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Updated: 09 जुलाई, 2020 10:39 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के कानपुर (Kanpur) में पिछले हफ्ते आठ पुलिसकर्मियों को घेरकर बेरहमी से हत्या करने के आरोपी गैंगस्टर विकास दुबे (Vikas Dubey) को उज्जैन (Ujjain) में गिरफ्तार कर लिया गया है. इस गिरफ्तारी के बाद से ही जो कहानियों का सिलसिला चल पड़ा है वह कई नए सवालों को जन्म दे रहा है. लोग अपना अपना तर्क दे रहे हैं. कुछ गिरफ्तारी की बात कह रहे हैं तो कुछ इसे सरेंडर का नाम दे रहे हैं. असल कहानी तो इन दोनों के बीच की है. स्वाभाविक है यह घटनाक्रम इतना बड़ा था कि इस पूरे प्रकरण का राजनीतिकरण तो होना ही था. अगर विकास दुबे का एनकांउटर (Vikas Dubey Encounter) होता तो भी सवाल खड़े होते, अब जिंदा पकड़ा गया है तो भी इस पर सवाल उठ ही रहे हैं. आत्मसमर्पण और गिरफ्तारी की अपनी अपनी दलीले हैं लेकिन इस पूरे प्रकरण में अगर किसी को मायूसी हाथ लगी है तो वह है उत्तर प्रदेश की पुलिस को. अपने 8 पुलिसकर्मियों की शहादत के बाद पुलिस वालों की पूरी साख इसी बात को लेकर लगी हुयी थी कि वह कितनी जल्द विकास दुबे को अपने शिकंजे में ले पाती है. घटना के फौरन बाद पूरे उत्तर प्रदेश के सभी जिलों की सीमाओं पर नाकाबंदी कर दी गई थी. हर जिले की पुलिस को अलर्ट कर दिया गया था. इसके बावजूद विकास दुबे पहले दो दिन कानपुर में ही रहता है और उसके बाद हरियाणा तक का सफर तय कर लेता है.

UP Gangster arrested in Ujjain by Madhya Pradesh Police why MP Police is praising itself after the incidentयूपी के इनामी विकास दुबे को ले जाती मध्य प्रदेश की पुलिस

हरियाणा में विकास दुबे की मौजूदगी का जब तक पुलिस को सुराग मिलता है तब तक वो वहां से भी फरारी काट लेता है. हरियाणा से एक बार फिर वह दिल्ली और फिर उत्तर प्रदेश से होते हुए मध्य प्रदेश तक का सफर तय कर लेता है. विकास दुबे की यह चहलकदमी उस वक्त की है जब सभी सीमाओं को अलर्ट पर रखा गया था. उसके बावजूद वह कई शहर की सीमाओं को भेदता हुआ उज्जैन तक चला गया.

उज्जैन में भी वह पुलिस को चकमा देता हुआ सीधा महाकाल के दरबार में पहुंच गया, जहां के एक दुकानदार ने या सुरक्षाकर्मी ने विकास दुबे को पकड़ लिया. इसके बाद पुलिस को सूचना दी गई जिसके बाद विकास दुबे के पकड़े जाने की खबर आंधी की तरह पूरे देश तक पहुंच गई. गिरफ्तारी को लेकर अब सियासत अपने दांवपेंच चल रही है. मध्य प्रदेश की सरकार इसे अपने कानून व्यवस्था की जीत बता रही है तो मध्य प्रदेश की पुलिस अपनी पीठ थपथपा रही है.

लेकिन सवाल तो यह खड़े होते हैं कि आखिर असल जीत किसकी हुयी है. कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि यह जीत विकास दुबे की ही है क्योंकि अब वह जिंदा तो रहेगा, भले जेल की सलाखों के पीछे ही क्यों न हो. एक नजर पहले घटनाक्रम पर डाल लेते हैं जहां से कई चीजे मालूम लग जाएंगी. 2/3 जुलाई की आधी रात में विकास दुबे की दबिश को लेकर पुलिसकर्मियों की कई टीम विकास दुबे के घर पहुंचने वाली थी.

विकास दुबे को पहले से ही इसकी जानकारी मिल गई थी लेकिन उसने भागने की जगह पुलिस वालों पर हमला करने का मास्टरप्लान तैयार किया. ऐसा प्लान तैयार किया कि 8 पुलिसकर्मियों को शहीद कर डाला और उनके हथियार तक लूट ले गए लेकिन उसके किसी भी साथी को कोई भी नुकसान नही हुआ. घटना के कुछ देर बाद ही आलाधिकारियों को खबर हुयी सभी मौके पर पहुंचे और आनन-फानन में विकास दुबे की धरपकड़ के लिए कदम उठाने शुरु कर दिए.

पुलिस को अंदाजा था कि वह शहर जरूर छोड़ने की फिराक में होगा. लेकिन विकास दुबे को इसकी जानकारी भी लग गई कि शहर की सीमाएं सील हो गई हैं निकल पाना मुश्किल है. हरियाणा के फरीदाबाद से पकड़ा गया विकास दुबे के साथी ने कबूला की वह विकास दुबे के साथ ही था. उन लोगों ने कानपुर के ही एक गांव में शरण ले रखी थी जो घटनास्थल से बमुश्किल 5-7 किलोमीटर की दूरी पर रहा होगा.

पुलिस की यह पहली हार थी जिस आरोपी की वह अलग अलग राज्य और नेपाल तक जाने की इनपुट पर काम कर रही थी वह आरोपी तो घटनास्थल के ही बेहद करीब था. पुलिस की दूसरी हार भी यहीं हुयी कि वह आरोपी अलर्ट होने के बावजूद उत्तर प्रदेश के कई जिलों को भेदता हुआ हरियाणा तक पहुंच गया. पुलिस को जब सूचना मिली की वह हरियाणा के फरीदाबाद में है तब तक वह वहां से भी सुरक्षित निकल चुका था. अब पुलिस को सूचना मिली की विकास दुबे आत्मसमर्पण करने की फिराक में है.

वह दिल्ली कोर्ट या किसी न्यूज़ चैनल में सरेंडर कर सकता है ताकि उसका एनकाउंटर न हो सके. पुलिस ने कोर्ट और न्यूज चैनलों के दफ्तर के बाहर भी पहरा बिठा दिया ताकि वह उसकी गिरफ्तारी कर अपने नाम जीत हासिल कर सके. लेकिन पुलिस एक बार फिर नाकाम रही और वह फिर कई जिलों की सुरक्षा को तार तार करते हुए मध्य प्रदेश के उज्जैन तक पहुंच गया. उज्जैन में भी उसने सुरक्षाचक्र को भेदा और विश्वप्रसिद्ध महाकाल मंदिर में दर्शन के लिए पहुंच गया. यहां तक का मामला तो बिल्कुल सीधा सा है.

अब जो कहानियां निकलकर सामने आती है वह बेहद नाटकीय है और राजनीति से प्रेरित भी है. पहली कहानी है कि विकास दुबे दर्शन के लिए पहुंचा और एक दुकान से पूजा की सामग्री खरीदी. दुकान वाले को शक हुआ उसने सुरक्षाकर्मी को संदिग्ध व्यक्ति की सूचना दी, जिसके बाद सुरक्षाकर्मी ने विकास दुबे से पूछताछ की और उसने अपना नाम विकास दुबे बताया जिसके बाद पुलिस को सूचना दे दी गई. दूसरी कहानी है कि विकास दुबे ने अपना नाम बदलकर दर्शन किया और दर्शन के बाद खुद ही अपने विकास दुबे होने की जानकारी दी.

न सिर्फ मंदिर प्रशासन को बल्कि पुलिस और स्थानीय मीडिया को भी विकास दुबे ने ही जानकारी दी. दोनों ही कहानियां आसान लगती हैं लेकिन है नही. सच्चाई अभी तक सामने नहीं आ पाई है. पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने वहां मौजुद पुलिस वालों कुछ भी बोलने को मना कर रखा है. वरिष्ठ अधिकारियों ने भी अबतक जो बताया वह अधूरा ही बताया. पूरे प्रकरण को एक ऩाटकीय ढंग से पेश किया जा रहा है.

वहीं दूसरी ओर खबर यह भी तैर रही है कि गिरफ्तारी से पहले की रात पुलिस के 1-2 आलाधिकारी महाकाल मंदिर भी पहुंचे थे जिनके सबूत तो नहीं है लेकिन तेजी के साथ इसको भी बताया जा रहा है. विकास दुबे इतनी आसानी से गिरफ्तार हो जाएगा इसका अंदाजा तो खुद पुलिसवालों को भी न रहा होगा. लेकिन यह पूरा मामला जितना आसान सा है उतना ही उलझा भी रहा है.

एक सवाल तो यह भी नाचता है कि आखिर विकास दुबे पर जब इतना कड़ा पहरा हो तो वह मंदिर दर्शन के लिए भला क्यों जाएगा वह भी उस मंदिर में जहां खुद सुरक्षा का कड़ा इंतजाम हो और विश्वप्रसिद्ध मंदिर हो, भीड़भाड़ में कोई कमी न हो. यह तो तय है विकास दुबे को पूरी जानकारी थी कि उसके अन्य साथियों की तरह उसे भी मार गिराए जाने की तैयारी है क्या यही वजह है कि वह इतनी आसानी से खुद ही सामने आ गया.

यह आत्मसमर्पण रहा हो या गिरफ्तारी लेकिन इसमें पुलिस की भूमिका कोई खास नहीं है. पुलिस हर मोर्चे पर फेल रही है. मध्य प्रदेश की पुलिस लाख अपनी पीठ थपाथपा ले लेकिन उसकी नाक के नीचे एक शातिर अपराधी उसके एक खास जिले उज्जैन में दाखिल हो जाता है और खुलेआम मंदिर तक आसानी से पहुंच जाता है. यह पुलिस की नाकामी का जीता जागता उदाहरण है लेकिन वह अपनी पीठ अपने आप थपथपा रही है और क्यों थपथपा रही है इसका जवाब शायद उसके पास खुद भी नहीं होगा.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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