच्चों में अभी भी प्रदूषण के कारण उतनी ही बीमारियों के ग्रसित हैं, जितना कि इस नियम के लागू होने से पहले थे.

इन उदाहरणों से साफ है कि दिल्ली सरकार की इस योजना के सफल होने के आसार कम ही हैं और ऐसा लगता है कि सरकार ने इस योजना को लागू करने के लिए ठीक से होमवर्क भी नहीं किया है. खैर, इस योजना की सफलता तो समय ही तय करेगा लेकिन लोग इस योजना की जमकर खिंचाई कर रहे हैं. ट्विटर पर #DelhiOddEvenLogic टॉप ट्रेंड कर रहा है, जिसमें लोगों ने अपने-अपने तरीके से सरकार की इस योजना की टांग खिंचाई की है.

देखें लोगों ने क्या कहा ट्विटर परः

 

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