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Updated: 03 अगस्त, 2016 04:56 PM
कुमार कुणाल
कुमार कुणाल
 
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केजरीवाल साहब माया मोह त्यागने विपश्यना पर गए हैं. इस बार सुना है उन्होंने धर्मशाला की राह पकड़ी है. लोग लगातार कॉमेंट कर रहे थे कि वो हर रोज दिल्ली छोड़ किसी ऐसे राज्य चले जाते हैं जहां आने वाले चुनावों में उन्हें कुर्सी की संभावना दिखाई दे रही हो. शायद इसी मिथक को तोड़ने गए हैं धर्मशाला. क्योंकि हिमाचल प्रदेश में अगले दो साल में चुनाव नहीं होने हैं, बशर्ते अगल केंद्र की मोदी सरकार ने वीरभद्र सिंह सरकार को लंघी नहीं मारी तो. या फिर धर्मशाला में कोई नगर निगम का चुनाव पेंडिंग ना पड़ा हो.

वैसे दिल्ली के मुख्यमंत्री बाकी राज्यों की इतनी चिंता करते हैं तो इसमें कोई दोष या हर्ज भी नहीं है. लेकिन दिल्ली के लोगों की चिंता सर्वोपरि हो, इसकी उम्मीद दिल्ली में रहने वाले तो करते ही हैं. दिल्ली ने केजरीवाल जी को सिर माथे पर बिठाया है. एक बार दिल्ली को बीच मझधार में छोड़ गए फिर भी दिल्ली ने उन्हें दोबारा मौका दिया, सिर्फ इसी शर्त पर कि इस बार वो दिल्ली वालों को अपने पांच साल की सेवा देंगे.

यकीन मानिए, दिल्ली का हर वोट जो आम आदमी पार्टी को मिला वो किसी और के लिए नहीं बल्कि केजरीवाल के नाम का ही वोट था. क्योंकि दिल्ली को इस बात की उम्मीद थी कि एक बार बनारस जाने की भूल कर चुके केजरीवाल जब माफी मांग रहे हैं और यकीन दिला रहे हैं कि उनकी दिल्ली के प्रति जवाबदेही अगले 5 साल के लिए रहेगी तो इसमें न मानने जैसी कोई बात नहीं. क्योंकि केजरीवाल ईमानदारी और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन जैसी ही बातों को तो अपना हथियार बना कर चलते हैं और इसे निष्ठा से निभाने की बात करते नहीं अघाते. इसलिए सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी से खुद चलेंगे या नहीं इस पर लोगों के मन में शंका ना के बराबर होती है.

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खैर वापस बात फिर से विपश्यना की. 10 दिनों का वक्त है केजरीवाल जी के पास अपने आत्मशोधन का, आत्मचिंतन का भी. हर साल इतना वक्त अपनी जिम्मेदारियों के बीच वो निकाल ही लेते हैं, और वाकई अगर आत्ममंथन से कुछ बेहतर निकले तो इसमें कोई हर्ज भी नहीं. लेकिन बेहतरी किसकी, सवाल ये भी है. अरविंद केजरीवाल एक पार्टी के मुखिया हैं. एक ऐसी पार्टी जिससे दिल्ली ही नहीं देश के बाकी हिस्सों में भी लोगों को कुछ नया पाने की उम्मीद है. लेकिन, अरविंद दिल्ली के मुखिया भी तो हैं. अपनी पार्टी की साइज से कहीं बड़ी जिम्मेदारी दिल्ली वालों ने उन्हें सौंपी है. और वो जिम्मेदारी है लगभग 2 करोड़ दिल्ली वासियों की सेवा की, उनके दुख दर्द निवारण की.

एक फुल टाइम सीएम चुना है यहां के लोगों ने कोई पार्ट टाइम प्रोफेशनल नहीं. 14 फरवरी 2014, जिस दिन से उन्होंने दिल्ली की गद्दी दूसरी बार संभाली तब से अगले 5 साल तक एक-एक पल केजरीवाल का अपना नहीं है, बल्कि दिल्ली वालों की उम्मीदों का है. उनकी पार्टी अगर आज दिल्ली से बाहर निकलने का सपना देख रही है, तो वो भी दिल्ली वालों की ही बदौलत है. क्या 10 दिनों की विपश्यना में केजरीवाल इस बात का भी चिंतन करेंगे क्या?

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दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल विपश्यना करने के लिए 10 दिनों के लिए हिमाचल प्रदेश चले गए हैं

विपश्यना कई तरह के गिरह खोलती है ऐसा सुना है. एक अनुशासन सिखाती है, स्वयं से साक्षात्कार भी कराती है. अरविंद भी खुद से बात जरूर करते होंगे. इन 10 दिनों में जबकि उनपर न तो कोई काम का दवाब है न ही पार्टी के लिए रणनीति बनाने का दारोमदार तब तो उनके पास कई अहम पहलुओं पर खुद से बात करने का अनूठा मौका है.

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उन बातों पर चिंतन करने का भी जिन्हें लेकर केजरीवाल सियासत में आदर्श माने जाते थे, जिन्हें कोई आम नेता बोलता तो लोग ऐसे ही झूठ-मूठ की बात समझ अनसुना कर देते. लेकिन केजरीवाल के नाम का यकीन लोगों ने किया. गाड़ी, बंगले, सुरक्षा इन सब सुविधाओं को भोगिये, इसमें शायद ही आम लोगों को कोई दिलचस्पी हो या यहां तक कि ऐतराज भी. लेकिन दिल्ली को जिन सुविधाओं का वादा किया गया, उनमें आपकी कितनी दिलचस्पी है ये भी तो सोचिए.

इसलिए विपश्यना में दिल्ली वालों के उस दर्द का ख्याल भी रखें जिनसे उन्हें हर रोज जूझना पड़ रहा है. महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे बड़े-बड़े वादे पर नतीजे आने में हो सकता है वक्त लगे, उसमे केंद्र से सहयोग की जरूरत भी हो. लेकिन जिन घरों में पानी नहीं आता, जिस परिवार को सडकों में गड्ढे की वजह से अपना इकलौता चिराग खोना पड़ा और ऐसे तमाम मसले जिनका हल सिर्फ आपकी सरकार अपने दम पर निकाल सकती है, उस पर भी विपश्यना में सोचें तो अच्छा रहेगा.

विपश्यना में ये भी सोचना जरूरी होगा कि क्या उनकी दिल्ली में महिलाएं सुरक्षित हैं, क्या लगातार दिल्ली में महिला उत्पीड़न के मामले आत्म चिंतन के वक्त केजरीवाल जी को झिझोड़ते होंगे? क्या केजरीवाल जी को उन कॉन्ट्रैक्ट यानि ठेका पर काम कर रहे हजारों कर्मचारियों और उनके परिवार का ख्याल भी विपश्यना के वक्त आता होगा जो दिन भर दिल्ली को और बेहतर बनाने के लिए अपना खून पसीना एक कर रहे हैं और उन्हें इस बात का दर्द अब तक है कि उन्हें नियमित करने का जो वादा दो साल पहले उनके सीएम ने किया था वो अब तक पूरा नहीं हुआ है?

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क्या केजरीवाल जी के दिमाग में उन युवाओं का चेहरा भी ध्यान लगाते घूमता होगा, जिन्होंने अपना पहला वोट केजरीवाल जी को लंबी कतार में लग कर सिर्फ इसलिए दिया था कि उन्हें मुफ्त वाई-फाई मिलेगा, जिससे उन्हें पढाई और रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे. नए कॉलेज, नए स्कूल, हर जगह शौचालय, झुग्गी के बदले मकान, अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने का वादा और न जाने क्या-क्या. क्या ये सब बातें विपश्यना में दिल्ली के मुखिया को याद आ रही होंगी?

 इसलिए दिल्ली को आज भी उम्मीद यही है कि इस विपश्यना से उन्हें भी कुछ मिले. आत्मशुद्धि के बाद जब केजरीवाल जी इस यथार्थ की दुनिया में कदम रखें तो दिल्ली वालों के इन सवालों का जवाब साथ जरूर लाएं. सिर्फ जवाब ही नहीं उन्हें लागू करने के तौर तरीके भी साथ लाएं ताकि जो दिल्ली वालों ने अपनी ज़िंदगी के 5 साल उनके हाथों में सौंपे हैं, उन पर वाकई अपनी ईमानदार छवि जितनी ईमानदारी से काम कर सकें. तभी विपश्यना से सबका फायदा है, उनका भी और दिल्ली वालों का भी.

लेखक

कुमार कुणाल कुमार कुणाल

लेखक आजतक में पत्रकार हैं.

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