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Updated: 15 जुलाई, 2021 05:06 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून का मसौदा तैयार हो चुका है. यूपी में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू बनाने की घोषणा के साथ ही तमाम राजनीतिक दलों के बीच इस पर बहस छिड़ी हुई है. इन चर्चाओं के बीच दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) एक सुनवाई के दौरान देशभर में समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) लागू करने के विषय में एक टिप्पणी की. जिसके चलते समान नागरिक संहिता का मामला एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है.

एक दंपति के बीच तलाक के मुकदमे की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि समाज में धर्म, जाति और समुदाय की पारंपरिक रूढ़ियां टूट रही हैं. समान नागरिक संहिता लाने का ये सही समय है. केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 44 के आलोक में समान नागरिक संहिता के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए. मामले की सुनवाई कर रहीं जस्टिस प्रतिभा सिंह ने कहा कि भारतीय समाज अब सजातीय हो रहा है. धर्म, जाति और समुदाय की बंदिशें खत्म हो रही हैं. संविधान में समान नागरिक संहिता को लेकर जो उम्मीद जतायी गई थी, उसे केवल उम्मीद नहीं बने रहना चाहिए.

दिल्ली हाईकोर्ट ने 1985 के शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का जिक्र करते हुए कहा कि 30 से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी इस विषय को गंभीरता से नहीं लिया गया है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो प्रकरण में मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के बाद गुजारा भत्ता का हकदार माना था. हालांकि, राजीव गांधी की सरकार ने संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया था. दिल्ली हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के बाद एक बार फिर से समान नागरिक संहिता का जिन्न बाहर आ गया है. देशभर में इसे लागू करने की मांग के साथ ही इसका विरोध भी किया जा रहा है. आइए जानते हैं क्या है समान नागरिक संहिता और आगे इस कानून पर क्या होगा?

संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य को उचित समय आने पर सभी धर्मों लिए समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश दिया गया है.संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य को उचित समय आने पर सभी धर्मों लिए समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश दिया गया है.

क्या है समान नागरिक संहिता?

संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य को उचित समय आने पर सभी धर्मों लिए समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश दिया गया है. बता दें कि भारत में गोवा एकमात्र राज्य है, जहां समान नागरिक संहिता लागू है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने गोवा में हाई कोर्ट बिल्डिंग के उद्घाटन के मौके पर राज्य की समान नागरिक संहिता की तारीफ की थी. उन्होंने कहा था कि गोवा में लागू संहिता का देश के बुद्धिजीवियों को अध्ययन जरूर करना चाहिए. यह ऐसी संहिता है, जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने की थी. फिलहाल भारत में अलग-अलग धर्मों और समुदायों के लिए अलग पर्सनल लॉ हैं. इन अलग-अलग पर्सनल लॉ में समुदाय और धर्म के अनुसार, शादी की न्यूनतम उम्र से लेकर विवाह और तलाक तक हर कानून अलग-अलग हैं.

भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र का अहम हिस्सा

2014 में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के साथ ही अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि भारत में जल्द ही समान नागरिक संहिता लागू हो जाएगी. दरअसल, इस विचार के पीछे सबसे बड़ी वजह ये थी कि भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में धारा 370, राम मंदिर के साथ ही समान नागरिक संहिता का मामला भी शामिल रहा है. 5 अगस्त, 2019 को धारा 370 समाप्त कर दी गई और राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद मंदिर निर्माण का कार्य भी शुरू हो चुका है. इस स्थिति में कहा जा सकता है कि भाजपा के सामने समान नागरिक संहिता के रूप में एक नया लक्ष्य सामने आ गया है. हालांकि, मोदी सरकार ने 2016 में इस मामले को विधि आयोग के पास भेज दिया था. भाजपा लंबे समय से इसके लिए तैयारी कर रही है.

भाजपा हमेशा से ही समान नागरिक संहिता के पक्ष में रही है. जबकि, विपक्ष इस मामले को लेकर हमेशा ही ये कहता रहा है कि ये समान नागरिक संहिता लागू करने का सही समय नहीं है. दरअसल, मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति करने वाले सभी राजनीतिक दल इसका विरोध करते हैं. क्योंकि, मुसलमान समान नागरिक संहिता का विरोध करते हैं. वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा इसे वर्तमान समय की जरूरत बताने के बाद अब इस पर बहस होना तय है. हालांकि, यह बहस फिलहाल सियासी ही नजर आएगी. लेकिन, अब भाजपा के पास एक मौका है और वो समान नागरिक संहिता को लागू करने की कोशिश करेगी.

सीएए बिल पास करने के दौरान शाह ने कही थी ये बात

समान नागरिक संहिता बनाने को लेकर भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कई याचिकाएं दायर की हैं. हाल ही में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर अपील की थी कि पर्सनल लॉ को एक समान बनाने के लिए दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई के लिए एक स्पेशल बेंच का गठन किया जाए. दिल्ली हाई कोर्ट की इस टिप्पणी से पहले भी मोदी सरकार की ओर से समान नागरिक संहिता को लागू करने को लेकर प्रतिबद्धता जताई जा चुकी है. राज्यसभा में सीएए कानून पेश करने के समय बहस के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि भाजपा अपने घोषणा पत्र में शामिल मुद्दों को ही पूरा कर रही है और इस देश की जनता ने हमें इसके लिए चुनकर यहां भेजा है.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्देशों और दिल्ली हाईकोर्ट की हालिया टिप्पणी के बाद माना जा रहा है कि समान नागरिक संहिता को लागू करवाने के लिए भाजपा को एक अच्छा अवसर मिल गया है. कहना गलत नहीं होगा कि अगर पूर्ववर्ती सरकारें चाहतीं, तो ये कानून अब तक अस्तित्व में आ चुका होता. खैर, देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा के घोषणा पत्र में शामिल समान नागरिक संहिता कब संसद से पारित होगा?

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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