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Updated: 02 फरवरी, 2023 12:53 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बजट (General Budget 2023) पेश किये जाने के एक दिन पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण के दौरान भी कई निगाहें राहुल गांधी को खोज रही थीं. राहुल गांधी तब तो नहीं नजर आये, लेकिन आम बजट पेश किये जाने के मौके पर जरूर पहुंचे थे. भारत जोड़ो यात्रा के चलते राहुल गांधी संसद के शीतकालीन सत्र में शामिल नहीं हो पाये थे.

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी अपनी टीशर्ट के लिए खासे चर्चित रहे. यात्रा पूरी होने के बाद राहुल गांधी ने टीशर्ट तो उतार दी, लेकिन दिल्ली का मौसम सर्द होने के बावजूद कांग्रेस सिर्फ एक हाफ शर्ट में ही नजर आये. निश्चित तौर पर जम्मू-कस्मीर के मुकाबले दिल्ली की सर्दी कम ही है, लेकिन हाफ शर्ट के लायक तो बिलकुल भी नहीं है.

राहुल गांधी जब संसद पहुंचे तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपना बजट भाषण शुरू कर चुकी थीं. राहुल गांधी को देख कर कांग्रेस सांसदों ने जिंदाबाद के नारे भी लगाये, और भारत जोड़ो के भी - लेकिन फिर तुरंत चुप भी हो गये.

बजट के जरिये मोदी सरकार ने समाज के अलग अलग तबकों तक पहुंच मजबूत करने की कोशिश की है. देश के गरीबों और किसानों के साथ साथ मोदी सरकार को इस बार मध्य वर्ग की भी याद आयी है. हालांकि, जिस तरीके से मोदी सरकार ने नौकरी पेशा और मिडिल क्लास की सुधि ली है - वो काफी हद तक वोट की राजनीति तक ही सिमटा हुआ लगता है.

'ये अमृत काल (Amrit Kaal Budget) का पहला बजट है.' बजट पेश करते वक्त वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बयान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने भी मुहर लगा दी है - और अमृत काल के खास जिक्र के बहाने बीजेपी के स्वर्णिम काल की तरफ इशारा भी कर दिया है.

और इसके साथ ही बीजेपी की तरफ से पूरे अमृत काल तक केंद्र की सत्ता में बने रहने का इरादा जताने की कोशिश हो रही है. पूरा अमृत काल से आशय है 2047 तक. अगले पूरे 25 साल तक बीजेपी ने केंद्र की सत्ता में बने रहने की रणनीति पर काम कर रही है.

मुगल गार्डन का नाम बदले जाने के बाद सोशल मीडिया पर भले ही मुगल काल को मजाक में अमृत काल के तौर पर याद किया जाने लगा हो, लेकिन ये भी बीजेपी के लिए फायदे की ही बात है. बहाना जो भी हो, अमृत काल का जिक्र तो हो रहा है. अमृत काल का मतलब देश की आजादी के 75 साल पूरे होने से है. फिलहाल देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है.

निर्मला सीतारमण के जिक्र के बाद जिस तरीके प्रधानमंत्री मोदी ने अमृत काल का विजन समझाया है, उसमें विपक्ष को खतरे की घंटी की आवाज जोर से सुनायी देनी चाहिये. ये, दरअसल, विपक्ष के लिए बहुत बड़ा अलर्ट भी है.

2024 का आम चुनाव करीब करीब सिर पर आ चुका है, और विपक्षी दलों के नेता अपने लिए अलग अलग अखाड़े बना कर बीजेपी को ललकार रहे हैं. बीजेपी तो ये सुन कर खुश ही हो रही होगी. अगर सारे विपक्षी नेता किसी एक अखाड़े पर खड़े होकर बीजेपी को चैलेंज करते तो बात निश्चित तौर पर और होती.

मोदी सरकार के बजट में हिमाचल प्रदेश की हार और भारत जोड़ो यात्रा को लेकर भी फिक्र महसूस की जा सकती है, लेकिन ऐन उसी वक्त आगे बढ़ कर उसे रौंद डालने की रणनीति भी लगती है - राहुल गांधी सहित विपक्षी खेमे के तमाम नेताओं के लिए ये बड़ी चिंता की बात हो सकती है.

अगर आम बजट 2023 को चुनावी साल और फिर अगले आम चुनाव के पैमाने पर तौलना चाहें तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण राजनीतिक अपेक्षाओं पर खरी उतर रही हैं, ऐसी अपेक्षा बीजेपी ही नहीं, विपक्षी खेमे के राजनीतिक दलों को भी होनी चाहिये.

बीजेपी की सरकार ने तो आम बजट 2023 के जरिये 2024 के लोक सभा चुनाव का बिगुल ही बजा दिया है - अब तो ये राहुल गांधी और बीजेपी के खिलाफ मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे नेताओं पर निर्भर करता है कि वे सुन भी पा रहे हैं या नहीं?

अमृत काल का विजन डॉक्युमेंट

मतलब, अभी से 2047 तक बीजेपी के सत्ता में बनाये रखने की कोशिश होगी - और बजट में उन बातों पर ही जोर रहेगा.

अमृत काल का पहला बजट बताते हुए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बोलीं, ये आजादी के 100 साल बाद भारत की परिकल्पना का बजट है... बजट में किसान, मध्य वर्ग, महिला से लेकर समाज के सभी वर्ग के विकास की रूपरेखा है.

nirmala sitharaman, NARENDRA MODIअमृत काल को बीजेपी विपक्ष के बुरे दिनों के तौर पर पेश करने लगी है

सभी तो नहीं, लेकिन ये तो मान सकते हैं कि बजट में समाज के कई वर्गों के विकास की रुपरेखा दिखाने की कोशिश हुई है, लेकिन हकीकत में भी बिलकुल ऐसा ही होगा मान लेना बहुत मुश्किल होता है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट में सात तरह की प्राथमिकताओं का जिक्र किया है, जिन्हें एक नाम भी दिया गया है - सप्तर्षि. और ये हैं - 1. समावेशी विकास, 2. वंचितों को वरीयता, 3. बुनियादी ढांचे और निवेश, 4. क्षमता विस्तार 5. हरित विकास, 6. युवा शक्ति और 7. वित्तीय क्षेत्र.

ठीक दस साल बाद: 2024 के आम चुनाव होने तक बीजेपी के सबसे खतरनाक स्लोगन कांग्रेस मुक्त भारत के 10 साल हो जाएंगे - और अमृत काल के विजन डॉक्टुमेंट पर बीजेपी जिस तरीके से काम कर रही है, राजनीतिक हिसाब से इरादे बेहद खतरनाक लगते हैं.

ये खतरे सिर्फ विपक्षी पार्टियों के खात्मे तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये लोकतंत्र के लिए भी काफी खतरनाक बात है. संकेत भी तो वैसे ही मिल रहे हैं. विपक्ष का जो हाल हो रखा है, 2024 को लेकर बीजेपी को जरा भी फिक्र की जरूरत तो नहीं ही लगती है.

अब तो कांग्रेस की तैयारियों से भी लगता है कि 2024 को सिर्फ खुद को आजमाने का जरिया मान कर चला जा रहा है. लेकिन जैसे कांग्रेस 2024 के बाद की तैयारी कर रही है, पीछे पीछे आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल भी तेजी से रफ्तार भर रहे हैं.

कभी कभी तो ऐसा लगता जैसे 2024 की कौन कहे, बीजेपी नेतृत्व तो 2029 को लेकर भी कोई खास चिंतित नहीं है. लेकिन ऐसा हो ही, ये भी तो जरूरी नहीं. अगर ऐसा ही होना होता तो भला हिमाचल प्रदेश में 0.9 फीसदी के फासले के बावजूद बीजेपी को हार का मुंह नहीं देखना पड़ता.

समृद्ध, समर्थ और संपन्न भारत की कल्पना: निर्मला सीतारमण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बजट को अपने तरीके से समझाने की कोशिश की. करीब करीब वैसे ही जैसे एक बार 5 ट्रिलियन इकनॉमी के बारे में विस्तार से समझाया था.

प्रधानमंत्री मोदी ने ये भी समझाया कि कैसे 2023 का आम बजट सपनों को पूरा करने वाला बजट साबित होने जा रहा है. मोदी ने बताया कि देश में पहली बार अनेक प्रोत्साहन योजनाएं लायी गयी हैं. और लोगों के लिए ट्रेनिंग, टेक्नोलॉजी, क्रेडिट - और मार्केट सपोर्ट का भी पूरा इंतजाम किया गया है.

मोदी के मुताबिक, 2014 की तुलना में इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश पर 400 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी की गयी है. बोले, इंफ्रास्ट्रक्चर पर 10 लाख करोड़ रुपये के अभूतपूर्व निवेश से युवाओं के लिए रोजगार और एक बड़ी आबादी के लिए आय के नये अवसर पैदा होंगे.

बाकी चीजों के साथ साथ प्रधानमंत्री का किसानों को लेकर भी जोर दिखा. बजट में कृषि स्टार्ट अप से लेकर किसानों से जुड़ी कई चीजों की घोषणा तो की ही गयी है, अब मालूम हुआ है कि मिलेट्स पर प्रधानमंत्री के हाल फिलहाल काफी जोर देने की वजह भी किसान वोटर ही हैं. कहते हैं, आज जब मिलेट पूरे विश्व में लोकप्रिय हो रहा है तो उसका सर्वाधिक लाभ भारत के छोटे किसानों के नसीब में है.

मोदी ने बताया कि सुपर फूड मिलेट को श्रीअन्न के नाम से एक नयी पहचान दी गयी है. बोले, श्रीअन्न से हमारे छोटे किसानों और किसानी करने वाले आदिवासी भाई-बहनों को आर्थिक सबल मिलेगा.

प्रधानमंत्री मोदी ने देश के विकास को लेकर एक नारा भी दिया है. कहते हैं, 'नये संकल्पों को लेकर के चल पड़ें... 2047 में समृद्ध भारत, समर्थ भारत और हर प्रकार से सम्पन्न भारत हम बनाकर रहेंगे.'

मध्य वर्ग की अचानक फिक्र क्यों?

साल दर साल इंतजार करते करते मध्य वर्ग करीब करीब निराश भी हो चुका था. निराशा की एक छोटी सी झलक ही हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में देखने को मिली है - तो निर्मला सीतारमण ने टैक्स व्यवस्था में जो बदलाव किया है, क्या वो हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजों की वजह से भी हो सकता है?

हो सकता है, आयकर की छूट सीमा में बदलाव की वजह हिमाचल प्रदेश चुनाव न हो, लेकिन ऐसी आशंका तो रही ही होगी. आखिर क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जगह जगह घूम घूम कर बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को गुजरात मॉडल की नसीहत देते फिर रहे हैं?

जानने और समझने वाली बात ये है कि बजट में आयकर की सीमा को बढ़ा कर 5 लाख से 7 लाख रुपये कर दिया गया है - मतलब, अब सात लाख तक की सालाना आय पर कोई टैक्स नहीं देना होगा.

हिमाचल प्रदेश चुनाव में ये देखने को तो मिला ही कि पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का कांग्रेस को पूरा फायदा मिला - और सरकार बनते ही मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने ये चुनावी वादा पूरा करने का ऐलान भी कर दिया. वैसे तो तमाम फैक्टर होंगे, लेकिन पेंशन स्कीम का असर ये हुआ कि वोट शेयर का फर्क तो 0.9 फीसदी ही रहा, लेकिन कांग्रेस की सरकार बन गयी.

एक्सपर्ट से लेकर आम लोग तक टैक्स व्यवस्था में हुए बदलाव को अपने अपने तरीके से समझने और समझाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन मोटे तौर पर जो समझ में आ रहा है, वो यही है कि न तो सरकार की सेहत पर इससे कोई फर्क पड़ने वाला है, न ही टैक्सपेयर को. होता भी है, तो मामूली ही होगा.

नयी टैक्स व्यवस्था विशेषज्ञों के हिसाब से किसी को कोई फायदा पहुंचाने वाली नहीं है, लेकिन ये वोटर को समझाने में काफी आसान है. चुनावी रैलियों में बड़े आराम से समझाया जा सकेगा कि टैक्स स्लैब 5 से 7 लाख हो गया - मतलब, फायदा ही फायदा है - अब वहां कोई एक्सपर्ट वोटर को समझाने तो जाएगा नहीं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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