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Updated: 06 दिसम्बर, 2019 10:13 PM
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नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill) को मोदी कैबिनेट (Modi Cabinet) की मंजूरी मिल चुकी है - और अब ये फिर से लोक सभा और उसके बाद राज्य सभा में पेश किया जाएगा. NRC की तरह नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) के विरोध में भी सबसे तेज स्वर असम से ही उठ रहे हैं - और दिल्ली में भी विपक्ष के नाम पर जो कुछ भी बचा खुचा है, अपने अपने तरीके से विरोध जता रहा है.

अगले हफ्ते ये बिल लोक सभा में पेश किया जा सकता है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नागरिकता संशोधन बिल पर सरकार के रूख धारा 370 जैसा ऐतिहासिक कदम बताया है. विपक्ष इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए बिल का विरोध कर रहा है. वैसे विपक्ष का ये विरोध भी एक बार फिर रस्म निभाने जैसा ही लगता है - बिलकुल वैसा ही जैसे सभी ने जम्मू-कश्मीर से जुड़ी धारा 370 और उससे पहले तीन तलाक का विरोध हुआ था. सबसे दिलचस्प है शिवसेना का नागरिकता संशोधन बिल के समर्थन की घोषणा - ऐसा करके उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने हिंदुत्व को लेकर अपने खिलाफ उठते सवालों का जवाब दे दिया है.

नागरिकता बिल को शिवसेना का सपोर्ट

नागरिकता संशोधन बिल पर बीजेपी और विपक्ष आमने-सामने तो वैसे ही है जैसे धारा 370 और तीन तलाक के मुद्दे पर रहा. दोनों पक्ष अपने अपने तरीके से इस बिल की खासियत समझा रहे हैं. बीजेपी इसे राष्ट्रवाद के साथ जोड़ कर पेश कर रही है और विपक्ष इसे धार्मिक आधार पर भेदभाव किये जाने के रूप में समझा रहा है.

शिवसेना ने नागरिकता संशोधन बिल का सपोर्ट राष्ट्रवाद के ऐंगल से किया है. शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर उनकी पार्टी केंद्र की किसी भी सरकार के साथ खड़ी रहेगी. शिवसेना का ये बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार बन जाने के बाद उद्धव ठाकरे की सेक्युलर छवि बतायी जाने लगी थी और वो सफाई में खुद को पहले जैसे ही हिंदुत्व के मुद्दे पर डटे हुए दिखाने की कोशिश कर रहे थे.

महाराष्ट्र की सेक्युलर सरकार के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद उद्धव ठाकरे नागरिकता बिल पर क्या स्टैंड लेते हैं, इसका सभी को इंतजार रहा. बीजेपी नेतृत्व को भी निश्चित तौर पर रहा होगा क्योंकि कल तक ऐसे हर मुद्दे पर बीजेपी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली शिवसेना को इस बार अलग से स्टैंड लेना था.

uddhav thackeray, modi and shahउद्धव ठाकरे ने नागरिकता संशोधन बिल का सपोर्ट कर एक तीर से दो निशाने साधे हैं

उद्धव ठाकरे ने नागरिकता संशोधन बिल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के साथ खड़े रहने का ऐलान कर एक तरीके से बीजेपी के साथ मुद्दों पर आधारित राजनीतिक गठजोड़ का रास्ता बंद नहीं होने दिया है. उद्धव ठाकरे ने ऐसा मैसेज देने की कोशिश की है कि बीजेपी और शिवसेना के बीच महाराष्ट्र जैसा विरोध सिर्फ सूबे की राजनीति तक सीमित रहेगा. वैसे शिवसेना की ये पुरानी नीति है कि वो एक गठबंधन में रहते हुए दूसरे गठबंधन के स्टैंड या उम्मीदवार तक का सपोर्ट कर देती आयी है - एनडीए में होते हुए राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए उम्मीदवार का सपोर्ट इसी बात की मिसाल है. एक बार फिर शिवसेना ने महाराष्ट्र में नये सिरे से बने गठबंधन का सदस्य होते हुए भी NDA सरकार के स्टैंड का सपोर्ट किया है.

नागरिकता बिल पर उद्धव ठाकरे का सपोर्ट एक तीर से दो निशाने भी कह सकते हैं. बीजेपी के साथ साथ शिवसेना ने अपने वोट बैंक को भी मैसेज देने की कोशिश की है कि सरकार भले ही सेक्युलर बना ली हो - लेकिन हिंदुत्व के एजेंडे से उसे कोई आसानी से अलग नहीं कर सकता.

उद्धव ठाकरे और नीतीश कुमार का सियासी स्वभाव काफी मिलता-जुलता लगता है. उद्धव ठाकरे ने NDA अभी अभी छोड़ा है और नीतीश कुमार एक बार छोड़ कर फिर से घर वापसी जैसी मिसाल भी पेश कर चुके हैं. अहम मुद्दों पर दोनों के विरोध और फिर खामोश हो जाने का तरीका भी एक जैसा ही देखने को मिला है.

नीतीश कुमार ने खुद अभी खुल कर नागरिकता संशोधन पर कुछ भी नहीं कहा है. दिल्ली में जेडीयू नेता केसी त्यागी से ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (NESO) के नेताओं ने मिल कर CAB के विरोध की गुजारिश की है. जेडीयू के वास्तव में सीधे सीधे पक्ष में होने की स्थिति में तो ये मुलाकात भी नहीं हुई होती. फिर भी औपचारिक बयान आने पर ही तस्वीर साफ हो पाएगी. जेडीयू के बाद ये नेता तृणमूल कांग्रेस (TMC) नेताओं से मुलाकात में भी ऐसी ही अपील किये हैं और उन्हें आश्वासन भी मिला है.

नीतीश कुमार की पार्टी JDU ने विरोध तो जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को खत्म करने को लेकर भी किया था - और तीन तलाक का भी, लेकिन तरीका ऐसा निकाला कि केंद्र की मोदी सरकार के मददगार ही साबित हुए. धारा 370 पर पहले कहा विरोध करेंगे, फिर अपने तरीके पर ऐतराज जताया और आखिर में जब सब सकुशल संपन्न हो गया तो बोल दिया कि अब जबकि संसद से सब कुछ पास हो ही गया तो विरोध किस बात का. बढ़िया है, विरोध का ये भी एक तरीका है.

अब सवाल है कि नीतीश कुमार नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में कहां तक जाएंगे? क्या इस बिल पर भी वो धारा 370 की तरह एक हद तक विरोध करके फिर किसी सुनसान रास्ते पर यू-टर्न ले लेंगे? या फिर तीन तलाक पर हंगामा करते हुए सदन का बहिष्कार कर बिल पास होने में मददगार बनेंगे?

विरोध तो विपक्ष की मजबूरी ही है

नागरिकता संशोधन विधेयक पर भी राजनीतिक टकराव तो होना ही है. नागरिकता संशोधन बिल के साथ सबसे खास बात ये जुड़ी है कि ये भी बीजेपी के चुनावी वादों में से एक है - जैसे धारा 370 और तीन तलाक. NRC और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण तो सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के चलते हो रहा है - लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने अपने हिस्से की सियासत खोज ही लेते हैं. चुनावों को देखते हुए केंद्र और कई राज्यों में सत्ताधारी बीजेपी खुद क्रेडिट लेते हुए उस पर अमल की बात दोहराती है, तो विपक्षी पार्टियां उसके विरोध में खड़े होकर अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रही होती हैं.

राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) को लेकर नॉर्थ ईस्ट में बवाल चल ही रहा है. खुद बीजेपी के स्थानीय नेता भी विरोध में खड़े नजर आते हैं. अब नागरिकता संशोधन बिल उसी राजनीतिक टकराव को और बढ़ाने वाला है.

ध्यान देने वाली बात ये भी है कि चाहे वो नागरिकता संशोधन विधेयक हो या फिर NRC दोनों ही के खिलाफ विरोध की आवाजें फिलहाल उन्हीं राज्यों में उठ रही हैं जहां विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं.

सबसे तगड़ा विरोध पश्चिम बंगाल में हो रहा है जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसे चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी कर रही हैं. बीजेपी इसमें अपने वोट बैंक के हिसाब से फायदा सोच रही है. तृणमूल कांग्रेस के साथ ही कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी और लेफ्ट पार्टियां भी विरोध में खड़ी हैं - ओडिशा में सत्ताधारी बीजेडी ने भी ऐतराज जताया है.

नागरिकता संशोधन पर कानून बन जाने के बाद अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों से आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों के लिए भारत नागरिकता मिलना आसान हो जाएगा. हां, इसके लिए उन्हें भारत में कम से कम 6 साल रहना होगा. अभी ये अवधि 11 साल है.

2016 में भी ये बिल लोकसभा में पेश किया गया था लेकिन बाद में संसदीय कमेटी के हवाले कर दिया गया. हालांकि. इस साल की शुरुआत में ये बिल लोकसभा में पास भी हो गया और फिर राज्य सभा में लटक गया था. लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के साथ ही विधेयक भी खत्म हो गया, इसलिए अब इसे नये सिरे से पेश किया जाना है.

सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के चलते कांग्रेस और मोदी सरकार के खिलाफ मुकाबले में आमने-सामने जूझ रहीं ममता बनर्जी के अलावा AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी भी बिल के खिलाफ पहले से ही मोर्चा खोले हुए हैं - NDA से TDP नेता एन. चंद्रबाबू नायडू के चले जाने के बाद विरोध के दो स्वर थोड़े थोड़े अंतराल पर सुनाई पड़ते थे - उद्धव ठाकरे और नीतीश कुमार. उद्धव ठाकरे के सपोर्ट के बाद झारखंड में बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे नीतीश कुमार - नागरिकता संशोधन बिल पर क्या रूख अपनाते हैं देखना है.

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