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Updated: 24 जनवरी, 2016 07:04 PM
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 1945 में हुई विमान हादसे के बाद के दिनों से जुड़े रहस्य से पर्दा उठाने का दावा करते हुए जिस बेवसाइट www.bosefiles.info ने उस विमान दुर्घटना से एक दिन पहले और विमान दुर्घटना वाले दिन के घटनाक्रमों की जानकारी प्रकाशित की थी, अब उसी वेबसाइट ने विमान दुर्घटना में घायल होने के बाद की जानकारी प्रकाशित की है. इसमें अस्पताल में मौजूद डॉक्टर, नर्स और एक अनुवादक की बातों का हवाला दिया गया है. आगे हैं वेबसाइट द्वारा उजागर की गई नई जानकारियां-(पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

18 अगस्त 1945 को 1938 और 39 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष और आजाद हिंद फौज के सुप्रीम कमांडर सुभाष चंद्र बोस, जिनका विमान ताइपे के एक हवाई अड्डे के बाहरी इलाके में दुर्घटना का शिकार हो गया था. उन्हें पास के ननमन मिलिट्री अस्पताल ले जाया गया. इस दुर्घटना में बोस के सहयोगी कर्नल हबीबुर रहमान खान भी घायल हो गए थे.

उस अस्पताल के मेडिकल ऑफिसर इंचार्ज जापानी सेना के कैप्टन तनेयोशी योशिमी थे. वहां एक और जापानी डॉक्टर थे जिनका नाम था तोयोशी सुरुता. साथ ही वहां एक ताइवानी नर्स थी, जिसका नाम सान पी शा था. नाकामुरा (जिसका पहला नाम योशिकाजू या जूइची था) अस्पताल में दुभाषिया के तौर पर मौजूद थे.

अगस्त 1945 के बारे में कर्नल हबीबुल रहमान का बयानः

इस विमान दुर्घटना में जीवित बचे कर्नल हबीबुर रहमान, 1956 में नेताजी की मौत की जांच के लिए जनरल नवाज खान की अध्यक्षता में गठित जांच कमिटी के सामने पेश होने के लिए पाकिस्तान से आए थे. उन्होंने विमान दुर्घटना के 6 दिन बाद लिखित और हस्ताक्षरित बयान की कॉपी कमिटी को सौंपी थी. इसमें कहा गया है, 'अपनी मौत से पहले उन्होंने (बोस) ने मुझसे कहा था कि मेरा अंत नजदीक है और मुझसे उनका यह संदेश देशवासियों तक पहुंचाने के लिए कहा: 'मैं अंत तक भारत की आजादी के लिए लड़ा और अपनी जिंदगी इसी के लिए कुर्बान कर रहा हूं. देशवासियों! भारत के आजाद होने तक आजादी की लड़ाई जारी रखो. आजाद हिंद (स्वतंत्र भारत) अक्षुण्ण रहे.'

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सितंबर 1945 में फिनी और डेविस की जांचः

सितंबर 1945 में भारत से पुलिस ऑफिसर्स फिनी और डेविस के नेतृत्व में दो जांच दल मामले की जांच के लिए बैंकॉक, साइगोन और ताइपे गई, इन टीमों में एचके रॉय और केपी डे भी शामिल थे. वास्तव में इस जांच दल ने जापानी दक्षिणी सेना के चीफ ऑफ द स्टाफ हिकारी किकेन (जापानी सरकार और बोस के आजाद भारत की अस्थाई सरकार के बीच बातचीत के लिए गठित संस्था) के टेलीग्राम की एक कॉपी भी जब्त की थी. बोस के लिए 'T' कोड का प्रयोग करते हुए 20 अगस्त 1945 को भेजे गए इस केबल में कहा गया है, 'राजधानी (टोकियो) की तरफ जा रहे 'T' के विमान के 18 अगस्त को 1400 बजे ताइहोकू (ताइपे का जापानी नाम) में दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण गंभीर रूप से घायल हो गए और उसी दिन आधी रात को उनकी मौत हो गई.'

1946 में डॉक्टर सुरुता से ब्रिटिश मिलिट्री इंटेलिजेंस के लेफ्टिनेंट कर्नल फिग्गीस की पूछताछः

मई 1946 से जुलाई 1946 के बीच ब्रिटिश सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल जेसी फिग्गीस ने ब्रिटिश मिलिट्री इंटेलिजेंस की तरफ से छह जापानी अधिकारियों से टोकियो में घटना के संबंध में पूछताछ की थी, उनमें से दो उस घटना में जीवित बचे-लेफ्टिनेंट कर्नल नोनोगाकी और लेफ्टिनेंट कर्नल सकाई-और डॉक्टर सुरूता थे.

डॉक्टर सुरुता ने फिग्गीस से कहा, ‘...बोस ने उनसे अंग्रेजी में कहा कि क्या वह पूरी रात उनके पास बैठेंगे. हालांकि सात बजे (शाम को) के थोड़ी देर बाद वह बेहोश हो गए और डॉक्टर द्वारा उन्हें कैम्फर का इंजेक्शन दिए जाने के बावजूद वह कोमा में चले गए और थोड़ी देर बाद उनकी मृत्यु हो गई.’

सितंबर 1946 में हरिन शाह द्वारा लिया गया सैन पी शा का इंटरव्यूः

सितंबर 1946 में मुंबई फ्री प्रेस जर्नल के पत्रकार हरिश शाह मामले की जांच के लिए ताइपे गए और उन्होंने विमान दुर्घटना और उसके परिणामस्वरूप हुई बोस की मौत के बारे में जानने वाले लोगों से बातचीत की. शाह ने अपनी किताब वर्डिक्ट फ्रॉम फॉरमोसा (ताइवान का जापानी नाम) में जिस अस्पताल में बोस ने आखिरी सांस ली थी, उस वक्त उनके वहां मौजद सान पी शा के इंटरव्यू का जिक्र किया है. शा ने साफ शब्दों में कहा, 'उनकी मौत यहीं हुई थी. मैं उनके बगल में खड़ी थी. पिछले साल (1945) 18 अगस्त को उनकी मौत हुई थी. (सुभाष चंद्र बोस)'

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उन्होंने कहा, 'मैं एक सर्जिकल नर्स हूं और मैंने उनका मरने तक ख्याल रखा...मुझे उनके पूरे शरीर पर जैतून का तेल लगाने का निर्देश दिया गया था और मैंने ऐसा ही किया.' उन्होंने आगे कहा, उन्हें जब भी थोड़ी देर के लिए होश आया, वह प्यासे दिखे. थोड़ा कराहते हुए उन्होंने पानी मांगा. मैंने उन्हें कई बार पानी दिया.' इसके बाद वह नर्स शाह को वॉर्ड की दक्षिण-पश्चिम दिशा में उस बेड ओर की ओर ले गई जहां बोस की मृत्यु हुई थी.

इस बात को लेकर सुनिश्चित होने के लिए शाह ने पूछा, 'तो क्या आप निश्चित तौर पर जानती हैं कि उनकी मौत हो गई है?' शाह के मुताबिक नर्स ने थोड़ा नाराजगी वाले स्वर में कहा, 'हां, उनकी मौत हो गई है. मैंने आपको इसके बारे में सबकुछ बता दिया है. मैं यह बात साबित कर सकती हूं कि उनकी मौत हो गई है.'

अक्टूबर 1946 में डॉक्टर योशिमी द्वारा ब्रिटिश अथॉरिटीज को दिया गया सबूतः

ब्रिटिश अथॉरिटीज द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हॉन्गकॉन्ग स्थित स्टेनली जेल में रखे गए डॉक्टर योशिमी ने 19 अक्टूबर 1946 को जो दस्तावेज दिए थे उनमें से पहले के मुताबिक, 'जब वह बेड (अस्पताल के) पर लेटे थे, मैंने खुद उनके (बोस) जख्मों को तेल से साफ किया था और इनकी ड्रेसिंग की थी. उनका पूरा शरीर गंभीर रूप से जला हुआ था, लेकिन सबसे ज्यादा जख्म सिर, सीने और जांघों पर थे. उनका सिर इस कदर जल चुका था कि उसमें बाल या पहचान के कोई निशान शायद ही बचे थे.'

डॉक्टर ने खासतौर पर इस बात का जिक्र किया, 'उनकी ज्यादातर बातचीत अंग्रेजी में थी, एक दुभाषिये के लिए निवेदन किया गया और सिविल गवर्नमेंट ऑफिस की तरफ से नाकामुरा नाम के एक दुभाषिये को भेजा गया. उसने मुझे बताया कि उसने कई बार (सुभाष) चंद्र बोस के लिए दुभाषिये का काम किया है और उनसे कई बार बातचीत की है. उसे इस बात में कोई संदेह नहीं था कि वह जिस व्यक्ति से बात कर रहा था वह चंद्र बोस ही थे.' डॉक्टर ने कहा, 'चौथे घंटे (अस्पताल में उनके दाखिल होने) के बाद वह बेहोशी में जाने लगे. कोमा की स्थिति में भी वह धीरे-धीरे बड़बड़ा रहे थे लेकिन फिर कभी होश में नहीं आए. करीब 2300 बजे उनकी मौत हो गई.'

डॉक्टर योशिमी शाह नवाज कमिटी और 1974 में गठित जीडी खोसला कमिशन के सामने भी मामले की जांच के लिए पेश हुए थे.

1956 में गठित नेताजी जांच समिति को दिया गया नाकामुरा का सबूतः

नाकामुरा एक दुभाषिया था, जिसने 1943 और 1944 में बोस की ताइपे यात्रा के दौरान उनके लिए काम किया था, इसलिए वह उन्हें पहले से ही जानता था. डॉक्टर योशिमी ने बोस से उसके जरिए बात की थी. जांच समिति के सामने नाकामुरा ने कहा, 'उनके मुंह से दर्द और पीड़ा का एक भी शब्द नहीं निकला. नेताजी की इस दृढ़ता ने हम सबको हैरान कर दिया था.'

उन्होंने कहा कि बोस के गुजर जाने के बाद कमरे में मौजूद जापानी सेना के ऑफिसर्स ने एक लाइन में खड़े होकर उनके शरीर को सैल्यूट किया था.

दिसंबर 1995 में डॉक्टर योशिमी का आशीष रे को दिया इंटरव्यूः

अंत में डॉक्टर योशिमी ने www.bosefiles.info के संस्थापक आशीष रे को 1995 में एक इंटरव्यू दिया.

उन्होंने रे से कहाः 'नोनोमिया नाम के एक लेफ्टिनेंट ने मुझे बताया कि यह मिस्टर सुभाष चंद्र बोस है, एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति, और मुझे किसी भी कीमत पर उनकी जान बचानी चाहिए. इसलिए मैं जान पाया कि वह (बोस) थे. जब यह निश्चित हो गया कि बोस की हालत बिगड़ रही है तो उन्होंने बोस से पूछाः 'मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं.'

बोस ने जवाब दियाः 'मुझे लगता है कि जैसे खून मेरे सिर में दौड़ रहा है. मैं थोड़ी देर सोना चाहूंगा.' डॉक्टर योशिमी ने उन्हें एक इंजेक्शन दिया. इसके थोड़ी देर बाद वह नहीं रहे.

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