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Updated: 06 अक्टूबर, 2016 09:13 PM
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जस्टिस रूपनवाल कमीशन की रिपोर्ट का लब्बोलुआब तकरीबन यही है. रोहित वेमुला खुदकुशी केस की जांच करने वाले कमीशन की नजर में केंद्र के उन दोनों मंत्रियों का कोई रोल नहीं है जो सीधे मामले की जद में नजर आये.

कमीशन की रिपोर्ट को बीजेपी क्लीन चिट के तौर पर ले सकती है तो विपक्ष कह सकता है कि रिपोर्ट में वही बातें हैं जो अब तक मोदी सरकार के मंत्री दावा करते रहे.

रोहित के मामले में मायावती ने संसद में स्मृति ईरानी को घेरा था तो लखनऊ में प्रधानमंत्री मोदी को भी छात्रों का विरोध झेलना पड़ा था. कुछ महीने बाद ईरानी के एचआरडी मंत्रालय से हटाने में भी इस मामले की कुछ न कुछ भूमिका जरूर रही.

दलित विमर्श?

रोहित वेमुला की खुदकुशी के मामले में सीधे तौर पर दो केंद्रीय मंत्री - स्मृति ईरानी और बंडारू दत्तात्रेय निशाने पर आये थे. हुआ ये था कि एबीवीपी के कुछ कार्यकर्ताओं ने बंडारू दत्तात्रेय से मिलकर यूनिवर्सिटी में सक्रिय छात्रों के एक ग्रुप की शिकायत की. स्थानीय सांसद होने के नाते बंडारू ने तब की एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी को एक पत्र लिख कर यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों के एंटी नेशनल गतिविधियों में शामिल होने की शिकायत की. जिसके बाद मंत्रालय की ओर से एक के बाद एक कई रिमाइंडर भेजे गये.

तभी विश्वविद्यालय प्रशासन ने रोहित और उनके कुछ साथियों को यूनिवर्सिटी से निकाल दिया - और उसके विरोध में वे बाहर धरने पर बैठ गये. उसी दौरान रोहित ने अचानक खुदकुशी कर ली.

फिर पूरे देश में बवाल होने लगा. मामला यूनिवर्सिटी के एक दलित छात्र का होने के कारण खूब तूल पकड़ा. देखते देखते रोहित के दलित होने पर भी बहस होने लगी.

इसे भी पढ़ें: रोहित वेमुला के दलित होने की अफवाह किसने फैलाई?

संसद में बजट सत्र की शुरुआत थी. मायावती पहले से तैयारी के साथ पहुंची थीं. राज्य सभा की कार्यवाही शुरू होते ही उन्होंने रोहित वेमुला की खुदकुशी के लिए जिम्मेदार केंद्रीय मंत्रियों के इस्तीफे और विश्वविद्यालय के कुलपति को हटाने की मांग की.

निशाने पर मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी थीं, इसलिए उन्होंने खुद ही मोर्चा संभाला, "मायावती जी, मैं आपसे प्रार्थना करती हूं, आप एक वरिष्ठ सदस्य होने के साथ औरत भी हैं. आप जवाब चाहती हैं, मैं देने के लिए तैयार हूं. अगर आप संतुष्ट नहीं हुईं, तो मैं अपना सिर काट कर आपके पैरों में रख दूंगी.'

मायावती इस बात पर अड़ी थीं कि ज्यूडिशियल कमेटी में दलित क्यों नहीं है? मायावती ने कमेटी में कम से कम एक दलित सदस्य को शामिल करने की मांग की. बीएसपी सदस्यों का हंगामा जारी रहा.

इस पर ईरानी ने सवाल उठाया कि क्या दलित वही माना जाएगा जिसके दलित होने का सर्टिफिकेट मायावती देंगी?

तब तक तैश में आ चुकीं ईरानी बोलीं, "दलित प्रोफेसर का निर्णय आपने स्वीकार नहीं किया. मायावती जी आप यही कहना चाहती हैं कि कोई दलित तभी होगा, जब मायावती जी सर्टिफिकेट देंगी."

झूठ, झूठ और झूठ?

रोहित के परिवार के लोग और मित्रों ने दिल्ली में मीडिया के सामने आकर कहा कि खुदकुशी को लेकर संसद में जो भी कहा गया - वो पूरी तरह झूठ है.

सभी ने एक स्वर से कहा, "स्मृति ईरानी सफेद झूठ बोल रही हैं."

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दूध का दूध और...

रोहित के परिवार और मित्रों ने कहा, "जाति प्रमाण पत्र से साबित होता है कि वह दलित था."उन्होंने कहा, "रोहित की मां अनुसूचित जाति की हैं और रोहित की दादी, जिन्होंने उनकी मां को गोद लिया था वह भी अनुसूचित जाति से संबंधित हैं." उनका कहना था कि सारे झूठ स्मृति ईरानी ने सिर्फ इसलिए बोले, ताकि बीजेपी और उनके अधिकारियों की ओर से ध्यान भटकाया जा सके.

दूध का दूध और...

रोहित वेमुला ने 17 जनवरी को यूनिवर्सिटी हॉस्टल के एक कमरे में कथित तौर पर फांसी लगा ली थी - और 28 जनवरी 2016 को मानव संसाधन मंत्रालय ने मामले की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था. आयोग के अध्यक्ष इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके रूपनवाल ने अपनी 41 पन्नों की रिपोर्ट अगस्त में जमा कर दी थी. बताया गया है कि रिपोर्ट तैयार करने में जस्टिस रूपनवाल ने यूनिवर्सिटी के 50 से अधिक लोगों से बात की.

रिपोर्ट के अनुसार 26 वर्षीय रोहित ने निजी हताशा के कारण आत्महत्या की, न कि किसी भेदभाव के चलते. रोहित को यूनिवर्सिटी हॉस्टल से निकाले जाने को भी रिपोर्ट में प्रशासन द्वारा लिया सकने वाला सबसे तार्किक फैसला बताया गया है.

रिपोर्ट कहती है कि दोनों केंद्रीय मंत्रियों स्मृति ईरानी और बंडारू दत्तात्रेय ने महज अपना दायित्व निभाया और यूनिवर्सिटी प्रशासन पर कोई दबाव नहीं डाला गया था.

कमीशन की रिपोर्ट में इस बात की पड़ताल की गई है कि क्या राधिका माला समुदाय से हैं या नहीं? माला समुदाय के लोग एससी कैटेगरी में आते हैं. कमीशन का मानना है कि रोहित को जो जाति प्रमाण पत्र मिला उसमें पूरी प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ - और चूंकि रोहित की मां माला समुदाय से नहीं आतीं इसलिए जाति प्रमाण पत्र सही नहीं था.

कमीशन के मुताबिक राधिका ने खुद को माला समुदाय का बताया ताकि उनके बेटे रोहित को जाति प्रमाणपत्र मिल सके - और ऐसा उन्होंने बेटे को आरक्षण का फायदा दिलाने के लिए किया.

कमीशन ने अपनी जांच में पाया कि रोहित की मां राधिका वेमुला को पालने वाले माता पिता ने सिर्फ इतना बताया कि उनके जैविक माता पिता दलित थे. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कमीशन की नजर में ये न तो संभव है और न इस दावे पर यकीन किया जा सकता है.

बाकी बातें अपनी जगह हैं लेकिन ऐसा संभव क्यों नहीं है कि पालन पोषण करने वाले जाति बताएं और नाम न बताएं. अगर उन्हें व्यावहारिक नहीं लगता तो क्या वो सिर्फ इतना ही नहीं बता सकते. हो सकता है कि राधिका ने ज्यादा पूछताछ की हो तो उन्होंने जाति बता दिया हो - लेकिन नाम बताना उचित न लगा हो. क्या इतने भर से राधिका के दावे को असंभव और अविश्वसनीय करार दिया जा सकता है?

रोहित वेमुला की खुदकुशी के बाद विपक्ष खासकर मायावती ने बात बात पर बीजेपी को दलित विरोधी बताने लगीं. हालत ये हो गई कि दलितों से जुड़ने की बीजेपी की हर कोशिश नाकाम होने लगी. आरएसएस भी अपनी ओर से पूरी कोशिश करने लगा कि बीजेपी के खिलाफ दलितों को भड़काने से रोका जा सके.

रोहित केस से बीजेपी अभी उबर भी नहीं पाई कि ऊना में दलित उत्पीड़न की घटना हो गई - उसके बाद से तो ऊना मार्च और ऊना की जश्न-ए-आजादी ने बीजेपी की हर कोशिश नाकाम कर दी. हालत ये हो गई संघ प्रमुख मोहन भागवत को संभालने के लिए मोर्च पर डटना पड़ा.

इसे भी पढ़ें: टीना डाबी या रोहित वेमुला, किसकी राह चलेंगे हमारे दलित युवा?

यूपी, पंजाब और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की तारीख धीरे धीरे नजदीक आती जा रही है. यूपी और पंजाब में खासे दलित वोट बैंक हैं और बीजेपी को सबसे ज्यादा फिक्र इसीलिए रही. संयोगवश या कहें सौभाग्यवश, पाकिस्तान के खिलाफ सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के साथ बीजेपी के अच्छे दिन फिर से शुरू हो गये हैं.

अब जबकि जांच कमीशन की रिपोर्ट बता रही है कि रोहित की मां ने आरक्षण के फायदे के लिए खुद को दलित बताया, दोनों मंत्री बेदाग हैं, यूनिवर्सिटी प्रशासन ने वही किया जो उसके पास बेस्ट लॉजिकल ऑप्शन उपलब्ध था, रोहित की आखिरी बातें सही लग रही हैं, "इस वक्त मैं आहत नहीं हूं… दुखी नहीं हूं, मैं बस खाली हो गया हूं. अपने लिए भी बेपरवाह. यह दुखद है और इसी वजह से मैं ऐसा कर रहा हूं. लोग मुझे कायर कह सकते हैं और जब मैं चला जाऊंगा तो स्वार्थी, या मूर्ख भी समझ सकते हैं."

रोहित की ख्वाहिश तो साइंस लेखक बनने की थी, लेकिन उन्होंने इस दुनिया को शायद फ्रेंच लेखक ज्यां पॉल सार्त्रे के नजरिये से देख लिया जिन्होंने खुदकुशी इसलिए कर ली थी क्योंकि उन्हें ये दुनिया उनके लायक नहीं लगी. रोहित और सार्त्रे अपवाद हैं, उनके विचार अलग थे, हालात अलग थे - दुनिया को इससे फर्क नहीं पड़ता, पड़ना भी नहीं चाहिए. दुनिया को अपने हिसाब से ही चलना होगा.

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