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Updated: 02 मार्च, 2022 12:21 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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यूपी चुनाव 2022 का सियासी रण अब अपने अंतिम चरणों में पूरी तरह से पूर्वांचल के हिस्से में पहुंच चुका है. छठे चरण में 3 मार्च को 10 जिलों की 57 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है. 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें, तो छठे चरण की इन 57 सीटों पर भाजपा का पलड़ा भारी था. भाजपा ने 46 सीटों पर जीत दर्ज की थी. और, उस समय भाजपा के सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने एक और सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर ने एक सीट हासिल की थी. वहीं, समाजवादी पार्टी को 2, बसपा को 5 और कांग्रेस को 1 सीट पर ही संतोष करना पड़ा था. एक सीट पर निर्दलीय ने जीत दर्ज की थी. यूपी चुनाव 2022 में भाजपा के सामने अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है. क्योंकि, पिछले चुनाव में सहयोगी रहे सुभासपा के नेता ओमप्रकाश राजभर इस बार समाजवादी पार्टी की साइकिल चला रहे हैं. वैसे, यूपी चुनाव का छठवां चरण इस वजह से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन 10 जिलों में से एक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ गोरखपुर भी है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो पूर्वांचल में व्यापक प्रभाव रखने वाले गोरखनाथ मठ के महंत और सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के लिए छठवां चरण किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है.

Yogi Adityanath Acid Testगोरखपुर लंबे समय से पूर्वांचल की सियासत में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की राजनीति का गढ़ रहा है.

पूर्वांचल में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की राजनीति

गोरखपुर लंबे समय से पूर्वांचल की सियासत में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की राजनीति का गढ़ रहा है. जहां गोरखनाथ मठ को हिंदुत्व के साथ ही ठाकुरों के राजनीतिक वर्चस्व से जोड़ा जाता है. वहीं, माफिया से नेता बने हरिशंकर तिवारी का घर जिसे 'हाता' कहा जाता है, ब्राह्मणों की सत्ता का केंद्र है. ऐसा दावा किया जाता है कि योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद गोरखपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा को हार का मुंह हरिशंकर तिवारी की वजह से देखना पड़ा था. हालांकि, इस उपचुनाव में मिली हार को लेकर एक दावा ये भी है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने सीएम योगी से मशविरा किए बिना यहां से प्रत्याशी घोषित कर दिया था. खैर, इन दावों में कौन सही है और गलत, इन सबसे इतर बड़ी बात ये है कि गोरखनाथ मठ दशकों से हिंदुत्व की नर्सरी के तौर पर स्थापित रहा है. राम जन्मभूमि आंदोलन में गोरखनाथ मंदिर की भूमिका किसी से छिपी नहीं है.

पूर्वांचल की सियासत का केंद्र है गोरखपुर

गोरखनाथ मठ के महंत योगी आदित्यनाथ द्वारा बनाई गई हिंदू युवा वाहिनी का पूर्वांचल के कई जिलों में गहरा असर माना जाता था. हालांकि, योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद यह संगठन उतना सक्रिय नहीं रहा है. लेकिन, इसके पदाधिकारी और कार्यकर्ता आज भी लोगों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहते हैं. गोरखपुर सदर सीट पर सीएम योगी के चुनाव प्रचार में हिंदू युवा वाहिनी के नेताओं की पूरी फौज जुटी हुई है. योगी आदित्यनाथ पर सरकार चलाने के दौरान विपक्षी दलों ने ब्राह्मण विरोधी होने के आरोपों की बाढ़ ला दी थी. माफियाओं पर सीएम योगी की बुल्डोजर नीति की ने खूब चर्चा बटोरी थी. लेकिन, कुख्यात अपराधी विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद विपक्षी दलों ने योगी सरकार पर ठाकुर जाति के माफियाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने का माहौल बना दिया है.

वहीं, पूर्वांचल में ब्राह्मण राजनीति का बड़ा चेहरा कहे जाने वाले हरिशंकर तिवारी परिवार सहित समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके हैं. गोरखपुर की पारंपरिक सीट रही चिल्लूपार विधानसभा से हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार भी घोषित हो चुके हैं. इससे पहले विनय शंकर तिवारी बसपा के खेमे में थे. माना जाता है कि हरिशंकर तिवारी के परिवार का गोरखपुर के आसपास की करीब दो दर्जन सीटों पर प्रभाव है. वहीं, इस कुनबे के समाजवादी पार्टी में शामिल हो जाने से सीएम योगी आदित्यनाथ पर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोपों को और अधिक बल मिला था. इतना ही नहीं, समाजवादी पार्टी ने सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर, अपना दल (कमेरावादी), जनवादी पार्टी के संजय चौहान और ओबीसी नेताओं स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान के दल-बदल के सहारे सीएम योगी की राह में कांटे बिछा दिए हैं.

दांव पर है सीएम योगी की साख

यूपी चुनाव 2022 के छठे चरण में सीएम योगी आदित्यनाथ गोरखपुर सदर सीट से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ने जा रहे हैं. लेकिन, उनकी राह आसान नहीं है. समाजवादी पार्टी ने ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए भाजपा नेता स्व. उपेंद्र दत्त शुक्ल की पत्नी सुभावती शुक्ला को प्रत्याशी घोषित किया है. इस सीट पर दलित मतदाताओं में सेंध लगाने आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद रावण चुनावी मैदान में हैं. बसपा ने ख्वाजा शमशुद्दीन को टिकट देकर एक तरह से समाजवादी पार्टी को मुस्लिम मतदाताओं के मामले में वॉकओवर दे दिया है. हालांकि, गोरखपुर के मुस्लिम मतदाताओं के बीच भी योगी आदित्यनाथ की अच्छी पकड़ है. वहीं, कांग्रेस ने चेतना पांडेय के प्रत्याशी बनाकर ब्राह्मण वोटों में सेंधमारी करने की योजना बनाई है. देखा जाए, तो सभी राजनीतिक दलों की ओर से उतारे गए प्रत्याशी किसी चक्रव्यूह के महारथी नजर आते हैं. जो योगी आदित्यनाथ की चुनौती बढ़ाने की प्रबल संभावना रखते हैं. वहीं, छठे चरण में योगी सरकार के आधा दर्ज मंत्रियों की सीटों पर भी चुनाव होना है. इसके साथ ही छठे चरण में योगी आदित्यनाथ के प्रभाव वाली तीन दर्जन सीटों पर भी उनकी साख दांव पर लगी है. 

दिमागी बुखार और पूर्वांचल एक्सप्रेसवे

योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के चार महीने बाद ही गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में भर्ती दिमागी बुखार यानी इंसेफेलाइटिस से पीड़ित कई बच्चों की ऑक्सीजन की कमी से मौत हो गई थी. इस मामले पर योगी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री और कद्दावर भाजपा नेता सिद्धार्थ नाथ सिंह के एक बयान ने उनका मंत्रालय तक छिनवा दिया था. योगी आदित्यनाथ इस घटना के बाद सवालों के घेरे में आ गए थे. लेकिन, उन्होंने पूर्वांचल के जिलों में दिमागी बुखार की चुनौती को करीब से देखा था, तो सीएम योगी ने इसकी रोकथाम का जिम्मा उठाया. 2020 के अगस्त महीने में इस बीमारी से हुई मौतों की संख्या 7 थी. जो 2016 में 145 थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सीएम योगी के नेतृत्व में दिमागी बुखार की समस्या पर बड़े स्तर पर रोक लगा दी गई. वहीं, बीते साल नवंबर में शुरू हुआ पूर्वांचल एक्सप्रेसवे भी इस क्षेत्र के लिए बड़ी सौगात है. क्योंकि, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे से गोरखपुर, अंबेडकर नगर, संत कबीरनगर और आजमगढ़ को जोड़ने का भी प्लान है.

योगी आदित्यनाथ के लिए छोटी नहीं है चुनौती

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन ने 325 सीटों पर जीत हासिल की थी. भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत के साथ ही उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया था. तत्कालीन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य समेत दर्जनों नामों को लेकर कयास लगाए जाने लगे. यूपी में विधायक दल के नेता चुनने के लिए वेंकैया नायडू और भूपेंद्र यादव पर्यवेक्षक थे. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मुख्यमंत्री के तौर पर मनोज सिन्हा तय कर लिया था. लेकिन, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के एक फोन ने उत्तर प्रदेश की कहानी बदल दी. गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ अचानक दिल्ली बुलाए जाते हैं. और, मनोज सिन्हा को किनारे करते हुए मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ के नाम पर मुहर लग जाती है.

वहीं, यूपी चुनाव 2022 से पहले बीते साल नवंबर में एक तस्वीर सीएम योगी आदित्यनाथ ने शेयर की. इस तस्वीर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके कंधे पर हाथ रखकर बातचीत करते नजर आते हैं. योगी आदित्यनाथ ने इन तस्वीरों को ट्वीट करते हुए लिखा कि 'हम निकल पड़े हैं प्रण करके, अपना तन-मन अर्पण करके, जिद है एक सूर्य उगाना है, अम्बर से ऊंचा जाना है, एक भारत नया बनाना है.' सीएम योगी आदित्यनाथ के कंधे पर पीएम नरेंद्र मोदी के हाथ ने भाजपा की ओर से यूपी चुनाव 2022 के लिए सीएम चेहरे की तस्वीर साफ कर दी. पांच साल तक सरकार चलाने के बाद तमाम अंतर्विरोध के बावजूद योगी आदित्यनाथ को यूपी चुनाव 2022 में पहले से ही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा सीएम फेस घोषित कर दिया गया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो यूपी चुनाव 2022 के छठे चरण में पूर्वांचल के सबसे प्रतिष्ठित गोरक्षनाथ मठ के महंत योगी आदित्यनाथ के लिए चुनौती छोटी नही है.  

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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