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Updated: 11 फरवरी, 2022 01:20 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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यूपी चुनाव 2022 (UP Election 2022) का आगाज पहले चरण के मतदान से हो चुका है. चुनाव आयोग के अनुसार, पहले चरण में 60.17 फीसदी मतदान हुआ है. 2017 के चुनावी नतीजों में पहले चरण की 58 सीटों में से 53 पर भाजपा का कब्जा रहा था. आंकड़े पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में नजर आ रहे हैं. लेकिन, यूपी चुनाव 2022 के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर समेत 11 जिलों की जिन सीटों पर मतदान होना है, वहां किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी जाट मतदाताओं पर क्या असर डालेगी, इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. क्योंकि, 2013 में जाट-मुस्लिम के बीच हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल गया था. एक तरह से पहले चरण के मतदान में अब तक अलग-अलग चुनाव लड़ने वाली समाजवादी पार्टी और आरएलडी के बीच हुए गठबंधन की सियासत का परीक्षण हुआ है. वहीं, बसपा, कांग्रेस, एआईएमआईएम जैसी पार्टियां का पहले चरण के मतदान में क्या 'खेला' किया है, इसका भी परिणाम देखा जाना है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो पहले चरण में 11 जिलों की 58 सीटों पर होने वाले इस मतदान का असर सीधे तौर पर यूपी चुनाव 2022 के नतीजे तय करने वाला कहा जा सकता है. आइए जानते हैं कैसे...

UP Election 2022 First Phase voting percentageवोटिंग प्रतिशत सत्ता परिवर्तन करने वाला होगा या सत्ता बनाए रखने वाला? (Photo-@ECISVEEP)

जाट-मुस्लिम एकता का लिटमस टेस्ट

यूपी चुनाव 2022 में टिकैत बंधुओं की भारतीय किसान यूनियन ने जाट-मुस्लिम एकता का नारा बुलंद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. वहीं, आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी का पारिवारिक इतिहास जाट समुदाय की राजनीति का ही रहा है. इस स्थिति में समाजवादी पार्टी और आरएलडी का गठबंधन पहले चरण के मतदान में अगर जाट-मुस्लिम वोटों के समीकरण के साथ बढ़त बना लेता है. तो, यही ट्रेंड आगे भी देखने को मिल सकता है. क्योंकि, पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिन 58 सीटों पर मतदान हुआ है, उनमें से कई सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. भाजपा के विरोध में जाने वाला मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन के साथ दिख रहा है. लेकिन, मुजफ्फरनगर जिले की छह विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी-आरएलडी गठबंधन की ओर से एक भी मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट नहीं दिए जाने से मुस्लिमों में रोष नजर आता रहा. वहीं, सिवालखास सीट से आरएलडी के टिकट पर समाजवादी पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट और आगरा, मथुरा, मेरठ की सीटों पर समाजवादी पार्टी द्वारा मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिए जाने से जाटों में नाराजगी की दिखाई पड़ी.

आसान शब्दों में कहा जाए, तो पश्चिमी यूपी की बहुतायत सीटों पर जाट-मुस्लिम एकता की बात करने वाले सपा-आरएलडी गठबंधन का ये समीकरण खतरे में नजर आता है. क्योंकि, इस समीकरण के बावजूद न पूरी तरह से जाट भाजपा से दूर जाते दिख रहे हैं और न ही मुस्लिम एकतरफा तरीके से गठबंधन के साथ खड़े नजर आते हैं. वैसे, इन सीटों पर मतदान के दौरान किसान आंदोलन की तपिश दिखाई नहीं पड़ी है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि किसान आंदोलन पहले चरण के मतदान में बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया. क्योंकि, सारे समीकरण जाट-मुस्लिम गठजोड़ पर ही टिके रहे. वहीं, इनमें से कई सीटों पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने समीकरण भिड़ाते हुए खुलकर मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दी है. जो जाट-मुस्लिम एकता के समीकरण नाराज वोटरों की आस बन सकता है. मुजफ्फरनगर की सीटों पर जहां आरएलडी ने हिंदू प्रत्याशी उतारे हैं, वहां जाट भले ही आरएलडी के साथ दिखे. लेकिन, मुस्लिम मतदाता काफी हद तक बसपा प्रत्याशियों के पक्ष में खड़े नजर आते हैं. फिलहाल पहले चरण में जिस तरह की वोटिंग का रुझान आया है, उसे देखकर कहा जा सकता है कि किसान आंदोलन का गुस्सा वोटों में तब्दील होने का कारनामा नहीं कर पाया है. अगर यही ट्रेंड आगे भी बना रहा, तो सपा-आरएलडी गठबंधन के लिए मुश्किल हो सकती है.

भाजपा का '80 बनाम 20' फॉर्मूला

यूपी चुनाव 2022 के पहले चरण के मतदान में भाजपा के सामने किसान आंदोलन का गुस्सा और सपा-आरएलडी गठबंधन के तौर पर बड़ी चुनौतियां थीं. वैसे, जब पहले चरण का मतदान चल रहा था, उसी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुजफ्फरनगर से लगते हुए जिले सहारनपुर में रैली कर दूसरे चरण के लिए चुनावी अभियान का आगाज किया. लेकिन, पीएम नरेंद्र मोदी के भाषण में शुरुआत से आखिरी तक मुजफ्फरनगर दंगों, अपराधियों को प्रत्याशी बनाने, गन्ना किसानों के रिकॉर्ड भुगतान जैसे पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश को छूने वाले मुद्दे ही छाए रहे. हालांकि, पहले चरण के मतदान से करीब 12 घंटे पहले पीएम मोदी ने अपने इंटरव्यू के जरिये समाजवादी पार्टी की परिवारवादी राजनीति को कठघरे में खड़ा करने में कोई कोताही नहीं बरती. उन्होंने कृषि कानूनों की वापसी को लेकर अपनी बात रखी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो पीएम मोदी ने योगी आदित्यनाथ के '80 बनाम 20' के चुनावी फॉर्मूले को ही आगे बढ़ाया. जाट मतदाताओं के गुस्से को ध्यान में रखते हुए ही भाजपा ने अपनी रणनीति को पूरी तरह से गरीब, दलित और पिछड़ों पर केंद्रित किया हुआ है.

पश्चिमी यूपी में भाजपा का फोकस सैनी, पाल, निषाद, पासी, धोबी, कोइरी जैसी गैर-यादव और गैर-जाटव जातियों पर रहा. हालांकि, इसमें 'शहरी' जाट और अगड़ी जातियां भी शामिल हैं. भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लेकर मुजफ्फरनगर और सहारनपुर दंगों के नाम पर ध्रुवीकरण का जो दांव खेला है. अगर वह सही पड़ जाता है, तो कानून-व्यवस्था, कल्याणकारी योजनाओं, विकास जैसे मुद्दों के इर्द-गिर्द बुनी गई भाजपा की रणनीति आगे के चरणों के मतदान में भी उसे फायदा पहुंचा सकती है. वहीं, कांग्रेस, बसपा और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी भले ही पश्चिमी यूपी में कोई खास कमाल न कर पाएं. लेकिन, अगर इन्होंने थोड़े से भी नाराज मतदाताओं को अपने पक्ष में कर लिया, तो उससे भाजपा को ही फायदा मिलता दिख रहा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान में किसी तरह की लहर नहीं दिखाई दी है, जो भाजपा के लिए भी चिंता का विषय कहा जा सकता है. क्योंकि, वोटिंग का प्रतिशत गिरना भी सत्तारुढ़ दल के माथे पर बल ला देता है.

क्या 'बदलाव' के दावे हो गए 'हवा'?

किसी भी चुनाव में सत्ताधारी दल के खिलाफ गुस्सा या सत्ता परिवर्तन की चाहत हमेशा से ही वोटों के रूप में दिखाई पड़ती रही है. यूपी चुनाव 2022 के पहले चरण में 60.17 फीसदी के वोटिंग रुझान को देखते हुए संभावना जताई जा सकती है कि सारे समीकरण 'हवा' हो गए हैं. जहां किसान आंदोलन का चेहरा बने भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन के पक्ष में जाट और मुस्लिम को एक करने के लिए पूरी जान लगा दी हो. वहां इतना कम वोटिंग रुझान किसी भी हाल में सत्ता परिवर्तन के लिए नजर आने वाले उत्साह के बराबर नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि, 2017 में सत्ता परिवर्तन के समय यूपी चुनाव के पहले चरण में 64.22 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई थी. इससे पहले 2012 के चुनाव में पहले चरण के चुनाव में 61.04 फीसदी वोट पड़े थे. लेकिन, यूपी चुनाव 2022 के पहले चरण सिर्फ 60.17 फीसदी वोटिंग हुई है. हालांकि, एक आंकड़ा ये भी है कि 2017 में इन्हीं 58 सीटों पर करीब 2 फीसदी वोट बढ़ने से भाजपा ने 10 सीटों से सीधे 53 पर छलांग लगाई थी.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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