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Updated: 16 मार्च, 2016 04:16 PM
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तमिलनाडु में विजयकांत को लोग लालू प्रसाद की तरह मजे लेकर सुनते हैं - उनका अंदाज, जो कई दफे मजाक का टॉपिक बन जाता है, हर किसी को हंसने पर मजबूर करता है. गुस्से के मामले में तो कोई उनका सानी नहीं - जब एक सवाल पर वो नाराज हुए तो पत्रकारों पर ही थूक दिया था.

मौजूदा दौर में विजयकांत चुनावी गणित के वो सबसे अहम किरदार बन चुके हैं. लिहाजा, हर पार्टी उनका साथ पाने के लिए लालायित है, लेकिन वो हाथ नहीं आ रहे.

एकला चलो...

विजयकांत की पत्नी प्रेमलता ने एक महिला रैली आयोजित की थी - और उसी मंच से उन्होंने तमिलनाडु के समर में अकेले उतरने का एलान किया, "मुझे कोई कन्फ्यूजन नहीं है. मैं अकेले ही चुनाव लडूंगा."

इस दौरान विजयकांत की पत्नी ने भी गठबंधन की गुगली उछाली, लेकिन बताया कि ये तभी संभव है जब नेता वही हों. लगे हाथ दावेदारी भी जता दी, "कैप्टन के नेतृत्व में सुशासन आएगा. वो एआईएडीएमके और डीएमके का विकल्प पेश करेंगे."

रास्ते में रोड़े

तमिलनाडु में मुकाबला एआईएडीएमके और डीएमके के बीच ही होता रहा है. तीसरी चुनौती पीपुल्स वेलफेयर फ्रंट दे रहा है - बीजेपी अपना मोर्चा अलग खड़ा करने की कोशिश में रही है लेकिन हासिल जीरो ही रहा है.

विजयकांत इनके बीच अलग लीड लेने की कोशिश में हैं, लेकिन बात तब बने जब सब राजी हों.

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ताजा चर्चाओं को देखें तो विजयकांत चाहते हैं कि एमडीएमके और वीसीके भी बीजेपी सभी डीएमडीके के साथ आ जाएं. फिलहाल एमडीएमके और वीसीके दोनों सीपीआई और सीपीएम के साथ पीपुल्स वेल्फेयर फ्रंट का हिस्सा हैं - और उनमें से कोई भी बीजेपी के साथ किसी भी मोर्चे में शामिल होने के पक्ष में कतई नहीं है.

ताजा विकल्प

तमिलनाडु के उडुमलपेट में एक दलित युवक की सरेआम हत्या की घटना पर फ्रंट के नेता ही खुल कर सामने आए हैं, जबकि एआईएडीएमके और डीएमके दोनों चुप हैं. यहां तक कि पीएमके ने भी इसे कानून व्यवस्था का मामला बताकर पल्ला झाड़ लिया है.

विजयकांत ने दलित युवक की हत्या की कड़े लफ्जों में निंदा की है - और जातीय अतिवादिता का खुल कर विरोध किया है. विजयकांत के स्टैंड ने उनकी पार्टी डीएमडीके को पीपुल्स वेल्फेयर फ्रंट के नेताओं के साथ खड़ा कर दिया है.

विजयकांत 2014 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी के साथ थे. इसी तरह 2011 का विधानसभा चुनाव उन्होंने जयललिता के एआईएडीएमके के साथ लड़ा था. फिलहाल वो तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं. वो खांटी तमिल में बोलते हैं और विरोधियों पर देसी अंदाज में तंज कसते हैं.

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क्या वाकई विजयकांत अकेले मैदान में उतरने जा रहे हैं या फिर ये किसी सीक्रेट डील का हिस्सा है - क्या वो खुले तौर पर डीएमके वाले गठबंधन से दूर रहना चाहते हैं - या फिर दोबारा एआईएडीएमके साथ खड़े हैं - इस बार खुलेआम नहीं तो पर्दे के पीछे से ही सही. या वाकई वो लोगों को एआईएडीएमके और डीएमके से इतर कोई मजबूत विकल्प देने जा रहे हैं? विजयकांत को लेकर हर पार्टी फिलहाल इसी उधेड़बुन में है.

अगर विजयकांत में लालू का अक्स दिखता है तो गौर करने पर तमिलनाडु चुनाव में भी बिहार जैसी तस्वीर उभर रही है. मुलायम सिंह की तरह विजयकांत भले ही मोर्चा खड़ा करने में नाकाम रहें - लेकिन लालू की तरह वो चुनाव बाद किंगमेकर जरूर बन सकते हैं - और इसमें शक की गुंजाइश बहुत कम बचती है.

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