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Updated: 23 मई, 2016 07:14 PM
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हरीश रावत के प्रति रवैया तो नहीं, लेकिन विजय बहुगुणा के बोल जरूर बदल गये हैं. बहुगुणा अब रावत को खुलेआम कोसने लगे हैं. ये ठीक वैसा ही लग रहा है जब बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जीतनराम मांझी को सुन कर लगता था. बहुगुणा और मांझी दोनों ही मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

रावत के खिलाफ हथियार

अब से जितना फासला उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में है, बिहार चुनाव में भी तब उतनी ही देर थी. जीतनराम मांझी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते ही उन्हें सीएम बनाने वाले नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. बीजेपी को मौका अच्छा लगा और उसने उसका पूरा फायदा उठाया. बीजेपी के सपोर्ट की बदौलत मांझी हर रोज नीतीश को भला बुरा कहते रहे. बीजेपी ने भी सदन में बहुमत साबित करने तक मांझी का साथ दिया लेकिन वो ऐन वक्त पर पलटी मार गये.

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जब तक है दम...

बीजेपी का दामन थामते ही विजय बहुगुणा भी अपना रंग दिखाने लगे हैं. अपने ताजा बयान में बहुगुणा ने कहा है कि हरीश रावत के दो चेहरे हैं. बहुगुणा लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि रावत एक चेहरे के साथ जनता के सामने दया की भीख मांगते हैं और दूसरे के साथ अपना इंटरेस्ट पूरा करते हैं. बहुगुणा का ये भी इल्जाम है कि उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में रावत ने विकास के कामों में भी कदम कदम पर रोड़ा डालने की कोशिश की.

हासिल शून्य...

क्या बहुगुणा के बीजेपी में आ जाने से बीजेपी को कुछ फायदा होगा? और क्या बीजेपी में आने के बाद बहुगुणा को भी कोई फायदा होगा या नहीं? जो स्थिति नजर आ रही है उसमें न तो बहुगुणा से बीजेपी को कोई फायदा नजर आ रहा है - और न ही बहुगुणा को बीजेपी से. बीजेपी को बहुगुणा से मांझी जैसा भले ही कुछ न कुछ फायदा हो जाए, लेकिन बहुगुणा को कोई खास फायदा मिल पाएगा, इसकी कम ही संभावना नजर आती है. कांग्रेस में तो कम से कम रीता बहुगुणा जोशी के भाई होने का भी उन्हें फायदा मिला था - अब तो बहन भी विवादों में आ गई हैं. रीता को बयान देकर साफ करना पड़ा है कि वो समाजवादी पार्टी में नहीं जा रही हैं.

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दरअसल, बहुगुणा के बीजेपी में शामिल होते ही रीता को लेकर भी कानाफूसी शुरू हो गई. पहले शुरू हुआ कि वो भी बीजेपी में जा सकती हैं, फिर चर्चा होने लगी कि वो समाजवादी पार्टी में जा सकती हैं जहां रहते वो इलाहाबाद की मेयर रह चुकी हैं.

मांझी को लेकर तो नतीजे आने तक गलतफहमी भी बनी रही कि वो दलितों का वोट बटोर कर बीजेपी की झोली में डाल देंगे. खुद भी वो काफी दिन तक ऐसी गलतफहमी के शिकार रहे - और मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी जताते रहे. नतीजा आया तो कहीं के नहीं रहे.

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बीजेपी ने मांझी से तो पीछा लगभग छुड़ा लिया लेकिन विजय बहुगुणा लायबिलिटी बन कर घर आ चुके हैं. अब बीजेपी उन्हें तब तक ढोएगी जब तक वो हरीश रावत के लिए मुश्किलें खड़ी कर पाएंगे. अब ले देकर बहुगुणा को विधानसभा चुनाव का ही आसरा है - और बीजेपी को उनसे थोड़ी बहुत उम्मीद.

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