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Updated: 21 जनवरी, 2022 07:49 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अमर जवान ज्योति का राष्ट्रीय युद्ध स्मारक या नेशनल वॉर मेमोरियल की ज्योति में विलय करने का फैसला लिया है. केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद कांग्रेस समेत विपक्ष के तमाम नेताओं और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग ने इसे शहीदों का अपमान बताया है. राहुल गांधी ने केंद्र की मोदी सरकार पर हमला करते हुए सोशल मीडिया पर अमर जवान ज्योति को 'बुझाए' जाने का दावा किया है. सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि अमर जवान ज्योति का राष्ट्रीय युद्ध स्मारक यानी नेशनल वॉर मेमोरियल की ज्योति में विलय कर इतिहास को मिटाकर फिर से लिखने की कोशिश की जा रही है. इस विलय को भारत के इतिहास का सबसे दुखद दिन बताया जा रहा है. वहीं, कांग्रेस नेताओं का कहना है कि 2024 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस इन गलतियों को सुधारेगी. हालांकि, केंद्र सरकार ने इसे एक बड़ा फैसला बताते हुए विरोध को गलत बताया है. आइए जानते हैं कि अमर जवान ज्योति 'बुझाने' का सच और इसका इतिहास क्या है... 

नेशनल वॉर मेमोरियल क्या है?

यूं तो देश के अन्य राज्यों में भी शहीदों के त्याग, बलिदान और साहस को सम्मान देने वाले कई युद्ध स्मारक हैं. लेकिन, राष्ट्रीय स्तर पर शहीदों को सम्मान देने के लिए यह पहला स्मारक बनवाया गया था. राष्ट्रीय युद्ध स्मारक या नेशनल वॉर मेमोरियल इंडिया गेट के दूसरी तरफ करीब 400 मीटर की दूरी पर स्थित है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 फरवरी 2019 को इस नेशनल वॉर मेमोरियल को देश को समर्पित किया था. दरअसल, आजादी के बाद हुए युद्धों और सैन्य अभियानों में भारतीय सैनिकों के बलिदान को याद करने और सम्मान देने के लिए इससे पहले कोई राष्ट्रीय स्मारक नहीं था. इस नेशनल वॉर मेमोरियल में 1947-48 के युद्ध से लेकर गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष में शहीद हुए सैनिकों तक के नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं. इन नामों में आतंकवादी विरोधी अभियान में जान गंवाने वाले सैनिकों के नाम भी शामिल हैं. नेशनल वॉर मेमोरियल बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी. लेकिन, इसे बनाने की मंजूरी 2015 में नरेंद्र मोदी सरकार ने दी थी.

इंडिया गेट किसकी याद में बना?

ब्रिटिश सरकार ने प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्ध में ब्रिटिश सेना की ओर से शहीद हुए करीब 84000 भारतीय सैनिकों की याद में इंडिया गेट का निर्माण कराया था. लुटियंस दिल्ली यानी आज की नई दिल्ली को डिजाइन करने वाले सर एडविन लुटियंस ने ही इसका डिजाइन बनाया था. 1921 में इंडिया गेट का निर्माण शुरू हुआ था. और, यह 1931 में बनकर तैयार हुआ था. इंडिया गेट पर सिर्फ भारतीय सैनिकों के नाम ही दर्ज नही हैं. इस पर 13,516 नाम दर्ज हैं, जिनमें ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के नाम शामिल हैं.

Amar Jawan Jyoti not extinguished1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति की स्थापना की गई थी.

इंडिया गेट पर कब से जल रही है अमर जवान ज्योति?

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति की स्थापना की गई थी. इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे. 1971 के युद्ध के बाद बांग्लादेश को पाकिस्तान के कब्जे से आजाद करवा कर एक नया मुल्क बनाया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को इसका उद्घाटन किया था. तब से लेकर आजतक करीब 50 वर्षों से अमर जवान ज्योति भारतीय सैनिकों की शहादत की याद में जल रही थी.

अमर जवान ज्योति का वॉर मेमोरियल में क्यों विलय किया गया?

ब्रिटिश सरकार की ओर से बनाए इंडिया गेट पर केवल प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के नाम ही दर्ज हैं. वहीं, नेशनल वॉर मेमोरियल में आजादी के बाद से अब तक हुए युद्धों और सैन्य अभियानों में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के नाम लिखे गए हैं. वैसे, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी आमतौर पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के हर फैसले के विरोध में ही नजर आते हैं. तो, इस फैसले का विरोध कर राहुल गांधी केवल विरोधों की लिस्ट में एक विरोध और जोड़ रहे हैं. वहीं, अमर जवान ज्योति को बुझाए जाने की अफवाहों का सरकारी अधिकारियों ने खंडन किया है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार के अधिकारियों ने कहा है कि 'नेशनल वॉर मेमोरियल पर अब तक शहीद हुए सभी भारतीय सैनिकों के नाम हैं. जबकि, अमर जवान ज्योति के पास बने इंडिया गेट पर सिर्फ प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के नाम हैं. अमर जवान ज्योति का राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्योति में विलय इन शहीदों को सच्ची श्रद्धाजंलि है.'

केंद्र सरकार की ओर से विपक्षी दलों की आलोचना के जवाब में कहा गया है कि 'ये विडंबना है कि जिन लोगों ने सात दशकों तक नेशनल वॉर मेमोरियल नहीं बनाया, वो आज हमारे शहीदों को उचित श्रद्धांजलि देने पर हंगामा कर रहे हैं.' यहां बताना जरूरी है कि 1960 में पहली बार सशस्त्र सेनाओं ने नेशनल वॉर मेमोरियल बनाने का प्रस्ताव रखा था. इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति से बनाने से करीब 12 साल पहले यह प्रस्ताव दिया गया था. लेकिन, सशस्त्र बलों का नेशनल वॉर मेमोरियल बनाने का ये सपना केंद्र की मोदी सरकार ने पूरा किया. वैसे, देश के शहीदों के नाम से जल रही अमर जवान ज्योति को नेशनल वॉर मेमोरियल में प्रज्जवलित किए जाने में से अगर राजनीति को किनारे कर दिया जाए, तो शायद ही किसी को कोई समस्या नजर आएगी. वैसे अमर जवान ज्योति को पूरे सैन्य सम्मान के साथ मशाल के जरिये वॉर मेमोरियल ले जाया गया.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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