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Updated: 23 दिसम्बर, 2018 01:05 PM
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पांच राज्यों में हार और तीन में सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी 2019 की तैयारियों में जुट गयी है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह फिलहाल तो एनडीए की चुनौतियों से जूझ रहे हैं, फिर तो संगठन की ही बारी आएगी. वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो बीजेपी नेताओं के '2019 में देख लेंगे' कहते हुए पहले ही आगाह कर चुके हैं. ये चेतावनी उन सभी नेताओं के लिए है जो बीजेपी की राजनीति के हिसाब से एनपीए अवस्था को प्राप्त होते दिख रहे हैं.

अब सवाल ये है कि बीजेपी ने हारे हुए तीन मुख्यमंत्रियों का भविष्य क्या होगा? मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह और राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया के लिए बीजेपी नेतृत्व ने कुछ तो प्लान किया ही होगा - और जो भी होगा उसमें आपसी रिश्ते की अहमियत तो खासी ही होगी.

टाइगर सिर्फ बाहर या बीजेपी के भीतर भी

चुनाव नतीजे आने के बाद से अब तक लगातार कोई चर्चा में है तो वो हैं - मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. कांग्रेस के हाथों विधानसभा चुनाव गंवाने के बाद भी कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाथों में हाथ डाले खड़े शिवराज की तस्वीर ने सिर्फ सुर्खियां ही नहीं तारीफ भी खूब बटोरी. खासकर तब जब दिल्ली में वो तस्वीर भी चर्चित रही जिसमें एक जगह प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और राहुल गांधी होते हैं लेकिन किसी में कोई बातचीत नहीं होती.

शिवराज सिंह के मामले में वैसे भी माना जा रहा है कि अपनी लोकप्रियता के बावजूद शिवराज केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के शिकार हो गये, वरना संघर्ष तो आखिरी दम तक किया था. खुद शिवराज का डायलॉग भी चल ही रहा है - 'टाइगर अभी जिंदा है.'

तो क्या बीजेपी नेतृत्व शिवराज पर लगाम कसने वाला है? शिवराज सिंह की प्रस्तावित 'आभार यात्रा' पर मंडराता संकट तो कुछ ऐसा ही संकेत देने वाला है. चुनावों से पहले शिवराज सिंह ने आशीर्वाद यात्रा निकाली थी - और अब लोगों के बीच जाकर उनको शुक्रिया कहने के लिए आभार यात्रा पर निकलना चाहते हैं.

बीजेपी नेताओं के जरिये मीडिया में खबरे आयी थीं कि पार्टी ऐसे सीनियर नेताओं की ताकत यूं ही जाया नहीं होने देगी. मतलब बीजेपी ऐसे नेताओं को केंद्र में लाकर उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देगी. बीते कई बरसों में शिवराज सिंह के सामने अक्सर ये सवाल उठता था - क्या वो केंद्र में आने वाले हैं? जबाव में हर बार शिवराज सिंह मुस्कुराते हुए इंकार कर दिया करते रहे. अब स्थिति बिलकुल अलग हो चुकी है.

vasundhara raje, shivraj singh, raman singhबोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाये?

लगता है शिवराज सिंह को भी इस बात का वक्त रहते अहसास हो चुका था. तभी तो चुनाव नतीजे आने के बाद सबसे पहले शिवराज सिंह ने साफ किया कि वो मध्य प्रदेश छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाले. ये भी कयास लगाये जाने लगे थे कि वो सुषमा स्वराज द्वारा अगली बार के लिए खाली घोषित विदिशा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. वैसे भी विदिशा शिवराज सिंह की पुरानी सीट हुआ करती है. मगर, शिवराज सिंह ने विदिशा से लोक सभा चुनाव लड़ने की बात भी खारिज कर दी है.

बीजेपी में प्रस्तावित आभार यात्रा रद्द कराने की कोशिश 2019 की तैयारियों के नाम पर चल रही है. वैसे आभार यात्रा तो 2019 के लिए फायदेमंद ही साबित होगी क्योंकि शिवराज सिंह चौहान उन्हीं लोगों के बीच फिर से जा रहे हैं जिनसे आम चुनाव में बीजेपी को वोट चाहिये.

देखना होगा सरेआम छुट्टा घूम रहा टाइगर मामा पार्टी फोरम में दहाड़ पाता है या नहीं - और आलाकमान उसकी सुनता भी है या अपनी ही चलाना चाहता है?

चावल वाले बाबा इलाके में रहेंगे या नयी पोस्टिंग होगी

शिवराज सिंह की तरह छत्तीसगढ़ में रमन सिंह स्मरण यात्रा निकालने वाले हैं. हालांकि, स्मरण यात्रा को लेकर अब तक कोई ऐसी खबर नहीं आई है जिससे बीजेपी नेतृत्व के मूड का पता चल सके. चूंकि आभार यात्रा और स्मरण यात्रा दोनों में नेताओं की व्यस्तता एक जैसी है इसलिए रद्द होंगी तो दोनों ही होंगी और हरी झंडी भी मिलेगी तो दोनों को ही मिलेगी.

वैसे दोनों की यात्राओं में थोड़ा फर्क है. शिवराज सिंह की आभार यात्रा का मकसद उनका खुद का लोगों से कनेक्ट होना ज्यादा लगता है - जो नये मिजाज के साथ नेतृत्व को शायद ही पसंद आये. बीजेपी नेतृत्व ऐसा कोई रिस्क तो नहीं ही लेगा जिससे 2019 के लिए नुकसान उठाना पड़े, लेकिन इतनी खुली छूट भी नहीं देगा कि लोग बेलगाम हो जायें.

रमन सिंह की स्मरण यात्रा इस मायने में अलग है क्योंकि उसमें कांग्रेस के खिलाफ पोल-खोल जैसी बातें होनी है. स्मरण यात्रा में रमन सिंह कांग्रेस द्वारा चुनाव के वक्त किये गये वादे याद दिलाकर सवाल पूछेंगे. ऐसा तो है नहीं कि कांग्रेस ने सिर्फ एक ही वादा किया था - 10 दिन में कर्जमाफी का. बाकी वादे भी तो किये गये थे, उनका क्या? रमन सिंह लोगों के बीच जाकर यही सवाल पूछने वाले हैं. ये आइडिया है भी ऐसी की नेतृत्व के लिए रिजेक्ट करने से पहले दो बार सोचना भी होगा. रमन सिंह ने स्मरण यात्रा की रूप रेखा तैयार करने के लिए 26 दिसंबर को मीटिंग बुलाई है.

मुमकिन है बीजेपी नेतृत्व राज्यों में नई पीढ़ी के नेताओं को आगे करने की योजना बना रहा हो, लेकिन मजबूरी ये है कि ऐसा कोई चेहरा भी नहीं उभर सका है जो रमन सिंह की भरपाई करने की क्षमता रखता हो. यही बात रमन सिंह और काफी हद तक शिवराज सिंह के भी पक्ष में जाती है.

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नेतृत्व से रिश्ता ही वो फैक्टर है जो वसुंधरा राजे को शिवराज सिंह और रमन सिंह से अलग कर देता है. शिवराज सिंह तो आडवाणी लॉबी के घोषित नेता रहे हैं. मोदी को बीजेपी द्वारा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किये जाने से पहले शिवराज के विकास के कामों की आडवाणी ने तारीफ भी की थी. आडवाणी समझाना चाह रहे थे कि गुजरात तो पहले से भी समृद्ध रहा, लेकिन मध्य प्रदेश में विकास की तो वास्तव में जरूरत थी और इसलिए बड़ी चुनौती भी. ये तो खुद चुनाव जीत कर 2014 में सभी सीटों का तोहफा देकर शिवराज सिंह ने नेतृत्व को मुंह खोलने का मौका ही नहीं दिया. रमन सिंह के रिश्ते सभी से मधुर रहे हैं क्योंकि वो ऐसे मौके नहीं आने देते जिससे किसी का ईगो टकराने लगे.

वसुंधरा राजे और बीजेपी नेतृत्व का रिश्ता तो जगजाहिर है. अब तो यही लगता है जैसे नेतृत्व को इसी दिन का ही इंतजार रहा हो. चाहे राजस्थान में प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष की नियुक्ति हो या फिर टिकट बंटवारा, वसुंधरा ने दिल्ली की बिलकुल नहीं सुनी. अमित शाह के मुकाबले प्रधानमंत्री मोदी से रिश्ते थोड़े बेहतर भी हैं लेकिन चुनावों तक जहां मौका मिला वहां खुल कर मनमानी की.

देखा जाये तो शिवराज और रमन सिंह को अमित शाह छोड़ भी दें तो वसुंधरा को तो नहीं बख्शने वाले. हो सकता है अब काउंटर करने के लिए अमित शाह केंद्र से बुलाकर वसुंधरा के खिलाफ गजेंद्र शेखावत को जयपुर में तैनात कर दें. चुनाव से पहले गजेंद्र शेखावत ही अध्यक्ष पद के लिए अमित शाह की पहली पसंद थे.

हालांकि, ऐसी संभावना भी कम ही है कि 2019 तक बीजेपी नेतृत्व कोई ऐसा कदम उठाये जिसका सीधा नुकसान आम चुनाव में आशंकित हो. मगर जरूरी नहीं कि टिकट बंटवारे में वसुंधरा राजे की वैसी ही चले जैसी 2014 और विधानसभा चुनावों में चली.

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