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Updated: 21 जून, 2016 07:45 PM
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सीधे सीधे तो सुब्रमण्यन स्वामी ने अरविंद केजरीवाल को अपना अगला टारगेट बताया है. स्वामी का कहना है कि अब तक वो रघुराम राजन के पीछे लगे थे अब केजरीवाल सरकार को बताएंगे. लेकिन क्या स्वामी के बयान का इतना ही मतलब है?

लगे हाथ स्वामी ने ये भी जता दिया कि नजीब जंग की भी चाल चलन ठीक नहीं हैं - वो भी दूसरों के इशारे पर काम कर रहे हैं. संविधान के तौर तरीके के खिलाफ. कायदे से उन्हें महेश गिरि को प्रोटेक्ट करना चाहिये था, जैसा कि स्वामी का कहना है.

कहीं ऐसा तो नहीं कि केजरीवाल को निशाने पर बताकर स्वामी जंग के पीछे लगने जा रहे हैं?

कांग्रेस शासन में नियुक्ति

कहीं राजन जैसा खतरा नजीब जंग पर तो नहीं मंडरा रहा? रघुराम राजन और नजीब जंग में एक कॉमन बात ये है कि दोनों की मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान नियुक्त हुए थे.

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राजन को यूपीए 2 सरकार ने अगस्त 2012 में मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया. बाद में उन्हें रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाने की घोषणा की गई और सितंबर 2013 में उन्होंने कार्यभार भी संभाल लिया.

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कौन है टारगेट नंबर 1?

नजीब जंग को जुलाई, 2013 में तेजेंद्र खन्ना की जगह दिल्ली का उप राज्यपाल बनाया गया. 1973 बैच के आईएएस जंग उस वक्त सेंट्रल यूनिवर्सिटी जामिया मिल्लिया इस्लामिया में बतौर वाइस चांसलर 2009 से कार्यरत थे.

2014 में मोदी सरकार बनने के बाद इन दोनों को लेकर भी अटकलों का दौर शुरू हुआ था, लेकिन कुछ दिन बाद वो थम गया.

स्वामी का निशाना

रघुराम राजन और वित्तमंत्री अरुण जेटली के बीच खटपट की चर्चा तो अक्सर होती रही, लेकिन नजीब जंग को लेकर बीजेपी खेमे से पहले कभी कोई ऐसी वैसी बात सुनने को नहीं मिली.

इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद नजीब जंग के खिलाफ इतने हमलावर रहे कि किसी का ध्यान ही न गया हो. हाल फिलहाल की ही बात है, केजरीवाल ने जंग को बड़े ही जलालत भरे लहजे में एक चिट्ठी में लिखा - कुछ भी कर लो मोदी सरकार उपराष्ट्रपति नहीं बनाने वाली.

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महेश गिरि के सपोर्ट में बोलते वक्त स्वामी ने केजरीवाल की तुलना मोहम्मद बिन तुगलक से की और उन्हें श्री420 बताया तो नजीब जंग को भी नालायक तक कह डाला. स्वामी का भी लहजा तकरीबन वैसा ही रहा जैसा मोदी के खिलाफ केजरीवाल का हुआ करता है, जब वो कायर और मनोरोगी बुलाया करते हैं.

स्वामी ने हमले में मर्यादा की सारी हदें पार कर दी और जंग को कांग्रेस के दलाल के तौर पर पेश करने की कोशिश की. स्वामी ने सरेआम कहा कि नजीब जंग रोजाना सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल से मिलते रहते हैं.

रिजर्व बैंक गवर्नर राजन के खिलाफ भी स्वामी ने लगातार ऐसे ही हमले किये. राजन को तो स्वामी ने विदेशी एजेंट तक बता डाला था. नतीजा ये हुआ कि खुद राजन ने अपने आप को इन विवादों से दूर रखने का फैसला किया और कार्यकाल पूरा होने के बाद दफ्तर न आने की घोषणा कर डाली.

नजीब जंग के खिलाफ भी स्वामी का बिलकुल वही अंदाज नजर आ रहा है जो राजन के खिलाफ रहा. क्या स्वामी के एजेंडे में केजरीवाल से पहले नजीब जंग का नंबर है? तो क्या राजन की तरह नजीब जंग को भी सरकार का संकेत समझ जाना चाहिये? ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब स्वामी के बयान में छिपे हुए लगते हैं.

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