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Updated: 24 नवम्बर, 2022 02:18 PM
लोकेन्द्र सिंह राजपूत
लोकेन्द्र सिंह राजपूत
  @lokendra777
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महाराष्ट्र के नासिक जिले के गांव भगुर में धर्मपरायण एवं देशभक्त परिवार रहता था. उस परिवार के मुखिया थे दामोदर पंत सावरकर और उनकी पत्नी राधाबाई सावरकर. उनके तीन पुत्र एवं एक पुत्री थी. पुत्रों के नाम गणेश, विनायक, नारायण और पुत्री का नाम मैना था. देव कृपा से घर में सकारात्मक वातावरण था. दामोदर पंत उद्भट विद्वान थे. श्रेष्ठ कवि थे. अपनी संतानों को संस्कारित करने के लिए वे उन्हें रामायण, महाभारत, छत्रपति वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप और अन्य देशभक्त वीरों की कहानियां एवं गीत सुनाया करते थे. इस सबका प्रभाव उनके बच्चों के व्यक्तित्व में दिखने लगा था. आगे चलकर सभी संतानों ने देश की सेवा की और अदम्य साहस का परिचय दिया. भारतमाता को परतंत्रता से मुक्ति दिलाने के लिए इस परिवार ने जैसा बलिदान दिया, वैसे उदाहरण अन्यत्र कम ही मिलते हैं. दामोदर पंत के दूसरे बेटे विनायक दामोदर तो मानो पराक्रम, शौर्य, बलिदान एवं क्रांति के पर्याय ही हो गए. 

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. अर्थात् व्यक्ति का भविष्य छुटपन में ही उसके व्यवहार से दिखने लगता है. विनायक की बचपन की गतिविधियां बता रही थीं कि यह बालक आगे चलकर भारतमाता का साहसी बेटा बनेगा, जिसे लोग ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ के नाम से पहचानेंगे. विनायक केवल आठ-दस वर्ष की उम्र से ही कविताएं लिखने लगे थे. उनकी कविताएं उस समय के प्रसिद्ध मराठी समाचारपत्रों में प्रकाशित होने लगी थीं. उनकी कविताएं छापनेवाले संपादक भी बिना जाने यह नहीं कह सकते थे कि ये कविताएं किसी दस वर्ष के बालक ने लिखी हैं. उनके जीवन पर छत्रपति शिवाजी का बहुत गहरा प्रभाव था. शिवाजी की विजय गाथाएं, विनायक स्वयं तो बड़े चाव से पढ़ते ही थे, अपने मित्रों को भी गर्व के साथ सुनाया करते थे. शिवाजी एवं अन्य महापुरुषों की वीरगाथाएं पढ़कर उनके मन में भी देशभक्ति, बलिदान, त्याग, समर्पण और देशसेवा की भावनाएं जोर मारने लगी थीं.

Veer Savarkar old imageवीर सावरकर पर टिप्पणी करना बहुत आसान है, लेकिन यदि उनकी जीवन यात्रा को करीब से देखेंगे तो मन आदर से भर जाएगा.

उस समय देश में अंग्रेजों की दमनकारी सरकार थी. बात 1896-97 की है. महाराष्ट्र के पुणे में प्लेग ने महामारी का रूप धारण कर लिया था. अंग्रेज महामारी से पीड़ित नागरिकों की सहायता करने की बजाय उन पर अत्याचार कर रही थी. अंग्रेज अधिकारी वाल्टर चार्ल्स रैण्ड तथा आयर्स्ट की क्रूरता को देखकर चाफेकर बंधुओं (दामोदर हरि चापेकर, बालकृष्ण हरि चापेकर तथा वासुदेव हरि चापेकर) से रहा नहीं गया. उन्होंने दोनों अंग्रेज अफसरों को गोली मारकर खत्म कर दिया. अंग्रेजों के विरुद्ध यह पहला बड़ा क्रांतिकारी धमाका था, जिसकी गूँज दूर तक सुनाई दी. अंग्रेजों ने चाफेकर बंधुओं को पकड़ लिया और उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया. 

बालक विनायक ने जब चाफेकर बंधुओं के बलिदान का समाचार पढ़ा, तब उनका मन बहुत व्यथित हो उठा. एक परिवार के तीन युवकों के बलिदान की घटना का बालक सावरकर के मन पर गहरा असर हुआ. उनके मन रूपी समुद्र में प्रश्नों का तूफान उठने लगा. अब चाफेकर बंधुओं की क्रांति को कौन बल देगा? कौन है जो स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति देने आगे आएगा? भारतमाता की स्वतंत्रता के लिए कौन संघर्ष करेगा? “चाफेकर उठती जवानी में चले गए, उन्होंने अपनी मातृ भूमि के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया तो क्या मुझे खा पीकर मौज उड़ाना ही शोभा देता है? उनका कार्य अधूरा पड़ा है, उनकी इच्छाएं अपूर्ण खड़ी है. क्यों ना मैं प्रतिज्ञा करूं कि उनके कार्य को पूरा करने में अपने प्राण तक दे डालूं मैं उसे पूर्ण करूंगा अन्यथा उसके पर्यतन में जीवन दे डालूंगा.”

चाफेकर बंधुओं की फांसी से, उनके बलिदान से सावरकर के भीतर जल रही क्रांति की लौ धधक उठी. 15-16 वर्ष का वीर बालक विनायक अपनी कुलदेवी माँ अष्टभुजा के चरणों में जाकर बैठ गया. उस दिन सावरकर ने अष्टभुजा देवी को साक्षी मानकर शपथ ली कि “मैं मेरे देश की स्वतंत्रता पुन: प्राप्त करने के लिए सशस्त्र क्रांति करूंगा. मैं भारत माता की बेड़ियां तोड़ने के लिए अपना जीवन अर्पण करूंगा, मैं गुप्त संस्थाएं खोलूंगा, शस्त्र बनाऊंगा और समय आने पर हाथ में शस्त्र लेकर स्वतंत्रता के लिए लड़ता लड़ता मरूंगा”. स्वतंत्रता के कठिन पथ पर उनका यह पहला कदम था.

सावरकर को अपनी यह प्रतिज्ञा सदैव स्मरण रही. प्रतिज्ञा को पूरा करने की दिशा में उन्होंने प्रयास शुरू कर दिए. अमर क्रांतिकारी चाफेकर बंधुओं के बलिदान एवं शौर्यगाथा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए बालक विनायक ने ‘पोवाड़ा’ की रचना की. महाराष्ट्र की यशोगाथा और शौर्यगाथा का दूसरा नाम है पोवाड़ा. वीररस से भरी ऐसी शैली जिसे सुनने मात्र से ही व्यक्ति जोश से भर उठता है. राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र संरक्षण के लिए पोवाड़ा गायन की प्रथा महाराष्ट्र में सदियों से चली आ रही है. पोवाड़ा लोक गायन के जरिए शिवाजी महाराज के युद्ध कौशल का यशोगान भी किया जाता है. चाफेकर बंधुओं की स्मृति अक्षुण्य रहे, उनके बलिदान एवं शौर्यगाथा को सुनकर युवाओं के मन में देशभक्ति का ज्वार उठे, इसके लिए ही सावरकर ने चाफेकर बंधुओं पर भावपूर्ण गीत यानी पोवाड़ा की रचना की. 

प्लेग ने सावरकर के परिजनों को भी अपनी चपेट में ले लिया. पिताजी स्वर्गवासी हो गए. छोटे और बड़े भाई के प्लेग से संक्रमित होने के कारण पुलिस ने सावरकर के परिवार को घर से निकाल दिया. संकट में घिरा यह परिवार नासिक पहुँचा. परंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. जब दोनों भाई स्वस्थ हो गए तब विनायक सावरकर अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करने की दिशा में आगे बढ़ने लगे. यहाँ उन्होंने ‘मित्र मेला’ नाम से एक संस्था बनाई. जिस आयु में बाकी बच्चे खेलकूद में मन लगाते हैं, तब विनायक अपने देश को स्वतंत्र कराने और अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए संगठन खड़ा कर रहे थे. अपने युवा मित्रों को साथ लेकर मित्र मेला संस्था के अंतर्गत सावरकर ने प्रत्यक्ष कार्य करने के साथ ही अनेक कार्य गुप्त रूप से भी प्रारंभ किए. एक तरह से यह उनका पहला क्रांतिकारी संगठन था. 

युवा अवस्था में पहुँचते-पहुँचते सावरकर ने अपनी क्रांति को और गति दे दी. उन्होंने ‘अभिनव भारत’ नाम की एक और संस्था की स्थापना भी की. सबसे पहले विदेशी कपड़ों की होली जलाकर अंग्रेजों को चुनौती देने का काम सावरकर ने किया. अंग्रेजों के घर ‘लंदन’ में क्रांतिकारी गतिविधियां करने का साहस भी उन्होंने दिखाया. उनके ही प्रयास से लंदन में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयंती मनाई गई. जहाज से बीच समुद्र में छलांग लगाकर तो विनायक साहस के पर्याय ही बन गए. भारत के क्रांतिकारियों में वे ‘पूज्य’ हो गए थे. सरदार भगत सिंह ने अपने एक लेख में विनायक दामोदर सावरकर के लिए ‘वीर’ और ‘पूजनीय’ जैसे आदरसूचक विशेषणों का उपयोग करते हैं. उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों, विचारों एवं संगठन क्षमता से अंग्रेज भयभीत हो गए थे. अंग्रेजों ने सावरकर को पकड़कर कालापानी भेज दिया. अंग्रेज उनके नाम से इतने डरे हुए थे कि अंडमान में सावरकर को ‘डेंजर कैटेगरी’ में रखा गया. ऐसा पहली बार हुआ कि किसी व्यक्ति को दो बार आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई हो. आगे चलकर उन्होंने अपनी संपूर्ण प्रतिभा से देश की सेवा की. 

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लेखक

लोकेन्द्र सिंह राजपूत लोकेन्द्र सिंह राजपूत @lokendra777

लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रैवल ब्लॉगर हैं। वर्तमान में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक प्राध्यापक हैं। Twitter - https://twitter.com/lokendra_777

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