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Updated: 07 जनवरी, 2018 07:06 PM
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अखिलेश यादव को अब भी क्यों लगता है कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ नोएडा के असर से नहीं बच पाएंगे? खुद मुख्यमंत्री रहते अखिलेश यादव ने पूरे पांच साल नोएडा से दूरी बनाए रखी, फिर भी उनकी कुर्सी चली गयी.

अब अखिलेश यादव कह रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी नोएडा जाने का असर पड़ेगा, तय है. जब नोएडा गये बगैर भी यूपी सीएम की कुर्सी जा सकती है, तो क्या गारंटी है कि जाने पर भी जाएगी ही? वैसे इस तरह के अंधविश्वास की बातें देश के बड़े सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके नेता के मुहं से सुनना बड़े ताज्जुब की बात लगती है.

अखिलेश के बयान का आखिर मतलब क्या है?

नोएडा में मेट्रो की मैजेंटा लाइन के उद्घाटन के वक्त दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को न बुलाये जाने को लेकर विवाद हुआ था. अब यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उद्घाटन में खुद को न बुलाये जाने को लेकर टिप्पणी की है.

akhilesh yadavमिथक तो चुनाव ने ही तोड़ दिया...यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को टारगेट करते हुए अखिलेश यादव ने टिप्पणी की, "कभी-कभी भगवान भी अच्छा काम करता है. हमें नोएडा मेट्रो के उद्घाटन में नहीं बुलाया गया... सीएम साहब नोएडा गए तो लेकिन हमने तस्वीर में देखा... ना वो बटन दबा सके ना मेट्रो को हरी झंडी दिखा पाए... हम तो यही कहेंगे कि नोएडा जाने पर यही होता है और अभी नोएडा का असर दिखना बाकी है."

पहली बात तो ये कि क्या बुलाये जाने पर अखिलेश यादव उद्घाटन समारोह में नोएडा जाते? उनकी बात से तो यही लगता है कि वो भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे हैं कि अगर किसी मजबूरी के चलते जाना पड़ता उससे बच गये.

अखिलेश यादव का कहना है कि योगी को उन्होंने न बटन दबाते देखा और न मेट्रो को हरी झंडी दिखाते देखा - क्या अखिलेश यादव का मानना है कि ऐसा नोएडा में होने के चलते ही हुआ? यही उद्घाटन किसी और जगह होता तो प्रधानमंत्री की मौजूदगी में योगी को भी ऐसा मौका मिला होता? साथ ही, अखिलेश यादव का कहना है कि नोएडा जाने का असर मुख्यमंत्री योगी के साथ साथ प्रधानमंत्री मोदी पर भी होना है.

क्या किसी ज्योतिषी की सलाह पर योगी और मोदी के बारे में अखिलेश यादव ये भविष्यवाणी कर रहे हैं? या किसी झाड़-फूंक वाले तांत्रिक या जमूरे में अखिलेश यादव को ये बात बतायी है?

अखिलेश यादव ने योगी और मोदी को लेकर ये टिप्पणी भले ही हंसी-मजाक में की हो, लेकिन इससे मामले की गंभीरता खत्म नहीं हो सकती. अगर उनकी टीम के किसी सलाहकार ने अखिलेश यादव को ये बात समझायी है तो ये तो उनके लिए और भी खतरनाक है. ऐसे सलाहकारों के चक्कर में ही तो कहीं उन्हें सत्ता नहीं गंवानी पड़ी? मामला जो भी, बेहतर यही होगा कि अखिलेश यादव जल्द से जल्द ऐसी मान्यताओं से खुद को उबार लें. कम से कम ऐसी बातें सार्वजनिक तौर पर तो बिलकुल नहीं कहनी चाहिये.

लोकतंत्र में इससे बड़ी त्रासदी की बात क्या होगी कि जिस नेता को वोट देकर लोग सत्ता और शासन की बागडोर सौंप देते हैं वो किसी अंधविश्वास के चलते पूरे वक्त उनसे मिलने भी न पहुंचे.

कोई कुछ भी कहे, योगी मिथक को गलत साबित किया है

अखिलेश यादव ये क्यों भूल रहे हैं कि उनके मुख्यमंत्री रहते भी प्रधानमंत्री मोदी नोएडा जाकर उद्घाटन कर चुके हैं - और उसके बावजूद बीजेपी ने ही यूपी चुनावों में उनकी समाजवादी पार्टी को शिकस्त दी है.

प्रधानमंत्री मोदी ने मेट्रो से पहले नोएडा में स्टैंड अप इंडिया कार्यक्रम लांच किया था और दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे का उद्घाटन भी किया था. ये तभी की बात है जब यूपी सीएम की कुर्सी पर वो खुद ही बैठे हुए थे - और उसी प्रचलित मिथकों के चलते कार्यक्रम से दूर रहे. ये बात अलग है कि योगी की स्थिति अखिलेश यादव से अलग है.

ये भी सच है कि नोएडा जाने में योगी आदित्यनाथ के सामने कुछ मजबूरियां भी थीं, फिर भी वो इसके लिए बधाई के हकदार हैं. ये तो संभव नहीं था कि प्रधानमंत्री मोदी यूपी में कोई कार्यक्रम करते और उसी पार्टी के मुख्यमंत्री वहां नहीं जाते. कोई अन्य मजबूरी होती तो बात अलग है.

खुद प्रधानमंत्री मोदी ने भी योगी के इस कदम के लिए उनकी दिल खोलकर तारीफ की. मोदी ने कहा भी - 'लोग कहते हैं कि जो सीएम नोएडा आता है, उसकी कुर्सी चली जाती है, लेकिन योगी जी ने उस भ्रम और मिथक को तोड़ दिया. सच तो ये है कि मान्यताओं में कैद कोई भी समाज उन्नति नहीं कर सकता है.'

modi, yogiबधाई तो बनती है...

इस मौके पर मोदी ने खुद मुख्यमंत्री रहते ऐसे वाकयों का जिक्र भी किया, 'जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तो मुझे भी कई जगहों पर जाने से मना किया गया. मैं सारी बातों को नकारते हुए बतौर गुजरात सीएम हर उस जगह गया जहां कोई नहीं जाता था. इस तरह मुझे सबसे ज्यादा सेवा करने का मौका मुझे मिला.'

क्या है नोएडा का लोचा?

नोएडा को लेकर माना जाता है कि मुख्यमंत्री रहते जो भी नोएडा गया अगली बार उसकी कुर्सी चली गयी और इस सूची में कल्याण सिंह और मायावती तक के नाम शामिल हैं.

mayawatiअच्छा सिला दिया...

लखनऊ के सियासी सर्कल में इस मान्यता की शुरुआत 1988 से मानी जाती है. नोएडा आने के कुछ दिनों के भीतर ही तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को कुर्सी गंवानी पड़ी थी. फिर 1989 में नारायण दत्त तिवारी और उसके 10 साल बात कल्याण सिंह भी ऐसे ही शिकार बने. 1995 में नोएडा आने के कुछ ही महीनों मुलायम सिंह यादव के हाथ से भी सत्ता फिसल गयी.

मायावती तो सबसे ज्यादा इसकी शिकार हुईं. 1997 में तो उन्होंने सत्ता गंवाई ही, 2011 में नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल के उद्घाटन के बाद अगले ही साल विधानसभा चुनाव में उन्हें बुरी तरह हार झेलनी पड़ी.

यही वजह रही कि अखिलेश यादव ने पूरे पांच साल नोएडा की ओर झांकने की जहमत नहीं उठायी - और लखनऊ में बैठे बैठे ही रिमोट कंट्रोल से सारे उद्घाटन करते रहे - चाहे वो यमुना एक्सप्रेसवे हो या फिर दूसरे प्रोजेक्ट.

rajnath singhवक्त की बात है!

हालांकि, इस कड़ी में एक दिलचस्प वाकया बीजेपी से भी जुड़ा हुआ है. 2001 में यूपी के मुख्यमंत्री रहे राजनाथ सिंह ने डीएनडी फ्लाईवे का उद्घाटन दिल्ली से ही कर दिया - और इस तरह उन्होंने खुद को नोएडा जाने से बचा लिया.

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