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Updated: 24 जून, 2022 07:20 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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हर 'वनवास' के पीछे कोई न कोई 'मंथरा और कैकेयी' की भूमिका जरूर निभाता है. तो, महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार के खिलाफ हुई बगावत ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भी 'वनवास' की ओर तकरीबन भेज दिया है. फिलवक्त महाविकास आघाड़ी सरकार के साथ ही अब उद्धव ठाकरे के लिए अपनी पार्टी शिवसेना को बचाए रखना भी मुश्किल हो गया है. एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बागी विधायकों का संख्याबल लगातार बढ़ता जा रहा है. वैसे, महाराष्ट्र की राजनीति में लंबे समय से 'किंगमेकर' रही शिवसेना को चलाने वाला ठाकरे परिवार सत्ता का साझीदार रहा. लेकिन, खुद कभी सत्ता में शामिल नहीं हुआ. हालांकि, 2019 में उद्धव ठाकरे ने सत्ता से ठाकरे परिवार की दूरी को खत्म करने का फैसला ले लिया. भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़कर एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गए.

खैर, इसका परिणाम सबके सामने है. और, मुख्यमंत्री होते हुए भी उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री आवास 'वर्षा' को खाली कर 'मातोश्री' की ओर प्रस्थान करना पड़ा है. खुद को बालासाहेब ठाकरे के तौर पर शिवसेना में स्थापित करने की कोशिश कर रहे उद्धव ठाकरे के लिए यह किसी झटके से कम नहीं है. हालांकि, उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के बागी विधायकों की वापसी के लिए आखिरी दांव खेलते हुए एक भावुक अपील की थी. उन्होंने कहा कि 'वह मुख्यमंत्री के साथ ही शिवसेना प्रमुख का भी पद छोड़ने को तैयार हैं.' लेकिन, इसका बागी विधायकों पर कोई खास फर्क पड़ता नहीं दिखा. वैसे, महाराष्ट्र में जारी इस सियासी उठापटक के बीच अहम सवाल ये है कि उद्धव के 'वनवास' के पीछे 'मंथरा और कैकेयी' की भूमिका किसने निभाई?

Uddhav Thackeray s exit from MVA Government and Shiv Sena Who played the role of Manthara and Kaikeyi behind Exileउद्धव ठाकरे के सामने आज जो हालात बने हैं, उसकी वजहें बागी विधायक नहीं कोई और है.

'किंगमेकर' को किंग बनने के लिए किसने उकसाया?

उद्धव ठाकरे पत्नी रश्मि ठाकरे और बेटे आदित्य ठाकरे के साथ मुख्यमंत्री आवास 'वर्षा' को खाली कर 'मातोश्री' पहुंच गए हैं. महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति को देखा जाए, तो उद्धव ठाकरे के पास शिवसेना को बचाने के लिए अब भाजपा के आगे झुकने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. क्योंकि, शिवसेना के दिग्गज नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बागी विधायकों ने उद्धव ठाकरे के सामने यही एक विकल्प रख छोड़ा है. लेकिन, ऐसी स्थिति ठाकरे परिवार के लिए पैदा ही क्यों हुई? आखिर वो कौन है, जिसने 'किंगमेकर' को किंग बनने के लिए किसने उकसाया? 

सत्ता संघर्ष की शुरुआत में खबरें आई थीं कि रश्मि ठाकरे अपने बेटे आदित्य ठाकरे को भविष्य में सीएम की कुर्सी पर देखने की चाह रखती हैं. इतना ही नहीं उद्धव ठाकरे की कुर्सी की जिद के पीछे भी वही रहीं. सोनिया गांधी से लेकर मुलायम सिंह यादव तक, लालू प्रसाद यादव से लेकर ममता बनर्जी (भतीजे अभिषेक बनर्जी के लिए जमीन तैयार करने में पुराने नेताओं को दरकिनार करने लगीं) तक सबकी कहानी ऐसी ही नजर आती है. सत्ता को लेकर मोह-माया रखना कोई अप्राकृतिक काम नहीं है. हां, धृतराष्ट्र हो जाना अंतत: तकलीफदेह हो जाता है. 

ठाकरे परिवार में चुनाव लड़ने की परंपरा कभी नहीं रही, ऐसे में संभव है कि आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र की राजनीति में लाने के लिए ही रश्मि ठाकरे ने उद्धव को किंगमेकर से किंग की भूमिका में आने के लिए कहा हो. वैसे भी महाविकास आघाड़ी सरकार बनने के बाद आदित्य ठाकरे का पद और कद काफी तेजी से बढ़ा था. लेकिन, जब तक आदित्य ठाकरे पूरी तरह परिपक्व नहीं हो जाते, तब तक के लिए रश्मि ठाकरे सीएम बन सकती थीं. क्योंकि, कुछ महीनों पहले ही रश्मि ठाकरे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने की मांग शिवसेना के ही नेता और मंत्री अब्दुल सत्तार ने की थी. ऐसा माना जाता है कि उद्धव ठाकरे के कई बड़े फैसलों के पीछ रश्मि ठाकरे की ही भूमिका रही है.

वैसे, अब्दुल सत्तार ने रश्मि ठाकरे को सीएम बनाने का पक्ष लेते हुए कहा था कि 'रश्मि ताई पर्दे के पीछे से काम करती हैं. और, पर्दे के सामने नहीं आती हैं. उन्हें (रश्मि ठाकरे) महाराष्ट्र की राजनीति के बारे में बहुत कुछ पता है. बड़े साहब (उद्धव ठाकरे) और आदित्य साहब कैसे काम करते हैं? वह उसका सही नियोजन करती हैं. फिलहाल वह सामना की मुख्य संपादिका तौर पर भी अच्छा काम कर रही हैं. वह अच्छी तरह से जानती हैं कि लोकतंत्र के रास्ते लोगों तक कैसे पहुंचा जाता है? उनकी छवि एक आदर्श महिला की है.'

खैर, उद्धव ठाकरे की बात की जाए, तो उनका राजनीति की ओर कोई खास झुकाव नजर नहीं आता है. वह हमेशा ही बालासाहेब ठाकरे की तरह पर्दे के पीछे से ही इशारा करने वाले के तौर पर जाने जाते हैं. ढाई साल के मुख्यमंत्रित्व काल में भी उद्धव ठाकरे ने अपनी जगह अधिकतर मामलों में आदित्य ठाकरे को ही आगे किया. बड़ी घोषणाओं से लेकर छोटे से कार्यक्रमों में भी उद्धव ठाकरे के साथ आदित्य ठाकरे की मौजूदगी हमेशा देखी गई. 2019 में चुनाव के बाद महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन में आदित्य ठाकरे को उप मुख्यमंत्री बनाने की भी चर्चा रही थी. लेकिन, दावा किया जाता है कि भाजपा ने इस मांग को ठुकरा दिया था.

महत्वाकांक्षा से भरी उड़ान को हवा देने वाली मंथरा कौन है?

महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना सांसद और प्रवक्ता संजय राउत की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है. कहा जाता है कि उद्धव की पत्नी रश्मि ठाकरे के कान में ढाई-ढाई साल के सीएम का फॉर्मूला फूंकने वाले संजय राउत ही थे. सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा खूब रही कि महाराष्ट्र में भाजपा को हिंदुत्व के दम पर लगातार आगे बढ़ता देख संजय राउत की महत्वाकांक्षाओं पर ब्रेक लग सकता था. तो, राउत ने रश्मि ठाकरे के सहारे अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की ठानी. ढाई-ढाई साल के सीएम के फॉर्मूले को रश्मि ठाकरे के सहारे उन्होंने आगे बढ़ाया. क्योंकि, ठाकरे परिवार के सत्ता में आने से संजय राउत की ताकत अपने आप ही महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे पावरफुल नेता की हो जाती.

कहा जाता है कि जिस तरह मंथरा ने भगवान राम के खिलाफ कैकेयी के कान भरे थे. ठीक उसी तरह दिल्ली के सत्ता गलियारों में चहलकदमी करने वाले संजय राउत ने भी किया. भाजपा के खिलाफ उद्धव ठाकरे के कान भरने वालों में सबसे पहले अगर किसी का नाम लिया जाता है. तो, वह संजय राउत ही हैं. कई बार संजय राउत के बयानों को उद्धव ठाकरे की ओर से भी सहमति नहीं मिलती थी. लेकिन, वह कुछ न कुछ करके अपनी बात बोल ही देते थे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो शिवसेना की ओर से भाजपा पर जितनी मुखरता से बयानबाजी की जाती थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मामले में उसका स्टैंड उदार हो जाता था. लेकिन, संजय राउत कई बार पीएम नरेंद्र मोदी को लेकर भी हमलावर हो चुके हैं. शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में अपने लेखों के जरिये संजय राउत कई बार भाजपा के साथ ही पीएम मोदी पर भी खुलकर हमला बोल देते थे.

इतना ही नहीं, बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल कर संजय राउत ने शिवसेना के लिए मुश्किलों में इजाफा ही किया. वैसे, तकनीकी तौर पर शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन कर ही विधानसभा चुनाव में 55 सीटें जीती थीं. महाराष्ट्र में ढाई-ढाई साल के सीएम पद के लिए भाजपा पर मुखरता से हमलावर होने के लिए संजय राउत ने अपने बयानों का सहारा लिया. इतना ही नहीं, शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए उकसाने वाले भी संजय राउत ही कहे जाते हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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