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Updated: 29 जुलाई, 2017 01:42 PM
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"हम हर तरह की जांच-पड़ताल कर रहे हैं उन सभी के खिलाफ जिनका नाम पनामा पेपर्स में आया है..." ये स्टेटमेंट अरुण जेटली ने पिछले साल दिया था. जब 2016 में पनामा गेट मामले में 424 भारतीयों के नाम सामने आए थे तो हड़कंप मच गया था. अब आइसलैंड के प्रधानमंत्री सिग्मुंदुर डेविड गनस्लॉसन और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ दोनों को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ गई है.

पनामा स्थिति लॉ फर्म मोजैक फोंसेका के लीक हुए 1.1 करोड़ डॉक्यूमेंट्स ने दुनिया भर के कई प्रभावशाली लोगों द्वारा अपनी दौलत छुपाने और टैक्स चोरी करने के लिए शेल कंपनियों के सहारा लिए जाने का मामला सामने आया है. इस लिस्ट में दुनिया भर के 140 ताकतवर राजनेताओं का नाम शामिल है.

Pakistan, Panama, Nawaz Sharif, India, Amitabh bachchan

आइलैंड, पाकिस्तान दोनों के ही हाईप्रोफाइल नाम टैक्स चोरी के मामले में सामने आए. बड़े लोग हैं भाई अपनी काली कमाई छुपानी होगी. अब एक बात तो पक्की है कि पाकिस्तानी कोर्ट ने इस मामले में भारत से ज्यादा तेजी दिखाई. मुद्दा ये है कि क्या भारत की चाल इस मामले में सही है?

40 देश और कई जर्नलिस्ट की नजरें पनामा पेपर्स पर गड़ी हुई है. आखिर ऐसा क्या हुआ कि पनामा पेपर्स मामले में नवाज शरीफ का तख्त ही पलट हो गया और अभी तक भारतीय नामों पर कोई बात ही नहीं की गई.

भारत में पनामा पेपर्स में करीब 424 नाम थे और इनमें प्रमुख अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन, विनोड अडाणी, डीएलएफ के मालिक के पी सिंह और उनके परिवार के 9 सदस्य शामिल थे. अब आखिर ऐसा क्या हुआ कि उनके खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं हो रही है? (कम से कम हमें दिख तो नहीं रही है) खासतौर पर ऐसे समय जब मोदी सरकार कर चोरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बहुत सख्त दिखाई दे रही है.

नवाज शरीफ और अमिताभ बच्चन में अंतर...

देखिए एक जो सीधा सा अंतर मुझे समझ आता है वो ये है कि नवाज शरीफ की और पाकिस्तानी सेना की पिछले कुछ समय से ठीक से बन नहीं रही थी. पाकिस्तान में शुरू से ही सरकारों पर सेना ही भारी रही है और ऐसा ही कुछ इस बार भी हुआ. जानकारों की मानें तो नवाज शरीफ को गद्दी से हटाने के पीछे भी पाकिस्तानी सेना की चाल कुछ हद तक सफल रही है. दरअसल, नवाज शरीफ की तरफ से पाकिस्तान में लिए गए कई फैसले पाकिस्तानी सेना को पसंद नहीं आए खासतौर से उत्तरी वजीरिस्तान और कबीलाई इलाकों में तहरीक ए तालिबान के खिलाफ नवाज शरीफ की बड़ी कार्रवाई में भी सेना के कई जनरल पाकिस्तान में नाराज थे. पाकिस्तान में नवाज शरीफ की तरफ से आर्थिक विकास और पड़ोसियों के साथ दोस्ती भी पाकिस्तानी सेना को रास नहीं आ रही थी.

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अमिताभ बच्चन, विनोद अडानी, एश्वर्या राय बच्चन जैसे लोगों के साथ ऐसा कोई मामला नहीं है ये लोग ऐसे नहीं हैं कि इनके खिलाफ कोई राजनीतिक विरोध हो और इसलिए भी ये लोग बचे हुए हैं. और अमिताभ बच्चन तो मोदी सरकार के कई कैंपेन का हिस्सा भी हैं ऐसे में कोई एक्शन ना लिया जाना स्वाभाविक है. अगर एक्शन लिया जा रहा है और इसे गुप्त रखा जा रहा है (इसकी संभावना भी हो सकती है) तो हमे कुछ नहीं पता. 

तीसरा ये कि कानून में काफी अंतर है. हमारे यहां कानून में ऐसे कोई प्रावधान नहीं है कि अगर आपने कोई गलत शपथ पत्र दिया है तो आप डिस्क्वालिफाई हो जाओगे, हमारे यहां टैक्स चोरी को एक खतरनाक अपराध नहीं माना जाता है. भारत में जो रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट (RP Act) में ऐसा कुछ भी नहीं है. अगर टैक्स चोरी के मामले में हमारे यहां कोई एमपी या एमएलए पकड़ा भी जाता है तो भी उसके मामले में कोई कार्यवाही नहीं होती उसे या तो फाइन देना होता या फिर 6 महीने की जेल.

पाकिस्तान में मरियम शरीफ ने लंदन के 4 फ्लैट के मामले में फर्जी पेपर्स दिखाए और शरीफ के खिलाफ भी गंभीर आरोप लगे इसलिए उन्हें खारिज कर दिया गया. नवाज शरीफ डिस्क्वालिफाई कर दिए गए हैं.

दूसरी बात ये है कि विदेशों में कोई जांच-पड़ताल करना बहुत मुश्किल है. ऐसे में टैक्स डिपार्टमेंट को (खासतौर पर भारत के) थोड़ा समय तो लगेगा ही. अब अभी तो भारतीय टैक्स डिपार्टमेंट अपने देश के नागरिकों से सीधा सा टैक्स नहीं वसूल पा रहा है और उसके लिए प्रोजेक्ट इनसाइट जैसा एक महत्वकांक्षी टूल लाया जा रहा है.

जो जर्नलिस्ट इस इन्वेस्टिगेशन में शामिल है उनमें से एक रितू सरीन ने क्विंट को दिए अपने इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने टैक्स डिपार्टमेंट को इतनी तेजी से काम करते हुए नहीं देखा है और अगर ऐसी कोई बात होती है तो जिस तरह प्याज की हर परत को एक-एक कर छीला जाता है उसी तरह से ये जांच भी हो रही है. सरीन का कहना है कि अमिताभ बच्चन समेत सभी को नोटिस भेजा गया है और टैक्स डिपार्टमेंट हर काम गोपनियता से कर रहा है.

और फिर भारत में इतनी जल्दबाजी से कोई काम होता भी नहीं है. बोफोर्स से उबरने में अमिताभ बच्चन को बरसों जरूर लग गये लेकिन पनामा में इतना वक्त कहां कि फैसला आने में इतना भी वक्त लगे.

वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता का मानना है, "हमने 35 साल पहले भी 'बोफोर्स' के रूप में यही सबकुछ देखा है... आज अगस्टा मामला भी बोफोर्स कांड की तरह एक ठंडे अंत की ओर बढ़ रहा है."

यदि शेखर गुप्ता की ही बात को आगे बढ़या जाए तो अगस्टा की तरह पनामा गेट भी कम से कम भारतीयों के मामले में ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा है.

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