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Updated: 02 फरवरी, 2022 12:05 PM
प्रतिमा सिन्हा
प्रतिमा सिन्हा
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जिसका सबको बेसब्री और जिज्ञासा के साथ इंतज़ार था, वित्त वर्ष 2022-23 का वो आम बजट, केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को संसद के पटल पर रखा. डिजिटल फॉर्म में बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री ने चालू वित्तवर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि 9.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया. आशानुरूप ये बजट भी बड़ी-बड़ी घोषणाओं, दावों और उम्मीदों से लैस है. अपनी तरफ़ से सर्वश्रेष्ठ बजट पेश करने का प्रयास करती वित्तमंत्री ने पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर दोनों के लिए लुभावने ऐलान किये हैं. कृषि, रेलवे, रक्षा, शिक्षा और रोज़गार के साथ ही छोटे-बड़े नए उद्योगों और स्टार्टअप के साथ ही देश में व्यवस्था के डिजिटलाइज़ेशन के लिए मद सुनिश्चित किये गए हैं. पहली नज़र में लुभावनी लगने वाली ये बातें कुछ देर में ही हमेशा जैसी लगने लगती हैं

बजट पेश करना एक बड़ा काम है लेकिन उससे बड़ा सवाल ये है कि बजट ने किसको, क्या दिया. केन्द्रीय बजट का सबसे महत्वपूर्ण तत्व होता है, उसे सबके हित और विकास को ध्यान में रख कर बनाया जाना और उसका आम जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना.

Budget 2022, Budget, Nirmala Sitharaman, Finance Minister, Narendra Modi, Women, Girlsबजट 2022 को लेकर मोदी सरकार से महिलाओं को भी बहुत उम्मीदें थीं लेकिन उनका भी कोई बहुत बड़ा फायदा नहीं हुआ है

बजट - 2022 को इसी महत्वपूर्ण तत्व के आईने में देखने की कोशिश करते हैं लेकिन सिर्फ़ महिलाओं को ध्यान में रख कर. मतलब ये जानने की कोशिश करते हैं कि इस बजट में महिलाओं के बारे में क्या और कितना सोचा गया है. बजट में ‘इमिटेशन ज्वेलरी’ महंगी हो गई है. ये पढ़ते ही पहला ख्याल यही आया कि शायद ये बजट भी एक आम महिला को राहत देने वाला नहीं है.

सोना, चांदी, हीरा नहीं ले पाने की जो कसक ‘नकली’ पहन कर दूर कर ली जाती थी, एक मध्यमवर्गीय आम औरत का वो सुख भी महंगा हो गया. अब ज़रा, इस हल्की लग रही बात से अलग, गंभीर मुद्दे की बात कर लेते हैं. बजट की आधिकारिक भाषा में कहा जाए तो महिलाओं और बच्चों को एकीकृत लाभ प्रदान करने के लिए मिशन शक्ति, मिशन वात्सल्य, सक्षम आंगनवाड़ी 2.0 और पोषण 2.0 लॉन्च किए गए हैं.

साथ ही बचपन के संतुलित और सही विकास के लिए आंगनबड़ियों को पहले से ज़्यादा सक्षम और बेहतर वातावरण वाला बनाने का प्रावधान किया गया है. हर निश्चित ही सुखद और उत्साहवर्धक है. मगर क्या यह पर्याप्त भी है? सामाजिक रूप से देखें तो आज हर वर्ग की महिलाओं की मूलभूत आवश्यकता है सुरक्षा और शिक्षा के साथ ही आर्थिक संरक्षण और संवर्धन.

जब एक महिला वित्तमंत्री बजट पेश कर रही हो तो ये उम्मीद की ही जानी चाहिए कि वह महिलाओं की भावना और मूलभूत आवश्यकताओं को ध्यान में रखेगी. कोविड-19 महामारी के बाद उपजी विषम परिस्थियों में प्रस्तुत हुआ यह बजट उन महिलाओं के लिए एक बड़ी राहत का सबब हो सकता था जो अपने लघु या कुटीर उद्योगों को चला रही हैं.

नौकरी के विकल्प के रूप में स्टार्टअप के ज़रिए खुद को और अपने परिवार को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में लगी ये महिलाएं टैक्स में छूट चाहती हैं ताकि उन्हें ‘कमाई से ज्यादा टैक्स’ ना भरना पड़े. इन्हें उत्पादन संबंधी चीज़ों में भी रियायत की दरकार थी लेकिन इनके हाथ कुछ खास नहीं लगा है. हालांकि बजट के कुछ प्रावधानों से ग्रामीण महिलाओं को पढ़ने और अपनी उद्यमिता बढ़ाने का मौका मिलेगा लेकिन ये पर्याप्त नहीं है.

महंगाई पर नियंत्रण के प्रावधानों की कमी और आयकर टैक्स स्लैब में परिवर्तन नहीं करने से महिलाएं निराश हुई हैं, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. आयकर की सीमा में छूट एक बहुत बड़ा मुद्दा है जिस पर पिछले कई वर्षों से महिलाएं खुलकर सामने आई हैं.

विशेषकर मध्यमवर्ग की जिन महिलाओं ने अपने दम पर खुद को आर्थिक रूप से सक्षम बनाया है और व्यवसाय में भी खुलकर रिस्क लिए हैं, वो सरकार से आयकर संबंधी विशेष छूट की उम्मीद में थीं. इस बजट ने उन्हें फिर नाउम्मीद किया है. कई लोगों और उद्योगों ने इस बजट को संतुलित और राहत देने वाला बजट बताया है.

इसमें कुछ नया भी नहीं है. हर योजना, हर घोषणा किसी न किसी के लिए तो लाभदायक होती ही है लेकिन केन्द्रीय बजट से यह अपेक्षा करना भी कुछ ज़्यादा नहीं है कि वो ‘अधिकतम’ की संतुष्टि और राहत बने. बहरहाल, बजट, घर का हो या फिर देश का, वो सबसे ज्यादा मध्यमवर्ग को प्रभावित करता है और इसमें भी सबसे दयनीय स्थिति होती है मध्यमवर्गीय महिलाओं की.

महीने की एक तारीख से इकत्तीस तारीख के बीच घर की गाड़ी को बिना किसी व्यवधान के चलाते जाने की जिम्मेदारी महिला की ही तो होती है. किसी को कुछ कम ना हो, सबकी ज़रूरतें और इच्छाएं पूरी हों, भविष्य की योजनाएं और उससे जुड़ी आशाएं पूरी हों और साथ-साथ सेविंग भी होती रहे, यह किसी भी मध्यमवर्गीय महिला के सुनहरे ख्वाबों का हिस्सा होता है.

बड़े राजनीतिक दलों और उद्योगपतियों के लिए यह राष्ट्रीय मुद्दा हो या न हो, एक आम औरत के लिए उसकी रसोई में गैस सिलेंडर, राशन, सब्ज़ी, तेल, चीनी का महंगा होना ही उसके लिए जीवन का सबसे बड़ा मुद्दा होता है. पिछले तमाम बजटों की ही तरह ये बजट भी महिलाओं के इन मुद्दों को सुलझाता नहीं दिखता.

भुलाया नहीं जा सकता कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में ‘पोस्ट कोविड’ परिस्थितियाँ पूरी तरह बदल चुकी हैं. बड़ी संख्या में महिलायें हैं, जो मानसिक और शारीरिक रूप से किसी की आश्रिता हो गई हैं. उनका जीवन आसान करने के लिए सरकार की ओर से कारगर कदम उठाया जाना अपेक्षित है.

ऐसे कुछ प्रयासों के मद का निर्धारण भी जरूरी था ताकि बीमार या अक्षम महिलाओं की सुरक्षा और सरल जीवनयापन सुनिश्चित हो सके. बजट में ये उम्मीद भी नदारद है. ऐसे में अगर एक आम महिला की निगाह से देखा जाए तो ये बजट वास्तविक कम, काल्पनिक ज़्यादा लगता है. कल्पना भी ऐसी जिसमें कोई खास राहत नहीं है.

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लेखक

प्रतिमा सिन्हा प्रतिमा सिन्हा @pratima.sinha.5

लेखिका महिला मुद्दों पर लिखती हैं.

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