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Uddhav Thackeray Vs Eknath Shinde case: सुप्रीम कोर्ट में वकील साल्वे ने 'दल-बदल' पर कही ये 5 बड़ी बातें
शिवसेना (Shiv Sena) के विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यथास्थिति बनाए रखने की बात कहते हुए अगली तारीख दे दी है. एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के वकील हरीश साल्वे ने शिवसेना में हुई बगावत को 'दलबदल' न मानने को लेकर कई दलीलें दीं. आइए उन पर डालते हैं एक नजर...
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शिवसेना के विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग के साथ राज्यपाल के शिंदे गुट को सरकार बनाने का न्योता देने के फैसले को चुनौती वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बहस हुई. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के 12 सांसदों की परेड कराकर राहुल शेवाले को संसदीय दल का नेता घोषित करवा दिया है. आसान शब्दों में कहें, तो विधायकों को बचाने की लड़ाई अब सांसदों तक भी पहुंच गई है. और, उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे की ये जंग 'शिवसेना किसकी होगी' की लड़ाई बन चुकी है.
खैर, चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच चल रही कानूनी जंग को आगे बढ़ाते हुए 1 अगस्त की तारीख तय कर दी है. और, इस मामले में सभी पक्षों से जवाब मांगा है. उद्धव ठाकरे गुट की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलीलों के जरिये एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य घोषित करने के फैसले को सही ठहराने की कोशिश की. वहीं, एकनाथ शिंदे की ओर से वकील हरीश साल्वे ने अपना पक्ष रखा. आइए जानते हैं कि हरीश साल्वे ने क्या कहा?
शिवसेना के विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने की याचिका पर 'सुप्रीम' बहस लंबी चल सकती है.
हरीश साल्वे की दलीलें
- शिवसेना विधायकों को अयोग्य घोषित करने की पहल ने पार्टियों के आंतरिक लोकतंत्र का गला घोंट दिया है. अगर पार्टी के अंदर बड़ी संख्या में लोग चाहते हैं कि कोई और शख्स उनका नेतृत्व करे. तो, इसमें गलत क्या है?
- जिस समय आप पार्टी में रहते हुए पर्याप्त ताकत जुटा लेते हैं और पार्टी में रहते हुए ही नेता पर सवाल उठाते हैं. और, कहते हैं कि हम आपको सदन में हरा देंगे, तो यह दलबदल नहीं है. दलबदल तब लागू होता है, जब आप पार्टी छोड़कर किसी और से हाथ मिला लेते हैं. तब नहीं जब आप पार्टी में ही बने रहते हैं. दलबदल विरोधी कानून खुद से ही लागू नहीं होता है. इसे लागू करने के लिए एक याचिका चाहिए होती है.
- दलबदल विरोधी कानून तो तब लागू होगा. जब कोई स्वेच्छा से पार्टी सदस्यता छोड़े या फिर पार्टी व्हिप का उल्लंघन कर उसके खिलाफ वोटिंग करे. स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ने की परिभाषा पहले से तय है. अगर कोई सदस्य राज्यपाल के पास जाए और कहे कि विपक्ष को सरकार बनानी है, तो इसे स्वेच्छा से सदस्यता छोड़ना माना जाएगा.
- अगर मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद कोई और सरकार शपथ लेती है, तो यह दलबदल नहीं है. क्या हम किसी कल्पनालोक में हैं, जहां एक शख्स जिसको 20 विधायकों का भी समर्थन नही है, उसे फिर से मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए!
- पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र का हिस्सा होने के चलते नेता के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार है. आवाज उठाना दलबदल नही है. लक्ष्मण रेखा पार किए बिना पार्टी में रहते हुए आवाज उठाना भी दलबदल नही है.