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Updated: 07 जुलाई, 2021 07:58 PM
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यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP assembly elections 2022) के मद्देनजर सूबे में गठबंधनों (alliance) का सियासी खेल शुरू हो गया है. सपा (SP) और आम आदमी पार्टी (AAP) के गठबंधन की सुगबुगाहट से लेकर छोटे सियासी दलों के भागीदारी संकल्प मोर्चा तक हर बदलते दिन के साथ उत्तर प्रदेश में नए गठबंधन समीकरण सामने आ रहे हैं. बिहार और पश्चिम बंगाल में अपनी किस्मत आजमा चुकी असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी यूपी में अपने पैर पसारने के लिए किसी बड़े विपक्षी दल से गठबंधन करने की योजना बना रही है. लेकिन, उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के तमाम सियासी दलों ने एआईएमआईएम से दूरी बना ली है.

2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में बसपा (BSP) और एआईएमआईएम ने गठबंधन किया था. जिसके चलते AIMIM ने बिहार में पांच विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. इसी वजह से कयास लगाए जा रहे थे कि उत्तर प्रदेश में भी दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन हो सकता है. हालांकि, बिहार के विपरीत बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने पहले ही एआईएमआईएम के साथ गठबंधन की बात को नकार दिया. 27 जून को एक ट्वीट करते हुए मायावती ने लिखा कि अगला विधानसभा चुनाव बसपा और एआईएमआईएम एक साथ लड़ेंगे, इन खबरों में जरा भी सच्चाई नहीं है. बसपा 2022 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी. मायावती ने स्पष्ट शब्दों में जाहिर कर दिया कि बसपा का ओवैसी और एआईएमआईएम से नजदीकी बढ़ाने का कोई इरादा नहीं है.

सपा और बसपा का ओवैसी और एआईएमआईएम से नजदीकी बढ़ाने का कोई इरादा नहीं है.सपा और बसपा का ओवैसी और एआईएमआईएम से नजदीकी बढ़ाने का कोई इरादा नहीं है.

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने भी एआईएमआईएम से उचित दूरी बनाई हुई है. असदुद्दीन ओवैसी कई मौकों पर अखिलेश यादव की तारीफ कर चुके हैं. लेकिन, इन सबके बावजूद सपा ने एआईएमआईएम से किनारा किया हुआ है. सियासी दलों की एआईएमआईएम को लेकर बेरुखी को देखकर संकेत मिल रहे हैं कि बंगाल की ही तरह असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी को यूपी में गठबंधन करने के लिए कोई बड़ा राजनीतिक दल नहीं मिलेगा. लखनऊ के विद्यांत कॉलेज में इकोनॉमिक डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर मनीष हिंदवी कहते हैं, 'यूपी में मुस्लिम वोट बैंक सपा और बसपा के बीच बंट गया है. दोनों पार्टियां सूबे में भाजपा को टक्कर देने के लिए मुस्लिम वोट बैंक को अपने हक में लाने के लिए ज्यादा कोशिशें करने से कतरा रही हैं. ओवैसी को साथ लेने से भाजपा के पक्ष में बहुसंख्यक वोटों के ध्रुवीकरण का खतरा बढ़ जाएगा. वहीं, कुछ सीटें जीतकर असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम वोट बैंक में नए भागीदार के तौर पर उभरेंगे.'

2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरे थे. सपा ने चार और बसपा ने छह मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. सपा और बसपा के तीन-तीन मुस्लिम उम्मीदवार जीते और इस तरह से लोकसभा को यूपी के छह मुस्लिम सांसद मिले. ये 2014 के लोकसभा चुनाव के बिल्कुल उलट था. मोदी लहर के बीच यूपी में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार जीतने में कामयाब नहीं हुआ था.

उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में मुसलमानों की संख्या 19 प्रतिशत है. इसके बावजूद मुस्लिम उम्मीदवारों ने राज्य की 80 लोकसभा सीटों के मात्र 10 प्रतिशत से कम सीटों पर जीत हासिल की. हिंदवी कहते हैं, '2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन को एकतरफा मुस्लिम वोट मिला. इसकी वजह से हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा की ओर हो गया. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में बहुसंख्यक मतदाताओं का ध्रुवीकरण रोकने के लिए सपा और बसपा एआईएमआईएम से दूरी बनाए हुए हैं.'

सपा और बसपा द्वारा ठुकराए जाने के बावजूद एआईएमआईएम ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी है. एआईएमआईएम ने विधायक उम्मीदवारों के लिए आवेदन पत्र जारी किया है, जिसमें 'वफादारी कॉन्ट्रैक्ट' भी शामिल है. इस कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार, आवेदक को पार्टी के लिए ईमानदारी से काम करना होगा और चुनाव लड़ने के लिए टिकट न मिलने की स्थिति में भी उसके लिए प्रचार करना होगा. हालांकि, इस आवेदन पत्र के लिए आवेदकों को 10,000 रुपये का आवेदन शुल्क भी देना होगा.

एआईएमआईएम की राज्य इकाई के अध्यक्ष शौकत अली का कहना है कि पार्टी यूपी की 403 सीटों में से करीब 100 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए खुद को तैयार कर रही है. AIMIM ने उत्तर प्रदेश की उन सौ विधानसभा सीटों का चयन किया है, जहां मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से ज्यादा है. ये सीटें पश्चिमी यूपी के अलावा पूर्वांचल, रोहिलखंड और मध्य यूपी की हैं. बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 38 उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा था. पार्टी को 2.46 प्रतिशत वोट ही मिले थे. सहारनपुर के उम्मीदवार को छोड़कर बाकी के सभी 37 उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो गई थी. कहना गलत नहीं होगा कि बिहार की तरह यूपी में मुख्य विपक्षी दलों के बीच अलग-थलग पड़े ओवैसी कोई खतरा पैदा नहीं कर पाएंगे.

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