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Updated: 07 जून, 2016 04:19 PM
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जिस बात से नीतीश कुमार भागते फिरते हैं उसी में अरविंद केजरीवाल ने नया हथियार खोज निकाला है. जो जंगलराज नीतीश कुमार की नींद हराम किये रहता है उसे केजरीवाल ने ऐसे टूल में तब्दील कर लिया है जिससे आसानी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट कर सकें.

केजरीवाल फिलहाल लंबे राजनीतिक सफर पर निकले हैं इसलिए साथ में हार्दिक कनेक्शन को जोड़ना एक तरह से उनकी मजबूरी है.

टारगेट मोदी

अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार में एक कॉमन बात ये है कि दोनों ही प्रधानमंत्री मोदी के कट्टर विरोधी हैं. दोनों ही नेता मोदी को टारगेट करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते.

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मगर, 'जंगलराज' को लेकर दोनों की राय बिलकुल अलग है शायद इसलिए भी कि उसकी भौगोलिक तासीर अलग है. नीतीश कुमार के सामने जब भी 'जंगलराज' का सवाल आता है उनके चेहरे के भाव बदल जाते हैं. अब तो वो इसकी काट में कहने लगे हैं कि बिहार में जंगलराज नहीं बल्कि मंगलराज है.

लेकिन अरविंद केजरीवाल बगैर पूछे ही ट्वीट कर बताते हैं कि दिल्ली में जंगलराज है. वही दिल्ली जिसके वो रिकॉर्ड वोटो से चुने हुए मुख्यमंत्री हैं. असल में इसकी तकनीकी वजह ये है कि दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार को रिपोर्ट करती है. जब शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं तो इसी बात पर केजरीवाल उनका मजाक उड़ाया करते थे. अपनी बात और होती है.

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पंजाब से गुजरात, वाया गोवा...

केजरीवाल को जब भी दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग को घेरना होता है तो अपनी बात को प्रभावी बनाने के लिए वो जंग और मोदी के कॉम्बो को निशाना बनाते हैं. केजरीवाल का ये नुस्खा उनके लिए बेहद मुफीद साबित होता है. मोदी का नाम आते ही बीजेपी नेता रिएक्ट करने लगते हैं. सिर्फ जंग का नाम लेने पर उतना असर नहीं होता.

हार्दिक रिश्ते के मायने

केजरीवाल जिस सफर पर निकले हैं वो काफी लंबा है. दिल्ली से पंजाब, पंजाब से गोवा और गोवा से गुजरात. केजरीवाल के साथी कह रहे हैं कि वो दिल्ली छोड़ कर नहीं जाने वाले. वैसे भी घूम फिर कर तो दिल्ली आना ही है.

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थोड़ा गौर करने पर मालूम होता है कि केजरीवाल सियासी जंग के लिए उन्हीं जगहों को चुनते हैं जहां बीजेपी से प्रत्यक्ष या परोक्ष मुकाबला है - और कांग्रेस या तो कमजोर है या मैदान से बाहर. पंजाब में बीजेपी सत्ताधारी शिरोमणि अकाली दल की पार्टनर है जबकि कांग्रेस लंबे वक्त से हाशिये पर है. गोवा और गुजरात में बीजेपी की सरकार है और दोनों ही राज्यों में कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. यूपी में जहां कांग्रेस बड़ी पारी की तैयारी कर रही है उसके बारे में केजरीवाल का कहना है कि उनके पास बैंडविथ नहीं है.

पंजाब चुनाव में तो केजरीवाल की पार्टी सीधी लड़ाई में भी आ चुकी है, गोवा के बारे में उनका कहना है कि जनता की भारी डिमांड पर उन्हें मैदान में उतरना पड़ रहा है.

पंजाब में आम आदमी पार्टी नेक्स्ट लेवल की तैयारी कर रही है तो गोवा और गुजरात में केजरीवाल की टीम संगठन को मजबूत करने में जुटी हुई है.

पंजाब में नशे के कारोबार और भ्रष्टाचार के नाम पर केजरीवाल सत्ताधारी दलों को जरूर घेर सकते हैं लेकिन गोवा और गुजरात के लिए उन्हें नये तरीके खोजने होंगे. गोवा में मनोहर पर्रिकर की तरह ही मौजूदा मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत परसेकर की छवि भी बेदाग रही है.

गुजरात में भी केजरीवाल अगर ऐसा कोई फॉर्मूला अपनाते तो बेअसर ही होता. इसीलिए केजरीवाल ने गुजरात के लिए हार्दिक कनेक्शन खोज निकाला है.

केजरीवाल का कहना है कि हार्दिक पटेल को बिलावजह देशद्रोह के आरोप में जेल में डाला गया है, जबकि राजद्रोह का मुकदमा तो महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री एकनाथ खड़से पर चलाया जाना चाहिए क्योंकि देश के दुश्मन दाऊद इब्राहिम की कॉलिंग लिस्ट में उनका नाम उछला है.

तो क्या हार्दिक पटेल के आरक्षण आंदोलन को भी केजरीवाल सपोर्ट करेंगे?

ये सवाल केजरीवाल के टीम पर भारी पड़ता है. उन्हें अपना स्टैंड साफ करना पड़ रहा है कि आप संविधान प्रदत्त आरक्षण की ही हिमायती है. 10 फीसदी आरक्षण की पेशकश के साथ गुजरात सरकार को उम्मीद थी कि आंदोलन खत्म हो जाएगी लेकिन हार्दिक पटेल ने उसे नामंजूर कर दिया और वो ओबीसी कोटे में हिस्सेदारी पर अड़े हुए हैं.

'मोदी-मोदी' - मौजूदा दौर का ये शायद सबसे हॉट-फ्रेज है - जिसका असर भी चौतरफा है. एक ऐसा ब्रांड बन गया है जिसे कोई दवा तो कोई जहर के रूप में अपने अपने हिसाब से पेश कर रहा है, फिर भी फायदा सबको होता है. समर्थकों की तो बात ही और है, विरोधियों की भी राजनीति इससे चमक उठती है. वैसे भी कोई नसीबवाला यूं ही नहीं बन जाता है.

अगले साल के शुरुआती महीनों में पंजाब और गोवा विधानसभाओं के चुनाव होने हैं तो आखिर में गुजरात के - और उसके साल भर बाद दिल्ली का भी नंबर आना तय ही है. जाहिर है तब तक केजरीवाल अपने अंदाज में 'मोदी-मोदी' करते रहेंगे.

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