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Updated: 01 नवम्बर, 2017 06:47 PM
राहुल लाल
राहुल लाल
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अमेरिका में 2001 के बाद सबसे बड़े आतंकी हमले में 8 लोगों की जान चली गई और 15 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. खबरों के अनुसार न्यूयॉर्क के लोअर मैनहट्टन में साइकिल और पैदल लोगों के चलने वाले रास्ते पर एक शख्स ने ट्रक चढ़ाकर लोगों को कुचल दिया. पुलिस के मुताबिक हमलावर 29 साल का उज्बेकिस्तान का रहने वाला सैफुलो सायपोव है.

मंगलवार को स्थानीय समय के अनुसार दोपहर 3 बजे ह्यूस्टन स्ट्रीट पर एक साइकिल पथ में हमलावर ट्रक लेकर घुस गया. और जो भी सामने आया उसे रौंदता चला गया. हमलावर के भागने से पुलिस की गोली उसके पेट में जा लगी. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक ट्रक के अंदर से आतंकी संगठन आईएसआईएस का झंडा और हस्तलिखित कुछ नोट बरामद किए गए हैं. हमलावर 2010 में फ्लोरिडा के टेम्पा में आकर बस गया था.

न्यूयॉर्क के मेयर बिल दे ब्लाजियो ने इसे एक कायरतापूर्ण आतंकी कार्यवाही बताया है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस घटना की निंदा की है. व्हाइट हाउस ने एक बयान में कहा है- "हम इस्लामिक स्टेट को मध्यपूर्व और अन्य जगहों पर हराने के बाद उसे हमारे देश में घुसने या लौटने नहीं देंगे. बहुत हो चुका." प्रधानमंत्री मोदी ने भी न्यूयॉर्क घटना की निंदा की है और मृतकों को श्रद्धांजलि दी है.

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इन हमलों के बाद इस्लामिक स्टेट्स ने सोशल मीडिया पर जश्न की तस्वीरें डाली हैं. बता दें कि न्यूयॉर्क हमेशा हाई सिक्योरिटी अलर्ट में रहता है. यह अमेरिका का आर्थिक कैपिटल भी है और यहां की जनसंख्या करीब 8.5 मिलियन है.

इस घटना ने पिछले साल यूरोप में हुए ऐसे हमलों की याद ताजा कर दी है, जिनमें कई लोग मारे गए. पिछले साल 14 जुलाई को एक संदिग्ध ने फ्रांसीसी शहर नाइस में एक बड़े ट्रक को भीड़ में घुसा दिया. इसमें 86 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. इस हमले की जिम्मेदारी भी इस्लामिक स्टेट्स ने ली थी.

इस घटना के पांच महिने बाद ही एक 23 वर्षीय पाकिस्तानी प्रवासी ने मध्य बर्लिन के भीड़ भरे क्रिसमस बाजार में एक ट्रक को घुसा दिया था. जिसकी चपेट में आकर 12 लोगों की मौत हो गई और 48 घायल हो गए. इस साल अप्रैल में, स्टॉकहोम में एक व्यक्ति ने ट्रक से एक डिपार्टमेंटल स्टोर को क्षतिग्रस्त कर दिया, जिसमें 3 लोगों की मौत हो गई.

क्या पश्चिमी विकसित देश भी आतंकियों से निपटने में सक्षम नहीं हैं?

न्यूयार्क में हुए धमाकों के बाद एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं कि क्या आतंकियों से निपटने में पश्चिमी विकसित देश भी सक्षम नहीं है? इन हमलों ने पुन: अमेरिका और पश्चिम के आतंकवाद विरोधी अंतर्राष्ट्रीय अभियान पर भी प्रश्न उठा दिया है?

2001 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमलों के बाद नाटो सेनाओं के साथ अमेरिका विश्वभर में हस्तक्षेप करता रहा है. लेकिन यह आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष कम और वर्चस्व तथा संसाधनों की लूट की लड़ाई ज्यादा थी.

2003 में सद्दाम हुसैन पर अमेरिका और ब्रिटेन ने आरोप लगाया कि वहां खतरनाक रसायनिक हथियार हैं. सद्दाम हुसैन को गिरफ्तार कर अमेरिकी न्यायालय द्वारा फांसी की सजा दी गई. लेकिन अमेरिका कभी इराक में तथाकथित रसायनिक हथियारों को ढूंढ नहीं पाया. हां, इराक को हमेशा के लिए राजनीतिक एवं संघर्षात्मक हिंसा के लिए छोड़ दिया. यही आगे चलकर खूंखार आतंकवादी संगठन आईएसआईएस का क्षेत्र बन गया.

terrorist attack, USAइराक में रसायनिक हथियार आजतक नहीं मिले

अमेरिका के लिए मध्यपूर्व अपने ऊर्जा संसाधनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण था. भू-राजनीतिक रुप से भी अहम था क्योंकि यह यूरोप तथा एशिया को जोड़ता है. रुस ने भी इस क्षेत्र में प्रवेश कर लिया तथा दोनों महाशक्तियों के बीच जोर आजमाईश शुरु हो गई. अगर सीरिया मामले को ही देखें तो आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष को लेकर अमेरिका और रुस दो ध्रुवों पर खड़े हैं. रुस वहां बशर अल असद को समर्थन दे रहा है, वहीं अमेरिका विद्रोहियों को. रुस ने बशर विद्रोहियों पर कार्यवाही की तो, विरोध में अमेरिका ने बशर को कमजोर करने के लिए सीरिया पर गंभीरतम रसायनिक हमला कर दिया.

सीरिया की अधिकांश जनता सुन्नी है, वहीं बशर सिया. इस तरह शिया-सुन्नी विवाद के कारण कई बार "इस्लामिक स्टेट्स" को सीरिया में सऊदी अरब और अमेरिका में संरक्षण भी मिल जाता है. इससे अमेरिका के आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष के स्वार्थपूर्ण रवैए को समझा जा सकता है. एक तरह से आईएसआईएस के प्रति इराक में अमेरिका का रवैया काफी कठोर रहा, परंतु सीरिया में नरम.

इतना ही नहीं, अमेरिका मध्यपूर्व के इस संवेदनशील क्षेत्र में ईरान और सऊदी अरब के बीच शिया-सुन्नी विवाद का लाभ उठाकर तथा सऊदी अरब को ईरान का डर दिखाकर हथियार बेचने में लगा है. इतने संवेदनशील क्षेत्र में जहां निशस्त्रीकरण की आवश्यकता थी, अमेरिका अपने संकीर्ण लाभ हेतु शस्त्रीकरण में लगा हुआ है.

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इसी तरह अमेरिका और ब्रिटेन ने नाटो सेनाओं के साथ मिलकर मध्यपूर्व और अफगानिस्तान में भी हस्तक्षेप किया. मई 2011 को अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मार दिया. इसके बाद भी दुनिया भर में आतंकवाद को रोका नहीं जा सका है. भारत जब पाकितान के हाफिज सईद, मौलाना मसूद अजहर जैसे आतंकियों की बात करता है, तो चीन सुरक्षा परिषद में वीटो का प्रयोग करता है. लेकिन क्या उसके बाद यही पश्चिमी देश चीन पर समुचित दबाव डालते हैं?

आतंक के खिलाफ पश्चिमी देशों के युद्ध के साथ कारोबार, साम्राज्यवाद तथा नव उपनिवेशवाद की शुरुआत हो गयी है. आइएसआइएस जैसे आतंकवादी संगठनों के प्रति भी पश्चिमी देशों का रवैया बहुत ढीला-ढाला था. कुछ खुफिया एजेंसियों का तो यह भी दावा था कि पश्चिमी राष्ट्र, आईएसआईएस को प्रोत्साहन देकर 10 डॉलर प्रति बैरल से भी सस्ते तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत कर रहे थे. जब यह संगठन उन देशों के निवासियों का भी निर्ममतापूर्वक हत्या करने लगा, तब पश्चिम की भूमिका बदली.

वास्तव में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पूरे विश्व को एकसाथ खड़ा होना होगा. अब महाशक्तियों को आतंकवाद के नाम पर शक्ति संघर्ष के स्थान पर एकीकृत सोच अपनानी होगी. विश्व समुदाय को चाहे आतंकवादी संगठन हो या पाकिस्तान जैसे देश जो आतंकवाद को खुलकर प्रायोजित करते हैं, उनसे कठोरता से निपटना होगा. नहीं तो आतंक के विरुद्ध संघर्ष समुचित लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकेगा.

आतंकी का घटनास्‍थल पर आखिरी वीडियो :

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लेखक

राहुल लाल राहुल लाल @rahul.lal.3110

लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं

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