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Updated: 17 मई, 2021 11:08 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कोविड-19 महामारी पर काबू पाने के लिए कई राज्यों ने लॉकडाउन लगाया हुआ है. कुछ राज्यों में कड़े प्रतिबंधों के साथ आंशिक लॉकडाउन लगा हुआ है. लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है. इसी के अनुपात में बेरोजगारी का भी आंकड़ा बढ़ गया है. कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच कांग्रेस लगातार मोदी सरकार से देश के गरीब लोगों को 'न्याय' देने की मांग कर रही है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत कांग्रेस के कई नेता कोरोना और लॉकडाउन से प्रभावित गरीबों को 6000 रुपये प्रति माह की मदद के लिए मोदी सरकार से पत्र के जरिये या मौखिक रूप से 'न्याय योजना' की मांग कर चुके हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि लोगों को न्याय दिलाने की मांग कांग्रेस शासित राज्यों में लागू क्यों नहीं होती है?

छत्तीसगढ़ में किसानों के लिए आई न्याय योजना

बीते साल लगे लॉकडाउन के बाद मोदी सरकार की 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि ये मदद लोन के जरिये नहीं, सीधे लोगों के खाते में पहुंचनी चाहिए. केरल में भी चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट 'न्याय योजना' को लागू करने की बात की थी. लेकिन, केरल में कांग्रेस के चुनाव हारने से ये हो नहीं सका. वैसे, बीते साल पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि यानी 21 मई 2020 को छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने राजीव गांधी किसान न्याय योजना की शुरूआत की थी. यानी सिर्फ किसानों तक सीमित. वैसे ही, जैसे केंद्र सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत किसानों को छह-छह हजार रु दे रही है. यानी, यहां भी राहुल गांधी की मंशा के अनुसार 'न्याय' गरीबों पर तक नहीं पहुंच रहा है, जिन पर कोरोना की दोहरी मार आन पड़ी है.

भूपेश बघेल सरकार का बढ़ा केवल कर्ज

छत्तीसगढ़ में चल रही न्याय योजना पर जाने से पहले इसका अंकगणित समझ लेते हैं. इस योजना से छत्तीसगढ़ सरकार पर 5700 करोड़ रुपयों का अतिरिक्त भार पड़ा है. किसानों की कर्जमाफी, समर्थन मूल्य समेत कई योजनाओं के सहारे छत्तीसगढ़ की सत्ता पाने वाली कांग्रेस कर्ज लेने के मामले में भी रिकॉर्ड बना चुकी है. छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार बीते दो सालों में 25,277 करोड़ रुपयों का कर्ज ले चुकी है. भूपेश बघेल की सरकार पर 66,968 करोड़ रुपये का कर्ज हो चुका है. भूपेश बघेल सरकार को इस साल कर्ज के ब्याज का भुगतान करने के लिए 5330 करोड़ रुपयों की जरूरत होगी. जिसके लिए वह फिर से कर्ज ले सकती है. ऐसी योजनाओं से सीधे तौर पर राज्य सरकार पर कर्ज बढ़ता है और इसका असर राज्य की जनता पर नए-पुराने टैक्स के रूप में पड़ता है. कोरोनाकाल में पूरे देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है. तकरीबन हर राज्य कोरोना महामारी की वजह से भारी आर्थिक संकट से गुजरा है. बीते वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान जीएसडीपी के मामले में 3.62 लाख करोड़ के साथ छत्तीसगढ़ 19वें स्थान पर था. छत्तीसगढ़ में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन यह अभी तक उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सका है.

न्याय योजना लागू होने से कांग्रेस के दोनों हाथों में लड्डू हो सकते हैं.न्याय योजना लागू होने से कांग्रेस के दोनों हाथों में लड्डू हो सकते हैं.

मोदी सरकार पर दबाव बने तो कैसे?

कांग्रेस शासित राज्यों में शामिल राजस्थान या पंजाब ने न्याय योजना को लागू करने की बात कभी नहीं की गई है. दरअसल, इन राज्यों का कर्ज पहले से ही लाखों करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. इस स्थिति में ये राज्य न्याय योजना के लोक लुभावन वादे से दूरी बनाए हुए हैं. अगर ये योजना इतनी ही कारगर और अच्छी है, तो राजस्थान और पंजाब ने इसे अभी तक लागू क्यों नहीं किया है. वैसे, अगर छत्तीसगढ़ में शुरू हुई न्याय योजना के सहारे लोगों के जीवन में कोई बड़ा बदलाव आया होता, तो केंद्र की मोदी सरकार पर यह दबाव बन सकता था कि वह इस योजना को लागू करे. छत्तीसगढ़ में किसानों के लिए जारी की गई न्याय योजना भूपेश बघेल सरकार पर केवल कर्ज बढ़ा रही है. ये योजना सुनने में जरूर अच्छी लग सकती है, लेकिन इसे लागू करने के लिए सरकार के पास फंड भी होना जरूरी है. यहां एक बात और है कि छत्तीसगढ़ छोटा राज्य है, तो वहां न्याय योजना चलाई जा सकती है. लेकिन, बड़े राज्यों में ये सरकारों के लिए सिरदर्द बन सकती है. इससे इतर मोदी सरकार की ओर से गरीबों के लिए मुफ्त राशन, गैस जैसे कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. किसान निधि योजना के तहत भी मोदी सरकार किसानों को राहत पहुंचाने की कोशिश करती है.

कांग्रेस की जरूरत है न्याय योजना

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जिस 'तुरुप के इक्के' के साथ सत्ता में वापसी की उम्मीदें लगाए बैठी थी, उस 'न्याय योजना' पर लोगों का भरोसा कायम नहीं पाया था. दरअसल, कांग्रेस की ओर से लगातार न्याय योजना की मांग करने की वजह ये है कि इस योजना के सहारे कांग्रेस की राजनीति सधती हुई दिखती है. अगर मोदी सरकार न्याय योजना लागू करती है, तो कांग्रेस इसे अपनी एक बड़ी जीत के तौर पर पेश करने से नहीं चूकेगी. दूसरी ओर उसके लिए यह मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का राजनीतिक हथियार भी है. कांग्रेस के ओर से इस बात को प्रचारित करने में कोई कमी नहीं रखी जाएगी कि मोदी सरकार ने गरीबों से मुंह मोड़ लिया है. इस योजना को लागू करने की मांग कर रही कांग्रेस के दोनों हाथों में लड्डू हैं. 2024 में विपक्ष का नेता बनने से पहले राहुल गांधी को एक ऐसी योजना की अदद जरूरत है, जिससे उन्हें स्थापित नेता के तौर पर पेश किया जा सके.

चुनाव जीतने भर के लिए ऐसी लोक लुभावन योजनाओं का सहारा लेना किसी के लिए भी हितकारी नहीं कहा जा सकता है. खासकर उन राज्यों के लिए जिनकी जीएसडीपी कम हो. एक आंकड़े के अनुसार, भारत में करीब 10 करोड़ गरीब परिवार है. अगर इन सभी को न्याय योजना का लाभ दिया जाए, तो केंद्र सरकार पर करीब 720 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. ऐसे समय में जब देश की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी की वजह से धड़ाम हुई पड़ी है, न्याय योजना केवल सरकार पर कर्ज ही बढ़ाएगी. वैसे, कर्ज लेकर घी पीने की बात केवल किताबों में ही अच्छी लगती है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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