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Updated: 09 दिसम्बर, 2017 12:26 PM
राहुल लाल
राहुल लाल
  @rahul.lal.3110
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अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के तमाम चेतावनियों को दरकिनार करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ऐतिहासिक येरुशलम को इजराइल की राजधानी के रूप में मान्यता देने का फैसला कर लिया है. बुधवार देर रात ट्रंप ने इजराइल के दावे पर मुहर लगाते हुए अपने दूतावास को तेलअवीव से येरुशलम में स्थांतरित करने की घोषणा की. अमेरिका के इस विदेश नीति को 70 साल पुरानी विदेश नीति से उलट देखा जा रहा है. इसके साथ ही येरूसलम को इजराइल की राजधानी के रूप में आधिकारिक मान्यता देने वाला अमेरिका पहला देश बन गया है.

1995 में अमेरिकी कांग्रेस में एक प्रस्ताव पास किया गया था. इसमें दूतावास को येरूसलम में स्थांतरित करने की बात कही गई थी. हालांकि बाद में जो भी राष्ट्रपति सत्ता में आए, उन्होंने इस पर ठंडा रूख ही अपनाए रखा. वहीं ट्रंप ने सत्ता में आने से पहले चुनावी वादा किया था, जिसे अब पूरा कर दिया. लेकिन अमेरिका के इस फैसले से पूरा अरब जगत भड़क गया है. और अरब लीग ने शनिवार को सदस्य देशों की आपात बैठक बुलाई है. मुस्लिम देश ही नहीं, बल्कि पश्चिमी देश भी ट्रंप की इस कार्यवाई का कड़ा विरोध कर रहे हैं. ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर येरुशलम मध्य पूर्व संकट में इतनी अहमियत क्यों रखता है?

येरुशलम मध्य पूर्व संकट में इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं?

USA, Jerusalem, Israelअमेरिका ने आग में घी डाल दिया

इजराइल पूरे येरूसलम पर अपना दावा करता है. 1967 के युद्ध के दौरान इजराइल ने येरुशलम के पूर्वी हिस्से पर कब्जा कर लिया था. वहीं फिलिस्तीनी लोग चाहते हैं कि जब भी फिलिस्तीन एक अलग देश बने तो पूर्वी येरूसलम ही उनकी राजधानी बने. यही अरब-इजराइल विवाद की मुख्य जड़ है. 1947 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा येरुशलम के विभाजन का प्लान रेखांकित किया गया था. 1948 में इजराइल का गठन होते ही अरब-इजराइल युद्ध शुरु हो गया. 1949 में युद्ध समाप्त होने पर आर्मिटाइस सीमा खींची गई. इससे शहर का पश्चिमी हिस्सा इजराइल और पूर्वी हिस्सा जॉर्डन के हिस्से आया. परंतु 1967 के तृतीय अरब-इजराइल युद्ध में इजराइल ने येरूसलम के पूर्वी हिस्से को भी जीत लिया. पर फिलिस्तीन पूर्वी येरुशलम को अपनी राजधानी मानता है. यही वजह है कि येरुशलम में होने वाली हर घटना महत्वपूर्ण है.

येरूसलम का यहूदी, मुस्लिम और ईसाई तीनों धर्मों के लिए महत्व-

पैगंबर इब्राहिम को अपने इतिहास से जोड़ने वाले इस्लाम, यहूदी और ईसाई, ये तीनों ही धर्म येरूसलम को अपना पवित्र स्थान मानते हैं. येरुशलम के केंद्र में प्राचीन शहर ओल्ड सिटी कहा जाता है. संकरी गलियों और ऐतिहासिक वास्तुकला की भूलभुलैया इसके चार इलाकों- ईसाई, इस्लामी, यहूदी और अर्मेनियाई- को परिभाषित करती है.

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ईसाइयों के दो इलाके हैं, क्योंकि अर्मेनियाई भी ईसाई ही होते हैं. सेंट जेम्स चर्च और मोनेस्ट्री में अर्मेनियाई समुदाय ने अपने इतिहास और संस्कृति को सुरक्षित रखा है. ईसाई इलाके में 'द चर्च ऑफ द होली सेपल्कर' है. ये ऐसी जगह है जो ईसा मसीह का गाथा केंद्र है. ज्यादातर ईसाई परंपराओं के अनुसार ईसा को यहीं सूली पर लटकाया गया था. ये दुनियाभर के करोड़ों ईसाइयों का मुख्य तीर्थ स्थल है. ये ईसा के खाली मकबरे की यात्रा करते हैं.

येरुशलम के ओल्ड सिटी में मुस्लिम हिस्सा सबसे बड़ा है. यहीं पवित्र गुंबदाकार 'डोम ऑफ रॉक' यानी कुब्बतुल सखरह और अल-अक्सा मस्जिद है. यह एक पठार पर स्थित है, जो इस्लाम की तीसरी सबसे पवित्र जगह है. मुस्लिम मानते हैं कि पैगंबर अपनी यात्रा में मक्का यहीं आए थे और उन्होंने आत्मिक तौर पर सभी पैगंबरों से दुआ की थी. कुब्बतुल सखरह से कुछ ही दूरी पर एक आधारशिला रखी गई है. इसके बारे में मुस्लिम मानते हैं कि पैगम्बर मोहम्मद यहीं से स्वर्ग की ओर गए थे.

USA, Jerusalem, Israelयहूदी, मुस्लिम और ईसाई तीनों धर्मों के लिए ये जगह पवित्र है

यहूदी इलाके में कोटेल या पश्चिमी दीवार है. ये वॉल ऑफ द माउंट का बचा हिस्सा है. माना जाता है कि कभी यहूदियों का पवित्र मंदिर इसी स्थान पर था. यह दीवार उसी पवित्र मंदिर की बची हुई निशानी है. यहां मंदिर के अंदर यहूदियों की सबसे पवित्र जगह "होली ऑफ होलिज" की मान्यता है. यहूदी मानते हैं कि यहीं पर  उस शिला की सबसे पहले नींव रखी गई थी जिस पर दुनिया का निर्माण हुआ. जहां अब्राहम ने अपने बेटे इसाक की कुर्बानी दी.

सभी देशों के दूतावास तेल अवीव में ही क्यों?

1980 में इजराइल ने यरुशलम को राजधानी घोषित किया. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव पारित कर पूर्वी येरुशलम पर इजराइल के कब्जे की निंदा की और इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया. 1980 से पहले येरूसलम में नीदरलैंड और कोस्टारिका जैसे देशों के दूतावास थे. लेकिन 2006 तक सभी देशों ने अपना दूतावास तेल अवीव स्थांतरित कर दिया. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, यरुशलम पर इजराइल के आधिपत्य का विरोध करता आया है. लिहाजा तेल अवीव में ही सभी 86 देशों के दूतावास हैं.

फिलिस्तीन-इजराइल के "दो राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय समाधान" को ट्रंप के निर्णय से लगा झटका-

1967 के युद्ध के बाद प्राचीन येरुशलम पर इजराइल ने कब्जा कर लिया. लेकिन इसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली. फिलिस्तीन, पूर्वी येरुशलम को अपनी राजधानी के रूप में मांगते हैं. इजराइल-फिलिस्तीन विवाद में यही शांति स्थापित करने का अंतर्राष्ट्रीय फार्मूला है. इसे ही दो राष्ट्र समाधान के रुप में देखा जाता है. इसके पीछे इजराइल के साथ-साथ 1967 से पहले की सीमाओं पर एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राष्ट्र के निर्माण का विचार है. संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में भी यही लिखा गया है.

येरूसलम की आबादी 8.82 लाख है, जिसमें एक तिहाई आबादी फिलिस्तीनी मूल की है. इनमें से कई परिवार सदियों से यहां रहते आ रहे हैं. शहर के पूर्वी हिस्से में यहूदी बस्तियों का विस्तार भी विवाद का एक बड़ा कारण है. अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार ये निर्माण अवैध है. पर इजराइल इसे नकारता रहा है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय दशकों से ये कहता रहा है कि येरूसलम की स्थिति में कोई भी बदलाव शांति प्रस्ताव से ही आ सकता है. लेकिन ट्रंप ने दो राष्ट्रों की अवधारणा को नकार दिया है. ट्रंप कहते हैं कि मैं एक ऐसा राष्ट्र चाहता हूं जिससे दोनों पक्ष सहमत हों.

ट्रंप के फैसले की चौतरफा निंदा-

ट्रंप ने अपने एक चुनावी वादे को पूरा करने के लिए अरब-इजराइल संघर्ष में फिर से आग लगा दी है. यही कारण है कि अमेरिका के निकटतम मित्र सऊदी अरब ने भी ट्रंप के इस निर्णय का कठोर विरोध किया है. अरब देशों के साथ पश्चिमी देश, अमेरिका के इस कार्यवाई का कड़ा विरोध कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय यूनियन ने भी इस फैसले से इजराइल और फिलिस्तीन के बीच अशांति उत्पन्न होने की आशंका व्यक्त की है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मानता है कि वाशिंगटन शांति स्थापित करने के लिए मध्यस्थ की भूमिका से पीछे हट रहा है. ट्रंप की घोषणा के बाद मध्य पूर्व में अमेरिका विरोधी प्रदर्शन शुरु हो गए हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनियो गुटेरस ने ट्रंप के निर्णय को शांति को बर्बाद करने वाला बताया है.

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फलस्तीनी राजनयिक ने तो इसे युद्ध के घोषणा की संज्ञा दे दी है. पोप फ्रांसिस ने भी शांति बनाए रखने की बात कही थी. लेकिन ट्रंप के आदेश से पूरे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है. चीन और रूस ने भी पूरे मामले पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि अमेरिका के इस योजना से मध्य पूर्व में स्थिति और खराब होगी.

फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास इसे जानबूझकर शांति प्रयासों को कमजोर बताने का कदम बताते हैं. तुर्की ने इस निर्णय को गैर-जिम्मेदाराना बताया है. मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अलसीसी ने भी इसे शांति को कमजोर और स्थिति जटिल करने वाला निर्णय बताया है. अमेरिका के फैसले से भड़के अरब लीग ने शनिवार को सदस्य देशों की आपात बैठक बुलाई है. तुर्की ने इस मामले पर इजराइल से कूटनीतिक संबंध तोड़ते हुए इस निर्णय पर विचार करने के लिए 13 दिसंबर को इस्लामिक देशों की बैठक बुलाई है. फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा कि ट्रंप का फैसला निराशाजनक है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने भी अमेरिका के निर्णय से असहमति जताई है. साथ ही जर्मनी ने भी ट्रंप के इस फैसले को खतरनाक बताया है.

भारत की प्रतिक्रिया-

अमेरिका द्वारा येरूसलम को इजराइल की राजधानी घोषित करने पर भारत ने कहा है कि हमारी स्थिति फिलिस्तीन पर स्थिर है, और स्वतंत्र है. भारत का कहना है कि फिलिस्तीन पर उसका नजरिया और विचार किसी तीसरे देश द्वारा तय नहीं होते. भारत दुनिया का ऐसा पहला गैर अरब देश है जिसने फिलिस्तीन को मान्यता दी है. इस वर्ष भी फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास भारत की यात्रा पर आए थे. गौरतलब है कि भारत के फिलिस्तीन और इजराइल दोनों से घनिष्ठ संबंध हैं.

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भारत पर प्रभाव-

मध्य पूर्व में जब भी तनाव फैलता है, तो वहां के विभिन्न देशों में काम करने वाले 80 लाख भारतीयों पर खतरा मंडराने लगता है. ये भारतीय हर वर्ष 40 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा भेजते हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था में काफी मददगार है. इजराइल-फिलिस्तीन के नए तनाव को इससे समझा जा सकता है कि हाल के दिनों में इजराइल और सऊदी अरब 'हिजबुल्लाह के विरुद्ध संघर्ष' में घनिष्ठ मित्र बनते जा रहे थे. लेकिन अमेरिकी निर्णय से सऊदी अरब भी भड़क गया है. ऐसे में अरब-इजराइल अशांति का भारत पर केवल कूटनीतिक दबाव ही नहीं, अपितु आर्थिक दबाव भी होगा.

बढ़ते तनाव का असर क्रूड ऑयल पर पहले ही दिखने लगा है. भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा बहुत हद तक क्रूड से तय होती है. क्योंकि हम अपनी आवश्यकता का 82% आयात करते हैं. ऐसे में मध्यपूर्व में थोड़ी भी अशांति भारत सहित संपू्र्ण विश्व के लिए खतरनाक हो सकता है. अमेरिका के इस प्रकार के निर्णयों से हमास एवं इस्लामिक स्टेटस जैसे आतंकी संगठनों को पुनर्जीवित होने का अवसर मिलेगा, जो विश्व के लिए और भी खतरनाक होगा. इसलिए आवश्यक है कि विश्व समुदाय फिलिस्तीन और इजराइल के तनाव को सूझबूझ से कम करे. वरना नया अरब- इजराइल विवाद भी अतीत की तरह गंभीर दुष्परिणाम दे सकता है.

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लेखक

राहुल लाल राहुल लाल @rahul.lal.3110

लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं

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